क्या है सिंधु जल समझौते की हकीकत, पढ़ें विस्तार से

सोमवार, 26 सितम्बर 2016 (11:41 IST)
कश्मीर के उड़ी सैन्य ठिकाने पर पाकिस्तान के आतंकी हमले के बाद भारत की ओर से कहा जा रहा है कि वह 1960 के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रशासक जनरल अयूब खान के बीच हुए सिन्धु जल समझौते को समाप्त करने पर विचार कर सकता है। 
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस 56 वर्ष पुरानी जल संधि के जारी रखने के सवाल पर कहा है कि दोनों देशों के बीच हुआ यह समझौता 'एकतरफा मामला' (वन साइडेड अफेयर) नहीं हो सकता है। लेकिन इस समझौते को तोड़ने, बनाए रखने और समझौते के अंतर्गत आने वाले प्रावधानों को लेकर जल संसाधन विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के जानकारों के विचार अलग-अलग हैं।
 
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा करना व्यावहारिक नहीं होगा, क्योंकि जहां पानी जैसे कुदरती संसाधनों की बात आती है तो इसको लेकर कोई भी एकतरफा निर्णय अन्य साझेदारों, पड़ोसी देशों जैसे कि चीन, नेपाल और बांग्लादेश के हितों को भी प्रभावित कर सकता है। इनमें से कोई भी भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय ऑर्बिट्रेशन कोर्ट, हेग (नीदरलैंड्‍स) में अपील कर सकता है। 
 
जल बंटवारे की प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए पाकिस्तान ने कुछ समय पहले ही किशनगंगा नदी पर बने किशनगंगा बैराज की ऊंचाई को कम करवा दिया था। उसका तर्क था कि बांध की अधिक ऊंचाई से पाकिस्तान को मिलने वाला पानी कम हो जाएगा और उसके हित प्रभावित होंगे अंतत: भारत को यह कोर्ट का फैसला मानना पड़ा। 
 
अब तक भारत-पाक के बीच सिन्धु जल संधि को 2 देशों के बीच जल विवाद पर एक सफल अंतरराष्ट्रीय उदाहरण माना जाता रहा है, क्योंकि इस अवधि में दोनों देशों के बीच 3 युद्ध भी हुए, बहुत सारी दिक्कतों, तनावों के बावजूद संधि बनी रही। लेकिन उड़ी के हमले ने भारत के धैर्य की परीक्षा ले ली है। इससे पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप से इस बारे में कहा था, 'आखिरकार किसी भी समझौते के लिए दोनों पक्षों में सद्भाव और सहयोग की जरूरत होती है।'
 
इस समझौते को लेकर 1993-2011 के बीच पाकिस्तान के कमिश्नर रहे जमात अली शाह का कहना है कि 'इस समझौते के नियमों के मुताबिक कोई भी एकतरफा तौर पर इस संधि को रद्द नहीं कर सकता है या बदल सकता है। दोनों देश मिलकर इस संधि में बदलाव कर सकते हैं या एक नया समझौता बना सकते हैं।' लेकिन पानी को लेकर विवादों की यह हालत है कि भारत के ही 2 राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु में कावेरी नदी के पानी बंटवारे को लेकर एक सदी से भी ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन मामला अभी तक सुलझा नहीं है। फिर सिन्धु नदी जल समझौता तो भारत-पाक के बीच की व्यवस्था है। 
 
इस मामले पर भू-राजनीतिक विवादों के जानकार ब्रह्म चेलानी का दावा है कि 'भारत वियेना समझौते के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रहा है जबकि ऐसे मामलों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का कहना है कि अगर दोनों देशों की मूलभूत स्थितियों में कोई ऐसा परिवर्तन हो रहा हो जिससे दूसरा पक्ष प्रभावित हो रहा हो तो एक देश किसी भी संधि को रद्द कर सकता है।'
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क्या है सिन्धु जल समझौता?
 
सिन्धु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें से पाकिस्तान का इलाका 47 प्रतिशत, भारत का 39 प्रतिशत, चीन का 8 प्रतिशत और अफगानिस्तान का 6 प्रतिशत हिस्से में बंटा हुआ है। सिन्ध नदी उत्तर में हिमालय की पहाड़ियों से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा होते हुए पाकिस्तान के पंजाब, सिन्ध, बलोचिस्तान को पार करते हुए अरब सागर में मिल जाती है। एक मोटे अनुमान के अनुसार करीब 30 करोड़ लोग सिन्धु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं।
 
1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ आने वाली 2 प्रमुख नहरों पर एक 'स्टैंडस्टिल समझौते' पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा। यह समझौता 31 मार्च 1948 तक लागू था लेकिन 1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने 2 प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन पर जनजीवन प्रभावित होने लगा। कहा जाता है कि भारत, कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था इसलिए उसने नहरों का पानी रोक दिया था। एक समझौता फिर से हो गया और भारत ने पानी की आपूर्ति बहाल कर दी।
 
लेकिन इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच नदी जल बंटवारे को लेकर विवाद की शुरुआत हो गई और इस समस्या के दीर्घकालिक और स्थायी समाधान पर विचार किया गया। इस मामले पर अमेरिकी नेताओं, विशेषज्ञों की सलाहें ली गईं और एक समझौते को लेकर दोनों पक्षों में बैठकों का एक लंबा सिलसिला शुरू हुआ। 1 दशक तक चली बैठकों के बाद आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में सिन्धु नदी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
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इस सिन्धु जल समझौते के तहत 4 प्रमुख बातें तय की गईं-
 
1. समझौते के अंतर्गत सिन्धु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिन्धु को पश्चिमी नदी बताया गया।
 
2. समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी भारत इस्तेमाल कर सकता है या था। पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर कुछ इन नदियों के पानी के कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया। इसमें बिजली बनाने, कृषि के लिए सीमित पानी के उपयोग, विवाद होने पर दोनों पक्षों की बैठक और साइट इंस्पेक्शन आदि का प्रावधान रखा गया था।
 
3. समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिन्धु आयोग की स्थापना की गई जिसके तहत दोनों देशों में कमिश्नरों की नियुक्ति और उनके मिलने का प्रस्ताव था। यह कमिश्नर एक निर्धारित अवधि में एक-दूसरे से मिलकर किसी भी प्रकार की परेशानी का हल निकालने की व्यवस्था का हिस्सा थे।
 
4. अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिजाइन पर आपत्ति हो तो दूसरा देश उसका जवाब देना होता। दोनों पक्षों की बैठकें होंगी लेकिन अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाता हैं तो दोनों देशों की सरकारें मामलों को सुलझाने की कोशिश करेंगी।
 
5. इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया था।
 
इस संधि को लेकर भारत में लोगों का एक वर्ग का मानता रहा है कि इस समझौते से भारत को लगातार आर्थिक नुकसान होता रहा है। जम्मू-कश्मीर सरकार के मुताबिक इस संधि के कारण राज्य को हर साल 20,000 करोड़ का आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया था। भारतीयों का यह भी मानना है कि पाकिस्तान इस संधि के प्रस्तावों का इस्तेमाल कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए करता रहा है। 
 
ख्यात विश्लेषक ब्रह्म चेलानी का कहना है, 'भारत ने 1960 में यह सोचकर पाकिस्तान से इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे कि उसे जल के बदले शांति मिलेगी लेकिन संधि के अमल में आने के 5 साल बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर 1965 में हमला कर दिया था।' चेलानी का कहना है कि चीन, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में बड़े बांध बना रहा है और पाकिस्तान भारत की छोटी-छोटी परियोजनाओं पर आपत्तियां उठा रहा है और इनके मामले अंतरराष्ट्रीय पंचाट में ले जाता है जबकि चीन जैसे बड़े देश अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की बात ही नहीं करते या फिर ट्रिब्यूनल का आदेश ही नहीं मानते जैसा कि चीन ने साउथ चाइना सी पर हेग ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। 
 
भारत की तरफ से इस समझौते को निरस्त करने के संकेत दिए गए हैं, पर ऐसा करना इतना आसान नहीं है। भारत, पाकिस्तान के अलावा इस समझौते के दूसरे हिस्सेदार भी हैं। इसके अलावा भारत की तरफ से उठाया गया कोई भी एकतरफा कदम चीन, नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों के साथ जल बंटवारे की व्यवस्था को प्रभावित करेगा, विशेष रूप से तब जबकि भारत ने सिन्धु जल समझौते के जैसा ही एक प्रस्ताव चीन को भी दिया है। इस प्रस्ताव में चीन ऊपरी नदी तट राज्य है जबकि भारत निचला नदी तट राज्य है। 
 
निचले नदी तट राज्य के रूप में भारत, चीन के साथ जल समझौता सुनिश्चित करना चाहता है। ऐसी स्थिति में भारत सिन्धु जल समझौते के निचले नदी तट राज्य पाकिस्तान के खिलाफ एकतरफा कदम उठाने के बारे में कैसे सोच सकता है? भारत की इस कार्रवाई का चीन विरोध कर सकता है, क्योंकि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर ऊपरी तट नदी राज्य की स्थिति में है। ऐसी स्थिति में चीन सैद्धांतिक रूप से कभी भी हाइड्रोलॉजिकल सूचनाएं रोकने के अलावा नीचे की तरफ नदी के बहाव में अवरोध खड़ा कर सकता है। 
 
चीन को लेकर ज्यादा डर इसलिए भी है, क्योंकि पहले भी चीन ने अपने हाइड्रोप्रॉजेक्ट्स की जानकारी भारत को देने की जरूरत नहीं समझी और जब कभी जानकारी दी भी है, तो गलत ही निकली है। समझा जाता है कि चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर कई बांध भी बना लिए हैं और वह अपने हितों को लेकर दुनिया की किसी भी ताकत की परवाह नहीं करता है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए समझौता तोड़ने जैसा अंतिम कदम उठाने की जरूरत नहीं है। इसी समझौते में ऐसे दूसरे उपाय हैं जिनसे भारत, पाक की नकेल कस सकता है।
 
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के पास समझौते को तोड़ने के अलावा दूसरे विकल्प भी हैं। इसमें पश्चिमी नदियों के पानी का खुद इस्तेमाल और सिन्धु जल कमीशन की बैठकों को निरस्त करने के कदम शामिल हैं। इन उपायों से भी भारत अपने पड़ोसी देश पर दबाव बना सकता है, जबकि इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (IDSA) के एक जानकार का कहना है कि समझौते को निरस्त करना न तो व्यावहारिक है और न ही जरूरी। उन्होंने बताया, 'भारत अधिकतम कमीशन की बैठकों को निरस्त करने का कदम उठा सकता है। हालांकि ज्यादा व्यावहारिक कदम सिन्धु सिस्टम की पश्चिमी नदियों के पानी का इस्तेमाल है। ऐसा करना सिन्धु जल समझौते के फ्रेमवर्क के अंतर्गत ही होगा।'
 
भारत चाहे तो तीनों 'पश्चिमी नदियों' सिन्धु, चिनाब और झेलम के पानी का भी इस्तेमाल अपने घरेलू कामों, सिंचाई और पनबिजली के लिए कर सकता है, पर अगर सिन्धु संधि टूटती है तो पाकिस्तान की फसल का बड़ा हिस्सा इन नदियों के पानी पर ही निर्भर करता है। पानी न मिलने से पाकिस्तान के लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। यह समझौता पाकिस्तान के लिए जीवनरेखा (लाइफलाइन) जैसा है। इस पर आंच आने पर पाकिस्तान सरकार पर जनता का दबाव काफी ज्यादा बढ़ जाएगा। पाकिस्तान को विवश होकर भारत की शर्तों को मानना ही होगा।
 
कूटनीतिक और रणनीतिक मोर्चे पर दबाव बढ़ाने से इसमें सिन्धु समझौते के सहारे पाकिस्तान पर ज्यादा दबाव बनाया जा सकता है। भारत अब इस संबंध में निर्णायक कार्रवाई की तैयारी में जुट गया है जिसके चलते शुक्रवार को केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने अधिकारियों के साथ बैठक कर सिन्धु नदी के समझौते को रद्द करने संबंधी उपायों पर चर्चा की। भारत जल्द ही इस संधि की समीक्षा करेगा। 
 
इसी कड़ी में शुक्रवार को केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने नई दिल्ली में अधिकारियों के साथ बैठक कर सिन्धु नदी के नियमों और प्रावधानों पर विचार किया। एक विशेषज्ञ का कहना है कि भारत समझौते के तहत पश्चिमी नदियों से 36 लाख एकड़ फीट पानी स्टोर करने का अधिकार है जिसके तहत यह 7 लाख एकड़ जमीन पर लगी फसलों को पानी दिया जा सकता है और जम्मू-कश्मीर के लिए बिजली भी पैदा की जा सकेगी जिससे देश के कई राज्यों के लोगों को भी लाभ मिलेगा।
 
परंतु यह सब तभी संभव है, जब भारत सरकार अपनी पूरी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ इस आशय का फैसला कर ले।

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