मोदी के लिए क्यों बेहद अहम है एससीओ की बैठक?

गुरुवार, 13 जून 2019 (08:44 IST)
डॉक्टर स्वर्ण सिंह, प्रोफेसर, जेएनयू, बीबीसी हिंदी के लिए
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) आज दुनिया में एक बहुत प्रभावी, शक्तिशाली और कुशल क्षेत्रीय संगठन बनकर उभर रहा है। इसकी शिखर वार्ता में करीब 20 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और तीन बड़ी बहुराष्ट्रीय संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। भारत और चीन के लिए किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में हो रहा इस बार का शिखर सम्मलेन कई वजहों से अहम रहेगा।
 
एससीओ के आठ सदस्य चीन, कज़ाकस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान हैं। इसके अलावा चार ऑब्जर्वर देश अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया हैं। छह डायलॉग सहयोगी अर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की हैं। शिखर सम्मेलन में इनके अलावा बहुराष्ट्रीय संस्थानों जैसे आसियान, संयुक्त राष्ट्र और सीआईएस के कुछ मेहमान प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाता है।
 
ऊर्जा का मुद्दा रहेगा अहम
एससीओ बहुत ज्यादा सदस्यों वाला संगठन है। चीन और भारत समेत विश्व की कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं इसके सदस्य हैं।
 
साल 1996 में इसकी शुरुआत पांच देशों ने शंघाई इनीशिएटिव के तौर पर की थी। उस समय उनका सिर्फ़ ये ही उद्देश्य था कि मध्य एशिया के नए आजाद हुए देशों के साथ लगती रूस और चीन की सीमाओं पर कैसे तनाव रोका जाए और धीरे-धीरे किस तरह से उन सीमाओं को सुधारा जाए और उनका निर्धारण किया जाए।
 
ये मकसद सिर्फ़ तीन साल में ही हासिल कर लिया गया। इसकी वजह से ही इसे काफी प्रभावी संगठन माना जाता है। अपने उद्देश्य पूरे करने के बाद उज्बेकिस्तान को संगठन में जोड़ा गया और 2001 से एक नए संस्थान की तरह से शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन का गठन हुआ। साल 2017 में भारत और पाकिस्तान इसके सदस्य बने।
 
साल 2001 में नए संगठन के उद्देश्य बदले गए। अब इसका अहम मकसद ऊर्जा पूर्ति से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना और आतंकवाद से लड़ना बन गया है। ये दो मुद्दे आज तक बने हुए हैं। शिखर वार्ता में इन पर लगातार बातचीत होती है। पिछले साल शिखर वार्ता में ये तय किया गया था कि आतंकवाद से लड़ने के लिए तीन साल का एक्शन प्लान बनाया जाए। इस बार के शिखर सम्मेलन में शायद ऊर्जा का मामला ज्यादा उभरकर आएगा।
 
चीन की चिंता
अमेरिका ने ईरान और वेनेजुएला पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया हुआ है। ये दोनों देश विश्व में तेल के तीसरे और चौथे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। भारत और चीन के लिए इन दो देशों से होने वाली तेल की आपूर्ति अहम है।
 
अमरीका के आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से चीन और भारत में आयात बंद है। मुझे लगता है कि शिखर वार्ता में इस बात पर विचार होगा कि अमेरिका के प्रतिबंधों के मुद्दे को किस तरह से सुलझाया जाए और ईरान और वेनेजुएला से तेल की आपूर्ति कैसे फिर से शुरू की जाए। आतंकवाद का मुद्दा भी बना हुआ है।
 
चीन इस संगठन का खास सदस्य रहा है। इसलिए शिखर वार्ता में अमेरिका और चीन में लगातार चल रहे ट्रेड वॉर पर भी कुछ बात होगी। चीन से होने वाले निर्यात पर कर बढ़ाए जा रहे हैं। इससे कई मुश्किलें सामने आ रही हैं। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर उसका असर पड़ने की आशंका है।
 
कई संस्थानों जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि ट्रेड वॉर की वजह से अगले साल पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था में करीब पांच सौ अरब डॉलर की कमी आ सकती है।
 
इमरान खान से नहीं मिलेंगे मोदी
शिखर वार्ता के दौरान कई द्विपक्षीय बातचीत भी होती हैं जैसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रुस और चीन के राष्ट्रपति से मिलेंगे। उससे भी बड़ी खबर ये है कि मोदी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की लगातार कोशिशों के बाद भी उनके साथ औपचारिक रूप से बातचीत नहीं करेंगे।
 
मुझे लगता है कि भारत का आतंकवाद को लेकर कड़ा रुख बना रहेगा। भारत के प्रधानमंत्री की कोशिश ये भी होगी कि आतंकवाद को लेकर उनके कड़े रुख को शंघाई सहयोग संगठन के सभी नेताओं का समर्थन भी मिले। इन मुद्दों की वजह से ये शिखर सम्मेलन भारत के लिए काफी अहम रहेगा।

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