कैसे बनी ये दुनियाः होमर के इलियड में देवताओं और युद्ध की दास्तान

सोमवार, 7 मई 2018 (11:02 IST)
- कैरोलिन अलेक्जेंडर (बीबीसी क्लचर)
 
इंसानियत की तारीख़ में मोहब्बत और जंग के क़िस्सों से हज़ारों पन्ने भरे पड़े हैं। कहीं क़िस्सा-ए-लैला-मजनूं है, तो कहीं शीरीं-फ़रहाद और कहीं दुष्यंत-शकुंतला की मोहब्बत की दास्तां। इसी तरह कुरुक्षेत्र में लड़े गए महाभारत से लेकर, सिकंदर महान और चंगेज़ ख़ां जैसे योद्धाओं की फ़तह के क़िस्सों पर न जाने कितना साहित्य रचा गया है।
 
भारत के इतिहास में महाभारत के महाकाव्य की बहुत अहमियत है। हिंदुस्तान का इतिहास इसके बग़ैर पूरा नहीं होता। इसमें छल है, प्रपंच है, साज़िशें हैं। वीरता के क़िस्से भी हैं और हार में जीत की कहानियां भी महाभारत में मिलती हैं। कुल मिलाकर ये महाकाव्य इंसानियत के हर पहलू को बताता है। अगर हम हिंदुस्तान को समझाने बैठें, तो महाभारत के बग़ैर नहीं समझा सकते।
 
पश्चिम की सभ्यता का महाकाव्य क्या है?
इसी तरह पश्चिमी सभ्यता में ग्रीक कवि होमर के लिखे महाकाव्यों इलियड और ओडिसी के बग़ैर बात नहीं बनती। इलियड को पश्चिमी सभ्यता के कालखंड का बुनियादी महाकाव्य कहा जाता है। इलियड का क़िस्सा असल में ट्रॉय की लड़ाई का है। जब ग्रीक राजकुमारी हेलेन, अपने पति को छोड़कर ट्रॉय के राजकुमार के साथ भाग जाती है। इसका बदला लेने के लिए तमाम ग्रीक राजा अपने दल-बल के साथ ट्रॉय के सुल्तान प्रायम की सल्तनत पर हमला बोलते हैं।
 
जैसे महाभारत के बारे में कहा जाता है कि इसे महर्षि वेदव्यास ने गणेश को बोलकर लिखवाया था। उसी तरह होमर ने भी अपने महाकाव्य इलियड को बोलकर याददाश्त की बेटी म्यूज़ेज़ को बोलकर लिखवाया था। इलियड को ईसा से 750 से 700 सदी पहले लिखा गया था। लेकिन इसमें जिस घटना को बयान किया गया है, वो इससे भी पांच सदी पहले हुई थी।
 
प्रसिद्ध ट्रॉय के युद्ध को जुबानी सुनते आए थे लोग
माना जाता है कि ट्रॉय का युद्ध माइसीन यानी कांस्य युग में हुआ था। उसके बाद के पांच सौ सालों तक इस जंग के क़िस्से लोग ज़ुबानी सुनते-सुनाते आए थे।
 
वजह ये थी कि कांस्य युग के बाद भूमध्य सागर और यूरोप में जो दौर आया था, उसे अंधकार का युग कहा जाता है। हालांकि उस दौर में भी ग्रीक लोग लिखना और ऐतिहासिक घटनाओं को दर्ज करना जानते थे। लेकिन लिखने-पढ़ने का काम केवल सरकारी काम-काज का हिसाब दर्ज करने के लिए किया जाता था। जब ईसा से 1200 साल पहले भूमध्य सागर के इर्द-गिर्द के साम्राज्यों का पतन हुआ, तो लिखने-पढ़ने का ये काम भी बंद हो गया।
 
इसके बाद होमर के युग से पहले तक लोग सिर्फ़ ज़ुबानी तौर पर ट्रॉय की लड़ाई के क़िस्से को सुनते आए थे। इलियड महाकाव्य लिखने वाले होमर को अच्छे से पता था कि ये महाकाव्य सिर्फ़ एक युद्ध की दास्तान बयां करने के लिए नहीं लिखा जा रहा है। बल्कि, ये सदियों पहले की घटना की याददाश्त को हमेशा के लिए बनाए रखने के लिए हो रहा है। हालांकि इस महाकाव्य की ज़्यादातर घटनाएं काल्पनिक हैं। इसमें ट्रॉय के युद्ध के दसवें यानी आख़िरी साल के कुछ हफ़्तों की घटनाओं के बारे में ही लिखा गया है।
 
युद्ध रणनीति से लेकर ज़ख्मों के इलाज तक का ज़िक्र
इस महाकाव्य के किरदार सिर्फ़ ट्रॉय और ग्रीक राजा, योद्धा और दूसरे इंसान नहीं हैं। बल्कि इसमें ओलंपिक इलाक़े के देवताओं की कहानी भी है। ऐसे देवता, जो बहुत से चमत्कार कर दिखाते हैं और इस तरह जंग में अहम रोल निभाते हैं। लेकिन होमर ने ये ख़याल भी रखा कि दैवीय चमत्कारों के साथ-साथ इसमें इंसानी जज़्बात भी अहम रोल निभाते दिखें। इसीलिए जंग की रणनीति से लेकर ज़ख्मों के इलाज तक का तफ़्सील से ज़िक्र किया गया है।
 
होमर की ख़ूबी ये है कि उन्होंने पूरे महाकाव्य के एक बड़े हिस्से की कहानी को किरदारों के ज़रिए, उन्हीं की ज़ुबानी बुलवाया है। आधी से ज़्यादा बातें ख़ुद इस महाकाव्य के किरदारों ने कही हैं। इसमें वीरता, ग़ुस्से, बेइज़्ज़ती, अफ़सोस और दुख के जज़्बात भरे पड़े हैं, जो कहानी के साथ ही डूबते-उतराते चलते हैं।
 
इलियड ने यूनान के इतिहास की बुनियाद रखी
इलियड के ज़्यादातर किरदार मर्द हैं। महिलाओं की संख्या कम है। जो हैं भी वो बेहद कमज़ोर दिखाई गई हैं। इस जंग की वजह बनी हेलेन, मोहब्बत को लेकर जज़्बाती है मगर उसे पति को छोड़कर भागने का अफञसोस भी रहता है। आपको हेलेन में अन्ना कैरेनिना की झलक मिलेगी।
 
होमर ने जिस तरह से दैवीय किरदार गढ़े, उससे यूनानियों के पूजा करने के तरीक़े में काफ़ी बदलाव आया। पांचवीं सदी के इतिहासकार हेरोडोटस ने लिखा है कि होमर ने कवि हेसियोड के साथ मिलकर यूनानियों के लिए देवताओं के किरदार गढ़े। उन्हें इंसानी नाम दिए। आज हम उन ग्रीक देवताओं को उसी रूप में जानते हैं, जिनका ज़िक्र होमर ने किया था।
 
इलियड ने यूनान के इतिहास की बुनियाद रखी। इसने दुनिया को यूनान की सभ्यता और संस्कृति से रूबरू कराया, जो आगे चलकर पश्चिमी सभ्यता की बुनियाद बना। होमर ने इलियड के ज़रिए ऐसे सांस्कृतिक ताने-बाने को बुना, जिसने लोगों को मौत और नैतिकता, धर्म और इलाक़ाई पहचान से रूबरू कराया।
 
होमर ने इंसानों को देवताओं की कतार में ला खड़ा किया
कुछ लोग कहते हैं कि देवता होते हैं। किसी का मानना है कि भगवान नहीं होते। अठारहवीं सदी के फ्रेंच लेखक और दार्शनिक वॉल्तेयर ने लिखा है कि 'अगर भगवान नहीं होते, तो हमें उनका आविष्कार करना पड़ता'।
 
वजह ये कि दुनिया में बहुत सी ऐसी बाते हैं, जो इंसान की समझ के परे हैं। इन्हें हम ऊपरवाले जैसे किरदार गढ़कर समझते हैं। मगर कई बार ऐसा भी होता है जब बहुत सदा देने पर भी ऊपरवाला नहीं सुनता। होमर ने इलियड में बताया है कि जब देवता इंसान के पुकारने पर भी नहीं आते, तो फिर इंसान को ही ऊपरवाले का रोल निभाना पड़ता है।
 
इसकी मिसाल है इलियड का वो सीन, जिसमें ट्रॉय का राजा प्रायम अपने शूर-वीर बेटे हेक्टर की लाश मांगने ग्रीक योद्धा एकिलीस के पास आता है। वो उससे कहता है कि वो अपने पिता की मौत को याद करे और दैवीय जज़्बातों के हवाले से बेटे की लाश प्रायम को दे दे। ये सीन इतना ताक़तवर है कि आप इलियड के इस हिस्से को पढ़ते हुए जज़्बाती हो उठते हैं। होमर के बाद की कई सदियों तक ग्रीस और तुर्की के लोक कलाकार इलियड के हिस्सों को गाते-बजाते हुए लोगों को सुनाया करते थे।
 
ईसा के बाद की पहली सदी के विद्वान लॉन्गिनस ने होमर की तारीफ़ में लिखा है कि, 'जिस तरह होमर ने देवताओं के ज़ख़्मों, उनके झगड़ों, बदले, आंसुओं, क़ैद और तमाम जज़्बातों को बयां किया है, उससे उन्होंने देवताओं को इंसानों की और इंसानों को देवताओं की क़तार में ला खड़ा किया है'।
 
प्रायम और एकिलीस के बीच के संवाद बताते हैं कि कई बार ख़ुदा हमारी सदा नहीं सुनता। तब इंसानों को आगे बढ़कर एक-दूसरे का हाथ थामने की ज़रूरत होती है। तब हम इंसान होते हुए भी ख़ुदाई की ज़िम्मेदारी निभाते हैं। होमर का महाकाव्य इलियड बताता है कि जंग में कभी भी किसी को पूरी तरह से जीत नहीं मिलती। न ही कोई पूरी तरह से हारता है। कई बार हार में जीत और जीत में भी हार होती है।

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