जी-77 में पड़ी दरार!

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कोपनहेगन सम्मेलन में प्रतिनिधियों को इस बार उपहार की किट नहीं दी जाएगी। इससे जो राशि बचेगी उसका उपयोग डेनमार्क के विश्वविद्यालय छात्रवृत्ति के रूप में करेंगे। यह रचनात्मक पहल डेनमार्क की सरकार ने की है। पूरी दुनिया से 11 युवाओं का चयन जलवायु संबंधी शोध छात्रवृत्ति के लिए किया जाएगा।

जलवायु परिवर्तन पर हो रहे ऐतिहासिक सम्मेलन में भारत और तीन अन्य देशों द्वारा जी-77 में बाँटे गए संधि के प्रारूप पर मतभेद स्पष्ट रूप से नजर आए। अल्पविकसित देशों और छोटे द्वीपीय देशों, जलवायु परिवर्तन से जिनका अस्तित्व सबसे खतरे में है, के गठबंधन ने ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन के प्रारूप पर कड़ा ऐतराज जताया। वे उत्सर्जन में कमी और फाइनेंसिंग के प्रावधानों से खफा हैं।

जी-77 में मौजूद अल्पविकसित देशों के समूह के प्रमुख ब्रूनो सेइल्सो सेकोली ने कहा-'विकासशील देशों ने अल्पविकसित देशों के विशेष हालात को बहुत अच्छे से नहीं समझा है। अल्पविकसित देश एक साथ आवाज उठाएँगे और अन्य प्रारूप लाने का अधिकार माँगेंगे।' एक और चिंतनीय खुलासा सामने आया है कि वर्ष 2009 इतिहास का पाँचवाँ सबसे गर्म साल होगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया कि वर्ष 2009 के इतिहास के सबसे गर्म वर्ष रहने की आशंका है।

संगठन ने बताया कि जब से वैश्विक तापमान रिकॉर्ड करने का काम शुरूहुआ है, तब से रिकॉर्ड पर यह वर्ष पाँचवाँ सबसे गर्म साल रहेगा। वर्ष 1998 सबसे गर्म वर्ष था। इसके अलावा मौजूदा दशक के मानवीय इतिहास के सबसे गर्म दशक रहने का भी अनुमान जताया गया है। यह 90 के दशक से भी गरम रहने की संभावना है। 90 का दशक 80 के दशक से ज्यादा गरम रहा था।

भारत ने कहा है कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्य समझौता करें। राजनीतिक समझौते से काम नहीं चलेगा। जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री के दूत श्याम सरन ने कोपनहेगन में संधि के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी कि वार्ताएँ कानूनी रूप से बाध्य समझौते तक नहीं पहुँच पाएँगी और सरकारों को राजनीतिक समझौते से ही संतोष करना पड़ेगा।

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