कोविड-19 महामारी से पैदा हुए भेदभाव को खत्म करने के लिए आगे आए धर्मगुरु

विशेष प्रतिनिधि

मंगलवार, 23 जून 2020 (17:54 IST)
भोपाल । कोविड-19 महामारी से पैदा भेदभाव और लांछन प्रवृत्ति के खिलाफ धर्मगुरू एकजुट होंगे विभिन्न पंथों के धर्मगुरु एक मंच पर आकर ऑनलाइन संवाद में धर्म-गुरूओं ने अपने विचार साझा किये। मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों से लगभग 100 पंथ-प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता इस वेबीनार संवाद में भागीदार हुए। इन पंथ-प्रतिनिधियों ने कोविड-19 महामारी से उपजे भेदभाव के खिलाफ एकजुट होकर कार्य-योजना बनाने की बात कही।
 
 दरअसल कोविड महामारी के कारण समाज में व्याप्त भय, भेदभाव और कोरोना पाजिटिव को लांछित करने की तेजी से फ़ैल रही प्रवृत्ति एक बड़ी समस्या बन रही है। स्वास्थ्य-कर्मियों, सफाईकर्मियों, आंगनबाडी कार्यकर्ताओं और दिहाड़ी मजदूरों के प्रति भेदभाव और तिरस्कार की भावना को शीघ्र खत्म किया जाना जरूरी है। प्रवासन और पुनर्प्रवासन भी एक बड़ी चुनौती है, घर या कार-स्थल पर वापस लौटने वाले मजदूर और सामान्य लोग सन्देह के दायरे में आ रहे हैं। धर्मगुरूओं ने इन मुद्दों पर सरकार और सामाजिक संगठनों की मदद करने का विचार किया।
यूनिसेफ के मध्यप्रदेश प्रमुख माइकल जूमा ने धर्मगुरूओं पांथिक संगठनों की भूमिका के बारे में कहा कि ये बच्चों और महिलाओं के जीवन-स्तर को सुधारने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। तिरस्कार और भेद-भाव विरोधी अभियान की सफलता में इनकी मुख्य भूमिका है। संवाद कार्यक्रम को विश्व स्वास्थ्य संगठन डा. रितु चौहान, अन्तरराष्ट्रीय संस्था यूएसएड की इंडिया मिशन डायरेक्टर रोमाना इएल हमजोई ने भी संबोधित किया।
 
कार्यक्रम के प्रारम्भ में भागवत कथावाचक देवकरण पंडया ने कहा कि धर्मगुरूओं को राहत कार्यों और जागरूकता प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहि। इस्लामिक स्कालर और ब्लॉगर डा. कायनात क़ाजी ने कहा कि सरकार के द्वारा जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका और राहत कार्यों के लिए अनेक प्रयास किया जा रहा है, हमें इसे सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए। 

ब्रम्हाकुमारीज की डा. बी. के. रीना ने धर्मगुरूओं में एकता और समन्वय पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस महामारी के दौर में लोगों का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। इस समय यह अत्यंत आवश्यक है कि हम सभी एकजुट होकर समाज को सकारात्मक सन्देश दें।
 
कथावाचक और वरिष्ठ पत्रकार पं. रमेश शर्मा ने भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा और जीवन पद्धति को सभी समस्याओं का समाधान बताते हुए व्यक्तिगत, भोजन, पानी आदि की स्वच्छता संबंधी आदतों पर गौर फरमाने की सलाह दी। बौद्ध धर्मगुरु और बुद्ध भूमि धम्म्दूत संघ के अध्यक्ष भंते शाक्यपुत्र सागर थेरो  ने कहा कि ध्यान और योग के द्वारा भय और तनाव को कम किया जा सकता है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी संतुलित करता है। 
गुना के शहर क़ाजी नुरुल्ला यूसुफजई ने कहा कि यह जरूरी है है कि हम किसी भी संक्रमित व्यक्ति को नजरअंदाज न करें और शारीरिक दूरी बनाये रखने तक ही अपने को सीमित करें, हमें सामाजिक और भावनात्मक दूरी नहीं बनानी है। लोगों को भावनात्मक सहयोग देकर भय, भेद-भाव और तिरस्कार की भावना को दूर किया जा सकता है। जमायते इस्लामी मध्यप्रदेश के डा. अजहर बेग ने कहा कि कोविड-19 से बचाव के लिए जमायते इस्लामी ने हर प्रकार का प्रयास किया है। स्वच्छता को बढावा देने के लिए इस्लामिक व्यवहार वुजू के महत्त्व का उल्लेख करते हुए उन्होंने विभिन्न पंथों के सकारात्मक संदेशों को अपनाने की सलाह दी।
 
सिख पंथ की प्रतिनिधि नीरू सिंह ज्ञानी ने सिख गुरुओं की वाणी और कर्म का स्मरण करते हुए वर्तमान महामारी के दौर में सिख समुदाय के द्वारा किये गए राहत कार्यों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि देशभर में और मध्यप्रदेश के अनेक स्थानों पर जरूरतमंदों के लिए लंगर की व्यवस्था की गई।  उन्होंने भय और तनाव को दूर करने के लिए सामुदायिक प्रयासों पर बल दिया । इस अवसर पर सुश्री ज्ञानी ने सिख गुरुओं द्वारा अपनी आमदनी का 10 प्रतिशत सेवा कार्यों हेतु देने के सन्देश का हवाला भी दिया।
 
स्पंदन संस्था के सचिव डा. अनिल सौमित्र ने धर्मगुरुओं का समाज को दिशा देने वाली शक्ति बताया। उन्होंने कहा के धर्मगुरू सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी संचारक हैं। इनके संदेशों का प्रभाव अपने समुदाय और अनुयायियों के साथ सम्पूर्ण समाज पर होता है। जरूरत इस बात की है कि सरकार, सामाजिक संगठन और मीडिया इनके प्रभाव का सकारात्मक उपयोग करे। धर्म्गुरूओं का सन्देश भेदभाव और घृणा के खिलाफ अचूक उपाय हो सकता है, हम आगे भी इनका सहयोग लेते रहेंगे।
 

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