लोकतांत्रिक मूल्यों की मंगल यात्रा के वे आरम्भिक वर्ष

- सतीश बिरथर

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स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व में पहला ऐतिहासिक आम चुनाव संपन्न कराया गया तथा वास्तविक प्रजातंत्र की आधारशिला रखी गई। 1947 से 1952 तक का लगभग पाँच वर्षों का कार्यकाल पं. नेहरू के लिए चुनौतीपूर्ण रहा। किंतु जिस साहस और सूझबूझ का परिचय उन्होंने इन दिनों में दिया वह इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।

स्वतंत्रता के पूर्व तथा स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र विकट परिस्थितियों से जूझ रहा था। स्वतंत्रता के कुछ माह बाद ही पं. नेहरू को जिंदगी का सबसे बड़ा सदमा लगा, जब 30 जनवरी 1948 को महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गई। इस सदमे से स्वयं को तथा राष्ट्र को उबारना पं. नेहरू के ही बस की बात थी।

दुनियाभर में यह हवा फैल रही थी कि नेहरू और उनके साथियों से देश नहीं संभलेगा और कहीं ऐसा न हो कि अँगरेजों को पुनः वापस आना पड़े, किंतु इस दबाव और तनाव ने पं. नेहरू तथा उनके साथियों को और अधिक मजबूती प्रदान की। उन्होंने राष्ट्र को नई रोशनी देने का साहस जुटाया। संविधान निर्माण की गति धीमी नहीं होने दी तथा 26 जनवरी 1950 को संविधान राष्ट्र को लोकार्पित कर जनतांत्रिक मूल्यों की मंगल यात्रा प्रारंभ की।

प्रथम ऐतिहासिक आम चुनाव तक आते-आते पं. नेहरू व अन्य शिखर पुरुषों के मध्य अनेक वैचारिक मतभेद उभरे। उधर मीडिया ने हिन्दू कोड बिल, गोहत्या रोको आंदोलन, विदेशी पैसा और नेहरू के कथित कुर्सी प्रेम तथा 'शानो-शौकत' को लेकर उँगलियाँ उठाईं। उधर सीमा पार तिब्बत-चीन सीमा विवाद भी प्रथम आम चुनाव के उत्तरार्ध में संकट खड़ा करने को उतावला होने लगा। इन तमाम परेशानियों के बावजूद पं. नेहरू ने प्रजातंत्र में आत्मा की प्राण प्रतिष्ठा की। पं. नेहरू के लिए प्रधानमंत्री का पद काँटों का ताज साबित हुआ।

राष्ट्र अनेकानेक समस्याओं से जूझ रहा था : अशिक्षा, बेरोजगारी, महिलाओं का शोषण और अत्याचार, सूखे का संकट, टेक्नालॉजी का अभाव, सड़कों का अभाव, बिजली का संकट, अकाल व बाढ़ का तांडव सभी कुछ एक साथ! लेकिन विचारक अर्नेस्ट हेमिंग्वे की धारणा के अनुरूप कि 'मनुष्य को नष्ट किया जा सकता है, किंतु हराया नहीं जा सकता', पं. नेहरू अथक परिश्रम करते रहे तथा राष्ट्र को नई दिशा देते रहे।

पं. नेहरू ने देश को नारा दिया, 'आराम हराम है'। उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया। भाखरा नांगल, दामोदर घाटी जैसी अनेक बहुआयामी, विशाल बाँध परियोजनाओं को भी उन्होंने प्रारंभ कराया तथा पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से समाज कल्याण की अनेक योजनाओं को सार्थक स्वरूप प्रदान किया। पं. नेहरू ने इस प्रकार सामाजिक आर्थिक नियोजन की आधारशिला रखी।

आम जनता का अटूट प्रेम और विश्वास पं. नेहरू के संबल बने। उन्होंने कहा कि जब तक हिन्दुस्तान में गरीबी है और जनता की आँखों में आँसू है तब तक हमारी कार्य की गति को विश्राम नहीं है। विदेश नीति के रूप में उन्होंने विश्व शांति और सह-अस्तित्व पर जोर दिया। पं.नेहरू का समग्र चिंतन राष्ट्र की तत्कालीन आवश्यकता के अनुरूप ही था। उस समय किसी भी गुट में शामिल होना खतरे से खाली नहीं था, इसलिए पं. नेहरू ने गुट निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

पं. नेहरू का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। विश्व राजनीति के मंच पर उनकी पहचान प्रभावी थी। दुनिया का कोई भी विकसित देश नेहरू की अनदेखी नहीं कर सकता था।