राम का वनवास, ज्योतिष का दोष कहां?

रविवार को रामनवमी थी। प्रभु श्रीराम के जीवन में जो बात सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, वह है उनका अपने अनुज भरत के लिए राज्य का त्यागकर वनवास जाना। कुछ विद्वान उनके वनवास गमन को लेकर उनकी जन्मपत्रिका और गुरु वशिष्ठ द्वारा की गई उनके राज्याभिषेक की संस्तुति को दोषी ठहराते हैं। वे अपने इस तथ्य के समर्थन में रामचरितमानस की इन पंक्तियों का उदाहरण देते हैं-
 
'जोग, लगन, ग्रह, वार, तिथि, सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत, राम जनम सुख मूल।'
 
इन पंक्तियों को आधार बनाकर अक्सर लोग ज्योतिष का मखौल उड़ाते हुए कहते हैं कि जब सभी कुछ अनुकूल था, तो प्रभु श्रीराम के जीवन में इतने कष्ट क्यों आए? जबकि इस प्रकार का तर्क सर्वथा अनुचित है, क्योंकि यदि आप उक्त पंक्तियों को ध्यानपूर्वक पढ़ेंगे तो पाएंगे कि 'योग, लगन, ग्रह, वार' का अनुकूल होना यहां भगवान श्रीराम के परिप्रेक्ष्य में नहीं कहा गया है, यहां यह बात समस्त जड़ व चेतन के परिप्रेक्ष्य में कही गई है।

यहां दूसरी पंक्ति स्पष्ट संकेत करती है कि 'चर अरु अचर हर्षजुत, राम जनम सुख मूल।'
अर्थात समस्त जड़ और चेतन के लिए योग, लग्न, ग्रह, वार सभी कुछ अनुकूल हो जाते हैं जब भगवान राम का जन्म अर्थात प्राकट्य होता है, क्योंकि प्रभु श्रीराम का जन्म समस्तों सुखों का मूल है।
 
ज्योतिष को संदेह के घेरे में लाने हेतु दूसरा तर्क प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के मुहूर्त को लेकर दिया जाता है कि जब गुरु वशिष्ठ ने भगवान के राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला था तो उन्हें राज्याभिषेक के स्थान पर वनवास क्यों जाना पड़ा? यह तर्क भी सरासर अनुचित है, क्योंकि गुरु वशिष्ठ ने कभी श्रीराम के राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला ही नहीं था। 
 
रामचरितमानस की ये पंक्तियां देखें-
 
'यह विचार उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।
प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ।।'
 
अर्थात राजा दशरथ ने अपने मन में प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक का विचार कर शुभ दिन और उचित समय पाकर अपना यह विचार गुरु वशिष्ठजी को जाकर सुनाया था। यहां शुभ दिन और सुअवसर का उल्लेख वशिष्ठजी के पास जाने के समय के संदर्भ में है, न कि भगवान राम के राज्याभिषेक के संबंध में। जब राजा दशरथ वशिष्ठजी से मिलने पहुंचे तब गुरु वशिष्ठ ने उनसे कहा-
 
'अब अभिलाषु एकु मन मोरें। पूजिहि नाथ अनुग्रह तोरें।
मुनि प्रसन्न लखि सहज सनेहू। कहेऊ नरेस रजायसु देहू।।'
 
अर्थात राजा का सहज प्रेम देखकर वशिष्ठजी ने उनसे राजाज्ञा देने को कहा। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि गुरु अनहोनी का संकेत कर सकता है किंतु राजाज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता। यहां भी गुरु वशिष्ठ संकेत करते हुए कहते हैं-
 
'बेगि बिलम्बु करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब राम होहिं जुबराजु।।'
 
अर्थात शुभ दिन तभी है, जब राम युवराज हो जाएं। यहां वशिष्ठजी ने यह नहीं कहा कि राम ही युवराज होंगे। आगे एक और संकेत में कहा गया है-
 
'जौं पांचहि मत लागै नीका, करहु हरषि हियैं रामहि टीका।'
 
अर्थात यदि पंचों कों (आप सबको) यह मत अच्छा लग रहा है तो राम का राजतिलक कीजिए।
 
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि गुरु वशिष्ठ ने केवल राजाज्ञा और जनमत के वशीभूत होकर प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक की सहमति प्रदान की थी न कि भगवान राम की जन्म पत्रिका व पंचांग इत्यादि देखकर मुहूर्त निकाला था। ऐसे में रामचरितमानस की इन पंक्तियों का गूढ़ अर्थ समझे बिना इन्हें आधार बनाकर ज्योतिष शास्त्र को दोष किस प्रकार दिया जा सकता है? प्रभु श्रीराम के वनवास के लिए ज्योतिष शास्त्र को दोष देना सर्वथा अनुचित व गलत है।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
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