डेनमार्क का मसौदा लीक

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जलवायु परिवर्तन पर चल रहे सम्मेलन में मेजबान डेनमार्क का मसौदा लीक हो जाने पर बवाल मच गया है। लीक मसौदे में धनी देशों को अधिक अधिकार देने और विकासशील देशों पर अधिक शर्तें थोंपने के साथ कई विवादास्पद बातों का जिक्र है। भारत और चीन समेत कई देशों ने इसकी कड़ी आलोचना की है। भारत ने कहा कि सिर्फ विकासशील देशों पर कानूनी रूप से बाध्य लक्ष्य थोंपना उचित नहीं है।

ब्रिटेन के अखबार 'गार्जियन' के अनुसार मसौदे में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की वार्ताकार की भूमिका खत्म कर दी जाए और कानूनी रूप से बाध्य क्योटो संधि को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाए। यह मसौदा धनी देशों के छोटे-से समूह ने तैयार किया है, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और डेनमार्क शामिल हैं। मसौदे में विकासशील देशों से कहा गया है कि वे वर्ष 2050 तक प्रति व्यक्ति1.44 टन कार्बन से अधिक उत्सर्जन नहीं करने के लिए सहमत हों, जबकि विकसित देशों के लिए यह सीमा सिर्फ 2.67 टन रहेगी।

एनजीओ फोकस ऑन ग्लोबल साउथ के निदेशक वाल्डन बेलो ने कहा कि यह धनी देशों का स्पष्ट धोखा है। चीनी वार्ताकार ने कहा कि अमेरिका का उत्सर्जन लक्ष्य उल्लेखनीय नहीं है, योरपीय संघ का पर्याप्त नहीं है और जापान ने असंभव शर्त रख दी है। पर्यावरणविद डीके रॉय ने कहा कि धनी देशों को अपने उत्सर्जन लक्ष्यों से मतलब नहीं है। वे विकासशील देशों पर शर्तें थोपना चाहते हैं, जो गलत है।

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रूस ने कहा है कि वह क्योटो प्रोटोकाल के स्थान पर होने वाली ऐसी किसी भी संधि से संतुष्ट नहीं होगा, जो केवल विकसित देशों को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की जिम्मेदारी देती हो। पर्यावरणीय समस्या विभाग के प्रमुख ओलेग शमानोव ने कहा कि सम्मेलन शुरू हो गया है फिर भी सभी पक्षों के बीच मतभेद उभर आया है।

कोपनहेगन में यह चिंता जोर पकड़ रही है कि सम्मेलन में समझौते के नाम पर कई देशों को अधूरे राजनीतिक कागजात पर दस्तखत करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। प्रधानमंत्री के दूत श्याम सरन ने कहा कि सम्मेलन में कोई भी 'अधपका' कागज समझौते के लिए पेश नहीं किया जाना चाहिए। श्री सरन ने कहा कि सभी जी-77 और चीन इस मुद्दे पर एकजुट हैं।

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