कैसी होगी नगदरहित दुनिया

अनवर जमाल अशरफ

शनिवार, 7 मई 2016 (07:57 IST)
कोपेनहागेन और स्टॉकहोम जैसे शहरों में चाय कॉफी वाले खोमचों में भी क्रेडिट कार्ड से पेमेन्ट किया जा सकता है। यूरोप के स्कैंडिनेवियाई देश नगद से छुटकारा पाने की तैयारी कर रहे हैं। साल 2030 तक डेनमार्क और स्वीडन “कैशलेस सोसाइटी” यानी बिना नगद मुद्रा वाले देश बनने की तैयारी कर रहे हैं। इन देशों में अभी से ज्यादातर पेमेन्ट क्रेडिट कार्डों या मोबाइल के जरिए होने लगा है।
डेनमार्क के लोग नोटों और सिक्कों यानी नगद पैसों के लेनदेन से आगे बढ़ चुके हैं। वे क्रेडिट कार्ड या मोबाइल फोन से पेमेन्ट करना बेहतर समझते हैं और आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा तो अब नगद लेकर चलता भी नहीं। डेनमार्क के चैंबर ऑफ कॉमर्स ने पिछले साल ही एलान किया है कि सभी दुकानदारों के पास नगद रहित पेमेन्ट का विकल्प होना चाहिए।
 
स्वीडन में लगभग 95 फीसदी कारोबार नगद रहित यानी क्रेडिट कार्डों या बैंक ट्रांसफर से होने लगा है। छोटे छोटे दुकानदार भी नगद पैसा लेना पसंद नहीं करते क्योंकि उन्हें यह पैसा बैंक में जमा करना पड़ता है और अब बैंकों ने इसके लिए फीस लेनी शुरू कर दी है। इन देशों में कई बैंकों ने अपने एटीएम मशीनों को हटाना शुरू कर दिया है। साल 2010 में स्वीडन के बैंकों में 8.7 अरब नगद क्रोनर (स्वीडन की मुद्रा) जमा थी, जो 2014 में कम होकर सिर्फ 3.6 अरब रह गई है।
 
क्रेडिट और डेबिट कार्ड के अलावा मोबाइल फोन से पेमेन्ट का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है। स्वीडन के बड़े बैंकों ने मिल कर “स्विश” नाम का ऐप तैयार किया है, जो तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और जिससे लगभग 40 फीसदी लेन देन होने लगा है। डेनमार्क में दो दशक पहले तक 80 फीसदी लेनदेन नगद होता था, जो अब घट कर सिर्फ 25 फीसदी हो गया है।
 
इलेक्ट्रॉनिक पेमेन्ट के फायदेः बिना नगद वाले बाजार और नोटों के बगैर दुनिया की कल्पना मुश्किल है। लेकिन यूरोप धीरे धीरे इस तरफ बढ़ चला है। बैंकों के लिए यह फायदे का सौदा है क्योंकि उन्हें क्रेडिट कार्ड से होने वाले पेमेन्ट के लिए अतिरिक्त शुल्क मिलता है। यूरोप के स्कैंडिनेवियाई देशों में कम मुद्रा छपने लगी है। डेनमार्क ने एलान किया है कि आने वाले दिनों में वह डैनिश क्रोनर छापना बंद कर देगा।
 
इससे सरकारों को बहुत फायदा होगा क्योंकि सारे पैसे रिकॉर्ड में आ जाएंगे। इससे काले धन और रिश्वतखोरी की समस्या बहुत हद तक दूर हो सकती है। कारोबारी तंत्र ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है और इन देशों के ज्यादातर जगहों पर नगद रहित पेमेन्ट की सुविधा शुरू हो गई है।
 
मैककिन्से की एक रिसर्च बताती है कि इलेक्ट्रॉनिक पेमेन्ट से लेन देन पर होने वाला खर्चा और अपराध कम होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से बैंकों की सेवा बेहतर होती है। इससे बैंकों में भीड़ कम जमा होती है, टैक्स चोरी की संभावना कम हो जाती है, तस्करी और गैरकानूनी कारोबार पर लगाम लगता है।
नगद रहित समाज की मुश्किलः युवा पीढ़ी और तकनीक को समझने वालों के लिए क्रेडिट कार्ड या मोबाइल से पेमेन्ट मुश्किल काम नहीं। लेकिन बुजुर्ग वर्ग और कम पढ़े लिखे लोगों के लिए यह अभी भी मुश्किल काम है। पर्यटकों के लिए भी इलेक्ट्रॉनिक पेमेन्ट करना घाटे का सौदा है क्योंकि आम तौर पर विदेशी क्रेडिट कार्डों से होने वाले पेमेन्ट पर अतिरिक्त शुल्क लगता है।
 
इसके अलावा ग्राहकों की निजता यानी प्राइवेसी पर भी खासा असर पड़ता है। नगद रहित पेमेन्ट से ग्राहकों के सारे लेन देन का रिकॉर्ड जमा होता रहता है। उनके व्यवहार और खर्च के तरीकों का भी पता लग जाता है। कौन, कब, कहां जाता है और कहां खर्च करता है, ये सारी जानकारी ऑनलाइन हो जाती है। इंटरनेट में सेंध लगाने में माहिर हैकरों के लिए भी यह एक नया दरवाजा खोलता है। शायद यही वजह है कि कुछ लोग सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। क्रेडिट कार्ड से पेमेन्ट का एक खतरा कर्ज का भी रहता है। अगर सारा लेन देन कार्डों के जरिए होने लगे, तो फिर युवा वर्ग का कर्ज के बोझ में दबने का खतरा बढ़ जाएगा।
 
भारत में नगद रहित पेमेन्टः पेटीएम नाम की कंपनी ने पिछले चार पांच सालों में भारत में मोबाइल पेमेन्ट का कारोबार तेज किया है। टाटा और अलीबाबा जैसे निवेशकों ने इसमें पैसा लगाया है। करीब एक अरब मोबाइल फोन वाले देश में यह एक बड़ा कारोबार बनने जा रहा है। इसके अलावा बड़ी दुकानों और कंपनियों में भी नगद रहित लेन देन आम बात हो गई है। लेकिन गांवों और छोटे शहरों में अभी इसकी कल्पना करना मुश्किल है। भारत में मुश्किल से तीन फीसदी लोग आय कर देते हैं और ज्यादातर खुदरा लेन देन नगद होता है। रिक्शेवाले, चायवाले या रेहड़ी पर दुकान लगाने वालों के लिए इलेक्ट्रॉनिक पेमेन्ट अभी दूर की कौड़ी है।
 
डेनमार्क और स्वीडन के पड़ोसी देश नॉर्वे और फिनलैंड ने भी कैशलेस सोसाइटी की पहल शुरू कर दी है। हालांकि इन देशों में यह अपेक्षाकृत धीमी रफ्तार से चल रहा है। फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों में 1000 यूरो (लगभग 75,000 रुपये) से ज्यादा के नगद लेन देन पर रोक लगाने की तैयारी चल रही है, जबकि कुछ देशों ने 2500 यूरो से ज्यादा के नगद लेन देन पर रोक लगा दी है।
 
हालांकि फिलहाल यूरोप के अंदर इस पर एकराय बननी मुश्किल है। जर्मन सेंट्रल बैंक के कार्ल लुडविश थीले ने हाल ही में डेनमार्क के फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि इससे ग्राहकों की किसी भी तरीके से लेन देन करने की स्वायत्तता खत्म होती है। रूसी उपन्यासकार फ्योदोर दोस्तोयेवस्की का कहना है, “पैसे से आजादी का जन्म होता है।”
 

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