Shaheedi diwas 2024 : शहीद भगत सिंह के बारे में 10 रोचक बातें

HIGHLIGHTS
 
• भगत सिंह के बारे में जानिए।
• भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे भगत सिंह। 
• भगत सिंह बलिदान दिवस पर विशेष।
 
Bhagat Singh : महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का नाम भारत के अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। भगत सिंह का शहीद दिवस 23 मार्च को मनाया जाता है। आइए जानते हैं उनके बारे में 10 खास बातें...
 
1. क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 27 या 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।
 
2. 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। वे करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे।
 
3. भगत सिंह ने 14 वर्ष की आयु में ही सरकारी स्‍कूलों की पुस्‍तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्‍टर गांवों में छपने लगे। भगत सिंह पहले महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्‍य थे। सन् 1921 में जब चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद गांधी जी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए। उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 
 
4. भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने की लूट की घटना को साथ मिलकर अंजाम दिया था। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। 
 
5. जब काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो। वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। भगत सिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते। 
 
6. भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने 'अकाली' और 'कीर्ति' दो अखबारों का संपादन भी किया। भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे।
 
7. लाहौर में 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चंद्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे।
 
9. मात्र 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में उन्होंने फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगत सिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। 
 
8. भगत सिंह करीब दो साल जेल में रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। उन्होंने  अपने लेखों में कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। भगत सिंह ने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था 'मैं नास्तिक क्यों हूं'? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।
 
10. भगत सिंह फांसी पर जाने से पहले वे 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी। भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई। भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं, बल्कि एक अध्ययनशील विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान व्यक्तित्व के धनी भी थे। आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं।

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