देव आनंद जिंदगी भर अपने बूढ़े होने के खिलाफ लड़ते रहे। अपनी उम्र की हर सीढ़ी पर खुद को रंगदार जवान साबित करने की कोशिश करते रहे। उम्र अपनी चाल से उनकी तरफ बढ़ती रही, लेकिन वे इसकी झुर्रियों को चुन चुन कर छाटते रहे और जवानी के लिए जगह बनाते रहे।
शायद देव आनंद ही ऐसे इंसान होंगे जिनकी रंगत देखकर कई बार मौत वापस लौटी होगी। इस बार खाली हाथ नहीं लौटने के लिए मौत को कोई बहाना चाहिए था, शायद इसीलिए एक ही दौरे का सहारा लिया। लेकिन वो आई भी तो नींद में ही, आखिर में मौत की भी हिम्मत नहीं हुई कि वो उनके जागते हुए आती। जब वो आई तो लंदन की एक होटल मेफेयर के कमरे में देव साब सो रहे थे।
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, हां, मुझे सुरैया से प्रेम था।
उन्होंने सुरैया के सामने अपनी मोहब्बत का इज़हार भी किया। सुरैया भी देव साब से प्रेम करती थी, लेकिन चीज़ें आगे घट नहीं सकीं। देव आनंद ने इसके बाद यह भी कहा था, अब मैं सुरैया को याद नहीं करता, मैं अतीत में नहीं वर्तमान में रहने वाला आदमी हूं।
वास्तव में जिंदगी उनके लिए धुएं की तरह थी। कहानियां उनके जीवन में भी घटती रही, जैसे हर किसी आदमी के जीवन में घटती है। लेकिन वे उन्हें छाटते और आगे निकलते गए, हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाते हुए। उन्होंने कहा भी है कि उन्हें नियति में यकीन नहीं। इसीलिए उम्रभर अथक काम करते रहे।