अमेरिकी साइंटिफ़िक अमेरिका मैगज़ीन के प्रणायाम को अंग्रेज़ी नाम देने पर सोशल मीडिया पर इसकी काफ़ी चर्चा हो रही है। मैगज़ीन ने प्रॉपर ब्रीदिंग ब्रिंग्स बेटर हेल्थ में 'कार्डियाक कोहेरेंस ब्रीदिंग' के बारे में बताया है, जिसमें सांस लेने जैसी कई तकनीकों पर ध्यान दिया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे इस एक्सरसाइज़ से अनिद्रा और मन को शांत रखा जा सकता है, नियमित करते रहने से कैसे रक्तचाप को नियंत्रित किया सकता आदि।
मैगज़ीन ने जिस तरह से 'कार्डियाक कोहेरेंस ब्रीदिंग' के फ़ायदे और फ़ोटो का इस्तेमाल किया है उससे साफ प्रतीत होता है कि मैगज़ीन प्राणायाम की बात कर रही है। लेकिन इस लेख की आलोचना सोशल मीडिया पर काफ़ी की जा रही है। इसमें प्राणायाम का भी ज़िक्र करते हुए लिखा गया है कि प्राणायाम योग श्वसन संबंधी नियंत्रण को लेकर पहला सिद्धांत था जिसे दीर्घायु के लिए एक असरदार तरीका माना जाता था।
अहमदाबाद के रहने वाले योगगुरु धीरज वशिष्ठ बीबीसी को ऐसा करने की कई वज़ह बताते हैं। वे कहते हैं कि हो सकता है कि मैगज़ीन ने संस्कृत नाम इस्तेमाल न करके उसे एक साइंटिफ़िक नाम दे दिया हो। हालांकि उनका मानना है कि इस तरह की छेड़छाड़ का विरोध होना चाहिए।
वे कहते हैं, ''पश्चिम देशों में जो योग को मानते हैं वो खुद भी इसके संस्कृत नाम में कोई छेड़छाड़ नहीं करते। वे मानते हैं कि इससे हमारे योग की परंपरा सामने आती है।'' ''लेकिन अमेरीकियों को थोड़ी सी कृतज्ञता दिखानी चाहिए और कम से कम नामों में कोई बदलाव नहीं करना चाहिए था, जो हमारे ऋषि-मुनियों ने दिए हैं।''
वे कहते हैं कि मैगज़ीन में बताया गया है कि चार बार सांस लेने पर चार बार ही छोड़नी चाहिए जबकि यहां प्रणायाम में इसका दोगुना है। चार बार सांस लेने पर आठ बार छोड़िए।
प्राणायाम करने के तरीक़े
1.जब ऊर्जा कम होः छोड़ने की तुलना में ज्यादा लंबी सांस लेने पर करें फ़ोकस, जैसे उज्जयी प्राणायाम।
2.भावनात्मक असंतुलन में: सांस के लेने-छोड़ने का अनुपात सामान रखें, जैसे भस्त्रिका प्राणायाम में।
3.तनाव में: लेने की तुलना में सांस के छोड़ने का अनुपात ज्यादा रखें, जैसे ओंकार, भ्रामरी प्राणायाम।
योगा गुरु के अनुसार, जब ज्यादा देर तक सांस छोड़ते हैं तो आपके दिमाग में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। और इस स्थिति में आपका शरीर ब्रेन की तरफ ज्यादा खून सप्लाई करता है। और जब आप दोबारा सांस लेते हैं तो आपके ब्रेन तक ऑक्सीजन से भरपूर रक्त पहुंचता है। ये बहुत ही साइंटिफ़िक टर्म है, जिसकी बात हमेशा से होती है लेकिन यहां अपने पाठकों को समझाने के लिए इस नाम का प्रयोग किया गया हो।
धीरज बताते हैं कि प्रणायाम भारत में बहुत प्राचीन समय से है लेकिन इसका एकदम सही समय नहीं बताया जा सकता क्योंकि योग पर जितनी भी किताबें हैं अधिकतर में अलग-अलग समय बताया गया है। फिर भी वे मोटा-मोटा बताते हैं कि भारत में योग का अस्तित्व पांच हज़ार साल से भी पुराना है। भगवान राम, भगवान कृष्ण के समय से इसका इस्तेमाल रामायण महाभारत में दिखाया गया है।
पश्चिम देशों में योग
पश्चिमी देशों में योग का चलन लगातार बढ़ रहा है। धीरज मानते हैं कि उन्हें शारीरिक फायदा तो हो ही रहा है इसके साथ ही ये उनके इनकम का भी ज़रिया बन गया है। वे कहते हैं, ''अगर पिछले 70 साल में देखा जाए तो पश्चिम में योग काफ़ी चलन में आ गया है। स्वामी विवेकानंद जब विदेश गए तो उन्होंने योगदर्शन पर बात की। लेकिन उसके बाद जो भी योगी जाते रहे हैं उन्होंने इसका अभ्यास पर फोकस किया।''
वे इसके लाभ की बात करते हैं और बताते हैं कि वहां के लोगों को इसका काफ़ी लाभ मिला है इसलिए आज विदेशों में भी योग काफ़ी प्रसिद्ध हो गया है। आज वहां के प्रसिद्ध मॉडल-अभिनेत्रियां भी योग पर ज्यादा ध्यान देती हैं। उन्हें केवल शारीरिक-मानसिक लाभ ही नहीं हो रहा है बल्कि पश्चिम देशों में एक इंडस्ट्री बन गई है और खूब पैसा छापा जा रहा है। इसके ज़रिए एक बड़े बाज़ार पर कब्ज़ा करने की भी मुहिम है।
उनका कहना है कि चीन में भी इसकी मांग बढ़ रही है इसलिए अमेरिका के कई एक्सपर्ट चीन की तरफ़ जा रहे हैं। क्योंकि चीन में तेज़ी से योग की मांग बढ़ी है। अभी तक वे भारतीय ट्रेनर पर निर्भर थे लेकिन अब इंटरनेशनल ट्रेनर, एक्सपर्ट सब पहुंच रहे हैं इसलिए बाज़ार अब सबके लिए खुल रहा है।
हालांकि उनका मानना है कि ये उनकी मार्केट तकनीक है। जिस तरह पुरानी शराब को नई बोतल में उतार दिया जाता है, उसी तरह जिनसे फ़ायदा हो रहा है वो उसका नाम बदल रहे हैं। इसलिए इसके पीछे मार्केट स्ट्रेटज़ी भी हो सकती है।
पहले भी हुआ है ऐसा
वे एक समय को याद करते हुए वे बताते हैं कि इसी तरह मुझे तब भी आश्चर्य लगा जब किगल एक्सरसाइज़ के बारे में डॉक्टर बताते हैं कि ये करो तो आपकी फलां समस्या सही हो जाएगी। जब मैंने पढ़ा तो पता चला कि ये किगल एक्सरसाइज़ कुछ और नहीं बल्कि योग का मूलबंध ही है। इसी तरह अधोमुख: श्वासन को डाउनवार्ड फैसिंग डॉग पोज़ या मर्जरी आसन को कैट पोज़ कहा जाता है।
धीरज कहते हैं कि ऐसा पहली बार ही नहीं हुआ कई बार हो चुका है। इस बार इसलिए चर्चित विषय बना क्योंकि सोशल मीडिया पर इसका असर दिखा। साथी ही बड़े नामों ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया की। सोशल मीडिया पर इसके तूल पकड़ने पर कई लोगों ने प्राणायाम का इतिहास बताना शुरू कर दिया और इसमें कांग्रेस के सांसद शशि थरूर भी पीछे नहीं रहे।
अपने ट्वीट में वे लिखते हैं, "2500 साल पुरानी प्राणायाम की भारतीय तकनीक के फायदों का विस्तार से वर्णन, 21वीं सदी की वैज्ञानिक भाषा में कार्डियक कोहरेंस ब्रीथिंग! पश्चिमी देशों को अभी कुछ सदियां लग जाएंगी ये सब सीखने में जो हमारे पूर्वज एक जमाने पहले सिखाकर गए हैं। लेकिन, आपका स्वागत है।"
धीरज कहते हैं कि ऐसा करने पर कई लोगों ने तर्क दिया कि संस्कृत नाम उच्चारण करने में परेशानी होती है लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं कि आप किसी का नाम ही बदल दें।
धीरज इस तरह नाम बदलने की एक और वज़ह की तरफ़ ध्यान आकर्षित करते हैं कि हो सकता है ये सब पब्लिसिटी के लिए हो क्योंकि ऐसा करने पर उनका लेख कई लोगों ने पढ़ा। शायद अगर वो ऐसा न करते तो जल्दी से कोई नहीं पढ़ता। और वो अपने इस कार्य में सफल हो गए क्योंकि आज दुनियाभर में उनका लेख पढ़ा जा रहा है। धीरज मानते हैं कि जो देश योग का मूल देश है वो ही न भूल जाए इसलिए केंद्र सरकार ने भी इसे करने पर काफ़ी ज़ोर दिया है।