अन्नदाता नहीं मतदाता

संसद में चिदंबरम का भाषण खत्म होते ही बजट बेताल किसान के भेष में वित्तमंत्री के गले लिपट गया। लोगों की बधाई स्वीकार रहे चिदंबरम पर उसने सवालों की झड़ी लगा दी।

किसान बेताल ने पूछा- हे चिदंबरम, पिछले कई सालों से इस देश के किसान पिस रहे हैं। खेती की लागत बढ़ रही है और फसल का पूरा दाम किसानों को नहीं मिल पा रहा है। कर्ज लेकर खेती करना उनकी नियति बन गया है। इस कर्ज ने उनकी जिंदगी को नरक बना दिया। आंध्रप्रदेश हो या विदर्भ या फिर पंजाब कई किसानों ने कर्ज की जिल्लत से बचने के लिए मौत को गले लगा लिया।

कई परिवार भुखमरी की कगार पर आ गए। भू-माफिया हो या उद्योग सभी उनकी जमीन लीलते रहे। रही-सही कसर सेज ने पूरी कर दी। इसके नाम पर न सिर्फ उनकी उपजाऊ जमीन छीनी गई बल्कि पश्चिम बंगाल में तो विरोध करने पर उन्हें गोलियाँ झेलनी पड़ीं। हे चिदंबरम, तू बता कि आज अचानक ये सरकार इतनी रहमदिल कैसे हो गई। यदि तूने इस सवाल का जवाब नहीं दिया तो तेरे बजट के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे और तू कभी सत्ता सुख नहीं भोग सकेगा।

किसान वेशधारी बेताल की बातें सुनकर वित्त मंत्री सहम गए। जैसे-तैसे खुद को संभालते हुए वे बोले- बेताल, जैसा तू सोच रहा है वैसा नहीं है। हमने हर बार तेरी परेशानी समझने की कोशिश की, यह बात अलग है कि तेरे लिए अब तक कुछ खास कर नहीं पाए। लेकिन इस बार तो तेरे लिए कुछ करना ही था। तू देश का अन्नदाता होने के साथ ही हमारा सबसे बड़ा मतदाता वर्ग भी है।

इस मौके पर हम तुझे कैसे भूल सकते हैं। हम ही क्यों, तुझे कोई भी कैसे भूल सकता है। तूने खुद देखा होगा कि जब हम अपने भाषण में तेरे लिए कर्ज माफी की घोषणा कर रहे थे, विपक्ष कितना शोर मचा रहा था। कोई नहीं चाहता कि तू उसके खेमे से बाहर जाए।

चुनाव नहीं होते तो लोकसभा में भी तेरे नाम पर सुविधाओं के ऐलान से ऐसा तूफान खड़ा नहीं होता। इसलिए हे धरतीपुत्र, तो अब और कुछ मत सोच, किसी और की तरफ मत देख। तेरे लिए हम हैं न। चिदंबरम का जवाब सुन बजट बेताल ने कुछ नहीं कहा। बस अपने कर्ज और मूलधन की चिंता करता हुआ लोकसभा के गलियारे में गुम हो गया।

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