ग्रहण काल में पालनीय नियम :-
* ग्रहण स्पर्श के समय स्नान,
* मध्य में हवन, यज्ञ आदि और ईष्ट देवपूजन,
* मोक्ष के समय में श्राद्ध और दान,
* ऋतुमती (रजस्वला) स्त्री भी ग्रहण काल समाप्ति में तीर्थ स्थान से लाए गए जल से स्नान करें। यदि तीर्थ स्थान का जल न हो तो किसी पात्र में जल लेकर तीर्थों का आवाहन करके सिर सहित स्नान करें, परंतु स्नान के बाद बालों को निचोड़ें नहीं।
* स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु का कहना है कि ग्रहण काल में किए गए श्राद्ध का फल जब तक रहता है, जब तक कि सूर्य, चन्द्र व तारे विद्यमान रहेंगे।