कनाडा में सिख आख़िर कैसे बने किंगमेकर?

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019 (09:41 IST)
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक बार फिर कनाडा के चुनाव में बाज़ी मारी है, लेकिन इस बार वो बहुमत से दूर रह गए। फिर से प्रधानमंत्री बनने के लिए जस्टिन ट्रूडो को समर्थन चाहिए और वो जगमीत सिंह की तरफ़ देख रहे हैं।
 
जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को 24 सीटें मिली हैं और उनकी पार्टी का वोट प्रतिशत 15.9% रहा है। लिबरल पार्टी के लिए ये चुनाव बेहद कठिन रहा। हालांकि सोमवार देर रात पार्टी के लोगों ने राहत की सांस ली। 338 सीटों वाले हाउस ऑफ कॉमंस के लिए जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को 157 सीटें मिली हैं, हालांकि बहुमत से वो 20 सीटें दूर हैं।
 
भारतीय मूल के नेता जगमीत सिंह ने मंगलवार को 'किंगमेकर' की भूमिका पर अपना पक्ष साफ़ कर दिया। उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि ट्रूडो इस बात का सम्मान करते हैं कि अब एक अल्पमत की सरकार है, इसका मतलब हमें अब साथ मिलकर काम करना होगा।'
 
एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने अल्पमत की सरकार बनने की सूरत में अपनी पार्टी की प्राथमिकताएं पहले ही बता दी थीं। इसमें राष्ट्रीय फार्माकेयर योजना को समर्थन, हाउसिंग में निवेश, छात्रों के क़र्ज़ की समस्या से निपटना, मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट बिल को कम करना, क्लाइमेट एक्शन और कनाडा के अमीर लोगों पर टैक्स बढ़ाना शामिल है।
कौन हैं जगमीत सिंह?
 
लिबरल पार्टी के लिए न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख जगमीत सिंह काफ़ी अहम हो गए हैं, हालांकि इस बार एनडीपी की सीटें 39 से कम होकर 24 हो गईं। कहा जा रहा है कि नई सरकार में जगमीत सिंह की भूमिका काफ़ी अहम होगी।
 
दिसंबर 2013 में जगमीत सिंह को अमृतसर आने के लिए भारत ने वीज़ा नहीं दिया था। जगमीत कनाडा में साउथ ओंटारियो से सांसद चुने गए हैं। इनकी जड़ें पंजाब के बरनाला ज़िले में ठिकरिवाल गांव से जुड़ी हैं। इनका परिवार 1993 में कनाडा शिफ़्ट हो गया था। भारत में 1984 में सिख विरोधी दंगे को लेकर जगमीत हमेशा से मुखर रहे हैं। जगमीत 1984 के दंगे को राज्य प्रायोजित दंगा बताते हैं।
 
2013 में जब भारत सरकार ने उन्हें वीज़ा देने से इंकार किया था तो 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'मैं 1984 के दंगा पीड़ितों को इंसाफ़ दिलाने की बात करता हूं इसलिए भारत सरकार मुझसे ख़फ़ा रहती है। 1984 का दंगा 2 समुदायों के बीच का दंगा नहीं था बल्कि राज्य प्रायोजित जनसंहार था।'
 
कनाडा में सिखों का दबदबा
 
क्षेत्रफल के मामले में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश कनाडा में भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। यहां ख़ासकर सिखों की आबादी काफ़ी है। सिखों की अहमियत इस बात से भी लगा सकते हैं कि जस्टिन ट्रूडो ने जब अपने पहले कार्यकाल में कैबिनेट का गठन किया तो उसमें 4 सिख मंत्रियों को शामिल किया।
 
सिखों के प्रति उदारता के कारण कनाडाई पीएम को मज़ाक में जस्टिन 'सिंह' ट्रूडो भी कहा जाता है। 2015 में जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि उन्होंने जितने सिखों को अपनी कैबिनेट में जगह दी है, उतनी जगह भारत की कैबिनेट में भी नहीं है।
 
कनाडा में भारतवंशियों के प्रभाव का अंदाज़ा इस बात से भी लगा सकते हैं कि वहां के हाउस ऑफ कॉमंस के लिए 2015 में भारतीय मूल के 19 लोगों को चुना गया था। इनमें से 17 ट्रूडो की लिबरल पार्टी से थे। हालांकि 2018 की शुरुआत में जस्टिन ट्रूडो जब परिवार संग भारत आए तो उनका ये दौरा विवादों से घिर गया था। उनका ये 7 दिवसीय भारत दौरा विदेशी मीडिया में भी चर्चा का विषय बना।
 
कहा गया कि कनाडा में खालिस्तान विद्रोही ग्रुप सक्रिय हैं और जस्टिन ट्रूडो की वैसे समूहों से सहानुभूति है। विदेशी मीडिया में कहा गया कि हाल के वर्षों में कनाडा और भारत की सरकार में उत्तरी अमेरिका में स्वतंत्र ख़ालिस्तान के प्रति बढ़े समर्थन के कारण तनाव बढ़ा है। दुनियाभर में 'सिख राष्ट्रवादी' पंजाब में ख़ालिस्तान नाम से एक स्वतंत्र देश के लिए कैंपेन चला रहे हैं। कनाडा में क़रीब 5 लाख सिख हैं।
 
कहा जाता है कि सिख अलगाववादियों से सहानुभूति के कारण ही भारत ने ट्रूडो की यात्रा को लेकर उदासीनता दिखाई थी, हालांकि भारत ने इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया था। बीजेपी नेता शेषाद्री चारी ने बीबीसी से कहा था कि कनाडा की सरकार ने साफ़ कर दिया है कि उनकी सरकार ख़ालिस्तानियों के ख़िलाफ़ है।
 
कनाडा में कितने सिख?
 
आख़िर कनाडा में सिखों की आबादी इतनी कैसे बढ़ी? कनाडा की किसी भी सरकार के लिए सिख इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं? आज की तारीख़ में कनाडा की आबादी धर्म और नस्ल के आधार पर काफ़ी विविध है। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 22.3 फ़ीसदी हो गए थे, वहीं 1981 में अल्पसंख्यक कनाडा की कुल आबादी में महज 4.7 फ़ीसदी थे। इस रिपोर्ट के अनुसार 2036 तक कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 33 फ़ीसदी हो जाएंगे।
 
'वॉशिगंटन पोस्ट' से कॉन्फ़्रेंस बोर्ड ऑफ कनाडा के सीनियर रिसर्च मैनेजर करीम ईल-असल ने कहा था, 'किसी भी प्रवासी के लिए कनाडा सबसे बेहतर देश है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह मुल्क प्रवासियों को भी अवसर की सीढ़ी प्रदान करता है और लोग इससे कामयाबी की ऊंचाई हासिल करते हैं।'
 
पहली बार सिख कनाडा कब और कैसे पहुंचे?
 
1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड जुबली सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए लंदन आमंत्रित किया था। तब घुड़सवार सैनिकों का एक दल भारत की महारानी के साथ ब्रिटिश कोलंबिया के रास्ते में था। इन्हीं सैनिकों में से एक थे रिसालेदार मेजर केसर सिंह। रिसालेदार कनाडा में शिफ़्ट होने वाले पहले सिख थे।
 
सिंह के साथ कुछ और सैनिकों ने कनाडा में रहने का फ़ैसला किया था। इन्होंने ब्रिटिश कोलंबिया को अपना घर बनाया बाक़ी के सैनिक भारत लौटे तो उनके पास एक कहानी थी। उन्होंने भारत लौटने के बाद बताया कि ब्रिटिश सरकार उन्हें बसाना चाहती है। अब मामला पसंद का था। भारत से सिखों के कनाडा जाने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ था। तब कुछ ही सालों में ब्रिटिश कोलंबिया 5,000 भारतीय पहुंच गए जिनमें से 90 फ़ीसदी सिख थे।
 
हालांकि सिखों का कनाडा में बसना और बढ़ना इतना आसान नहीं रहा है। इनका आना और नौकरियों में जाना कनाडा के गोरों को रास नहीं आया। भारतीयों को लेकर विरोध शुरू हो गया था। यहां तक कि कनाडा में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे विलियम मैकेंज़ी ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा था, 'हिन्दुओं को इस देश की जलवायु रास नहीं आ रही है।'
 
1907 तक आते-आते भारतीयों के ख़िलाफ़ नस्ली हमले शुरू हो गए। इसके कुछ साल बाद ही भारत से प्रवासियों के आने पर प्रतिबंध लगाने के लिए क़ानून बनाया गया। पहला नियम यह बनाया गया कि कनाडा आते वक़्त भारतीयों के पास 200 डॉलर होने चाहिए, हालांकि यूरोप के लोगों के लिए यह राशि महज 25 डॉलर ही थी।
 
लेकिन तब तक भारतीय वहां बस गए थे। इनमें से ज़्यादातर सिख थे। ये तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। इन्होंने अपनी मेहनत और लगन से कनाडा में ख़ुद को साबित किया। इन्होंने मज़बूत सामुदायिक संस्कृति को बनाया। कई गुरुद्वारे भी बनाए।
 
सिखों का संघर्ष
 
सिखों को कनाडा से जबरन भारत भी भेजा गया। सिखों, हिन्दुओं और मुसलमानों से भरा एक पोत कोमागाटा मारू 1914 में कोलकाता के बज बज घाट पर पहुंचा था। इनमें से कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई थी। भारतीयों से भरे इस जहाज को कनाडा में नहीं घुसने दिया गया था। जहाज में सवार भारतीयों को लेकर 2 महीने तक गतिरोध बना रहा था। इसके लिए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 2016 में हाउस ऑफ कॉमंस में माफ़ी मांगी थी।
 
1960 के दशक में कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार बनी तो यह सिखों के लिए भी ऐतिहासिक साबित हुआ। कनाडा की संघीय सरकार ने प्रवासी नियमों में बदलाव किए और विविधता को स्वीकार करने के लिए दरवाज़े खोल दिए। इसका असर यह हुआ कि भारतीय मूल के लोगों की आबादी में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई। भारत के कई इलाक़ों से लोगों ने कनाडा आना शुरू कर दिया। यहां तक कि आज भी भारतीयों का कनाडा जाना बंद नहीं हुआ है।
 
आज की तारीख़ में भारतीय-कनाडाई के हाथों में संघीय पार्टी एनडीपी की कमान है। कनाडा में पंजाबी तीसरी सबसे लोकप्रिय भाषा है। कनाडा की कुल आबादी में 1.3 फ़ीसदी लोग पंजाबी समझते और बोलते हैं।

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