Yodha film review: योद्धा बन कर सिद्धार्थ मल्होत्रा लड़ते हैं हारी हुई लड़ाई

समय ताम्रकर

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 (13:58 IST)
Yodha film review: वेबसीरिज हो या फिल्म, इन दिनों बॉलीवुड में 'मिशन' पर सभी हीरो निकल पड़े हैं। पठान बन कर शाहरुख और टाइगर बन कर सलमान जब मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकते हैं तो भला सिद्धार्थ मल्होत्रा क्यों पीछे रहें? 'योद्धा' बन कर वे भी देश पर बुरी नजर रखने वालों पर टूट पड़े हैं। 
 
सिद्धार्थ की फीस कम है, लिहाजा सुपरस्टार को लेकर बनाई गई फिल्मों के बजट के मुकाबले ये काफी सस्ती बन जाती है। सिद्धार्थ, सलमान-शाहरुख की तरह फाइट तो करते नजर आए, लेकिन फिल्म की कहानी इतनी लचर है कि वे केवल हाथ-पैर मारते रह गए और फिल्म डूब गई। 
 
योद्धा एक स्पेशल टास्क फोर्स है जिसमें अरुण (सिद्‍धार्थ मल्होत्रा) के पिता भी शामिल थे। अब अरुण इस फोर्स के जरिये देश की सेवा कर रहा है। इस तरह की फिल्मों के शुरुआत में एक मिशन को अंजाम देते हुए दिखाया जाता है। योद्धा में भी भारत और बंगला देश की सीमा पर अरुण को लड़ते हुए दिखाया गया है, लेकिन ये मिशन या एक्शन सीक्वेंस फिल्म के लिए प्लेटफॉर्म तैयार नहीं कर पाया। 
फिर अरुण एक और मिशन पर जाता है। हाइजैक हुए प्लेन में उसे देश के खास वैज्ञानिक को बचाना है, लेकिन अरुण नाकाम रहता है। उसके खिलाफ एक्शन लिया जाता है और वो सस्पेंड हो जाता है। इस कड़वाहट का असर पति-पत्नी के रिश्ते पर भी पड़ता है और उसकी पत्नी प्रिया (राशि खन्ना) तलाक लेने पर उतारू हो जाती है। 
 
यह सस्पेंशन और तलाक वाला मामला इतना लचर तरीके से लिखा गया है कि दर्शक हैरान रहते हैं कि मामला इतना गंभीर तो लग नहीं रहा है जितना किरदार रिएक्ट कर रहे हैं। इस चक्कर में फिल्म का घंटे भर से ज्यादा खर्च हो जाता है। 
 
अब लेखक कहानी में ट्विस्ट डालते हैं। एक बार फिर उस प्लेन में अरुण है जिसे हाइजैक कर लिया गया है। यहां पर फिल्म के लेखक ने हदें पार कर दी। ऐसा घटनाक्रम लिख डाला है कि यकीन करना मुश्किल हो जाता है। खूब बड़ा सोच लिया गया, लेकिन बारी जब करने की आई तो औंधे मुंह गिरे। 
भारत-पाकिस्तान, 9/11 से भी बड़ा हमला, भारत-पाकिस्तान के नेताओं की शांति वार्ता, आतंकवादियों के खतरनाक इरादे, आसमान में उड़ते प्लेन में सल्फर गैस, प्लेन को उड़ाती इंटर्न पॉयलेट जैसी न जाने क्या-क्या बातें डाल दी गई। उन्हें फिल्माने में तो निर्देशक असफल ही रहे, दर्शकों को यकीन दिलाने में भी वे खाली हाथ रहे। 
 
ऐसा भी नहीं है कि एंटरटेनमेंट या रोमांच के नाम पर इन सब बातों को पचा लिया जाए क्योंकि न थ्रिल है और न ही मनोरंजन। सवा दो घंटे की फिल्म पांच घंटे से ज्यादा लंबी महसूस होती है।  
 
फिल्म को सागर आंब्रे ने लिखा है और वे कहीं से भी कहानी को यकीन करने लायक नहीं बना पाए। उन्होंने आइडिए तो खूब सोच लिए, लेकिन यह सब कैसे होगा, यह नहीं लिख पाए और खामियाजा दर्शक भुगतते हैं। फिल्म में देश प्रेम का फ्लेवर भी डालने की कोशिश की गई है, लेकिन ढंग का एक डॉयलॉग नहीं लिख पाए।  
 
फिल्म का निर्देशन सागर आंब्रे और पुष्कर ओझा ने किया है। दो दिमाग होने के बावजूद फिल्म पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रहा। जिस तरह से फिल्म में प्लेन बिना पॉयलेट के उड़ता रहता है वही हाल फिल्म का है। जिधर चाहे मुड़ जाती है। 
 
सिद्धार्थ मल्होत्रा का हाथ एक्टिंग के मामले में तंग है, लेकिन हाथ-पैर खूब चला लेते हैं, लिहाजा यही काम उन्हें फिल्म में ज्यादा सौंपा गया है। वे हैंडसम लगे हैं और एक्शन भी अच्छे से किया है। लेकिन फिल्म में वो हर चीज बड़ी आसानी से कर लेते हैं, हीरो के नाम पर कुछ ज्यादा ही छूट ले ली गई है। 
 
राशि खन्ना की एक्टिंग अच्छी है, लेकिन उनका रोल को ठीक से उभारा नहीं गया है। दिशा पाटनी का रोल तो ऐसा लिखा गया है कि आप की हंसी भी छूट सकती है। एक्टिंग में भी दिशा कोई खास कमाल नहीं कर पाई। कई संगीतकारों ने गाने बनाए हैं, लेकिन हिट या याद रखने लायक कोई नहीं है।
 
कुल मिलाकर योद्धा एक सतही प्रयास है, वो ऐसी लड़ाई लड़ता है जो बेफिजूल सी लगती है।  

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