क्या कृषि कानूनों पर रोक लगा सकता है सुप्रीम कोर्ट, जानिए विशेषज्ञों की राय

सोमवार, 11 जनवरी 2021 (22:48 IST)
नई दिल्ली। विधि विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों पर उच्चतम न्यायालय रोक नहीं लगा सकता, जब तक कि वह संतुष्ट न हो जाए कि पहली नजर में यह असंवैधानिक और गैरकानूनी है। विशेषज्ञों ने विवादास्पद कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी पर ऐतराज जताने वाले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की राय से सहमति जताई।

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब तक न्यायालय यह नहीं पाए कि अमुक कानून से मौलिक अधिकारों या संवैधानिक योजनाओं का हनन होता है और उन्हें संसद की विधाई योग्यता के बगैर बनाया गया, तब तक उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।

उन्होंने कहा, कानून बनाने के अधिकार के बगैर ही बनाए गए कानून पर रोक लगाई जा सकती है लेकिन किसी भी याचिकाकर्ता ने ऐसे मुद्दे नहीं उठाए हैं।शीर्ष अदालत ने किसान आन्दोलन से निबटने के रवैए को लेकर सोमवार को सरकार को आड़े हाथ लिया और कहा कि वह इन कानूनों पर अमल स्थगित कर दे और अन्यथा न्यायालय द्वारा नियुक्त की जाने वाली उच्चस्तरीय समिति की सिफारिश पर वह स्वयं ऐसा कर देगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता और संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों पर उच्चतम न्यायालय रोक नहीं लगा सकता, जब तक कि वह संतुष्ट न हो जाए कि प्रारंभिक नजर में यह असंवैधानिक और गैरकानूनी है।

द्विवेदी ने कहा, यह बहुत लंबा आदेश है, सरकार को पर्याप्त रूप से बिना सुने ही ऐसा कहा गया। बड़ी संख्या में किसानों का प्रदर्शन करना, आधार नहीं हो सकता कि अदालत कानून पर रोक लगा दे। यह कानून निर्माताओं के विवेक पर निर्भर करता है और यह अदालत के दायरे के बाहर का विषय है।

उन्होंने कहा, अदालत यह नहीं कह सकती है लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, इसलिए हम कानून पर रोक लगा देंगे। मैं अटॉर्नी जनरल से सहमत हूं कि जब तक यह असंवैधानिक नहीं होता, कृषि कानूनों पर रोक नहीं लगाई जा सकती।

वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन काटरकी ने कहा कि शीर्ष अदालत के पास संसद के कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की शक्ति है, बशर्ते कि वह संतुष्ट हो जाए कि संसद के पास विधाई योग्यता नहीं थी।

उन्होंने कहा, उच्चतम न्यायालय के पास संसद के कानून के अमल पर रोक लगाने की शक्ति है। अगर न्यायालय पहली नजर में संतुष्ट है कि कानून बनाने में संसद ने विधाई योग्यता नहीं थी और अधिनियम संविधान के किसी प्रावधान से असंगत हो तो वह रोक के पक्ष में आदेश दे सकता है।

उन्होंने कहा, संतुलन बनाने पर विचार करते हुए न्यायालय कंपकंपाती ठंड में किसानों के लंबे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन का संदर्भ ले सकता है।द्विवेदी ने कहा, उच्चतम न्यायालय कानून पर रोक लगा सकता है, लेकिन मैं न्यायाधीशों से सहमत नहीं हूं कि वे रोक लगा देंगे और कमेटी का गठन करेंगे।

अदालत अगर ऐसा करती है तो यह शीर्ष अदालत की जगह एक प्रशासक की तरह व्यवहार करने वाला रुख होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अजित कुमार सिन्हा ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर सरकार इन कानूनों का अमल स्थगित नहीं करती है तो वह उन पर रोक लगा सकती है।

सिन्हा ने कहा, मामला सुलझाने तक इसके अमल पर रोक लगाई जा सकती है। अदालत ऐसा कर सकती है, क्योंकि वार्ता जारी है और इसमें जनहित का भी मुद्दा है। उच्चतम न्यायालय के वकील अश्वनी कुमार दुबे ने कहा कि शीर्ष अदालत कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा सकता है, जैसा कि उसने मराठा आरक्षण के मामले में किया।

हम अपने हाथों पर किसी का खून नहीं चाहते : उच्चतम न्यायालय ने कड़ाके की सर्दी में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों की स्थिति पर चिंता जताते हुए सोमवार को आशंका व्यक्त की कि कृषि कानूनों के खिलाफ यह आन्दोलन अगर ज्यादा लंबा चला तो यह हिंसक हो सकता है और इसमें जानमाल का नुकसान हो सकता है। न्यायालय ने कहा, हम नहीं चाहते कि हमारे हाथों पर किसी का खून लगे।

साथ ही प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने सर्दी और कोविड-19 महामारी के मद्देनजर कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत वृद्ध किसानों, महिलाओं और बच्चों से अपने घरों को लौटने का आग्रह किया। उन्होंने किसानों को समझाने का आग्रह करते हुए कहा कि लोग सर्दी और महामारी की स्थिति से परेशानी में हैं। किसानों के लिए सर्दी से न सही, लेकिन कोविड-19 का खतरा तो है।

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आन्दोलन से उत्पन्न स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक वार्ता पर गहरी निराशा व्यक्त की और टिप्पणी की, केन्द्र ने बगैर पर्याप्त सलाह मशविरे के ही ये कानून बना दिए।

पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी प्रकार की हिंसा और लोगों की जान जाने की संभावना को लेकर चिंतित है।पीठ ने कहा, हम सभी पर इसकी जिम्मेदारी है। एक छोटी सी घटना भी हिंसा भड़का सकती है। अगर कुछ भी गलत हो गया तो हम सभी इसके लिए जिम्मेदार होंगे। हम नहीं चाहते कि हमारे हाथों पर किसी का खून लगा हो।साथ ही पीठ ने कहा कि वह कानून तोड़ने वाले किसी को बचाने नहीं जा रही, वह लोगों की जानमाल की हिफाजत चाहती है।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने केन्द्र से इन कानूनों को बनाने के लिए अपनाई गई सलाह-मशविरे की प्रक्रिया के बारे में जानना चाहा। पीठ ने कहा कि इस गतिरोध को दूर करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया से वह बहुत ही निराश है।

पीठ ने कहा, आपने पर्याप्त सलाह-मशविरे के बगैर ही इन कानूनों को बनाया है। अत: आप ही इस आन्दोलन का हल निकालें। हमें नहीं मालूम कि ये कानून बनाने से पहले आपने विचार-विमर्श का कौनसा तरीका अपनाया। कई राज्य इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।शीर्ष अदालत ने इस गतिरोध को दूर करने के लिए देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का सुझाव दिया।

पीठ ने कहा कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढा से पूछा जा सकता है कि क्या वे इस समिति की अध्यक्षता के लिए तैयार हैं। पीठ ने कहा कि उसने पूर्व प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम से बात की थी लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उन्हें हिन्दी समझने में दिक्कत है।

पीठ ने सॉलिसीटर जनरल से कहा कि वह दो-तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों के नाम बताएं जो न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की अध्यक्षता कर सकें। मेहता ने पीठ से कहा कि जब बैठक में शामिल होने के लिए मंत्री बैठते हैं, तो सरकार के साथ बातचीत के लिए आने वाले किसानों के प्रतिनिधियों में से कुछ अपनी कुर्सियां घुमाकर या अपनी आंखों और कानों को ढंक कर बैठ जाते हैं।(भाषा)

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