Flashback 2020: ‘कोरोना वायरस’ जिसने बदल दिया ‘हिंदी साहित्‍य’ का मंच


पि‍छले कुछ महीनों से महामारी ने जीवन, समाज, साहि‍त्‍य दर्शन और व्‍यापार सभी पर असर डाला है। बहुत सी चीजें और विषय पूरी तरह से बदल चुके हैं। व्‍यापारी अपने धंधे और मुनाफे के लिए परेशान है। लेखक अपनी रचना और साहि‍त्‍य के लिए आशंकित है। वहीं एक आध्‍यात्‍मिक आदमी का नजरि‍या, दर्शन और उसकी आस्‍था भी बहुत हद तक प्रभावित हुई है। ये सारा असर सोशल मीडिया पर साफ नजर आ रहा है। खैर, फि‍लहाल बात करते हैं कोरोना के दौर में हिंदी साहित्‍य में आए बदलाव की।

कोरोना महामारी के संकट ने दूसरी चीजों की तरह ही साहि‍त्‍य को भी प्रभावित किया है। कई प्रकाशन बंद पड़े हैं। कई किताबें छापेखानों में प्रतीक्षा कर रही हैं। दिल्‍ली, भोपाल से लेकर देश की कई राजधानियों में हर साल लगने वाले साहि‍त्‍यि‍क मंच सूने हो गए हैं। लाइब्रेरी धूल खा रही हैं।

इसके साथ ही इस वायरस ने कवि और लेखकों को लिखने के लिए नए बिंब दिए हैं। उनके सोचने का तरीका और नजरियां भी बदल दि‍या है। अब इस वैश्‍व‍िक महामारी पर कविताएं और कहानियां लिखी जा रही हैं। अपनी निजी डायरी को ‘कोरोना डायरी’ या ‘लॉकडाउन डायरी’ कहा जा रहा है।

कहा जा सकता है कि अब बहुत सी साहित्‍यि‍क रचनाओं में कोरोना वायरस उसका केंद्र या उसका बिंब होगा। ठीक उसी तरह जैसे विश्‍वयुद्ध के दौर में कई लेखकों के उपन्‍यास और कविताओं में उस त्रासदी का दंश उभरकर आया था। ऐसे कई लेखक और कवि हैं जिनकी साहित्‍य‍िक रचनाओं में विश्‍वयुद्ध का प्रभाव नजर आता है।

हालांकि साहित्‍य की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ कभी रुकती नहीं है। जिस तरह से एक व्‍यापारी की किराना की शॉप लॉकडाउन के दौरान बंद रही, वैसे साहि‍त्‍य की अभि‍व्‍यक्‍त‍ि कभी बंद नहीं हुई है। साहित्‍य सृजन हर हाल में जारी रहा।  
ऐसे में सोशल मीडि‍या की भूमिका बेहद अहम तौर से उभरकर सामने आई है। सोशल मीडि‍या चाहे वो फेसबुक हो या ट्व‍िटर। साहि‍त्‍य के लिए एक बड़े मंच के तौर पर उभरकर सामने आए हैं।

आलेख और कवि‍ता या कहानी के अंश पहले भी फेसबुक पर पोस्‍ट किए जाते रहे हैं। लेकिन अब जिस तरह से इसे एक अवसर के तौर पर इस्‍तेमाल किया जा रहा है यह बेहद ही अच्‍छी बात है। कोरोना टाइम में फेसबुक के माध्‍यम से साहित्‍य का संप्रेषण बेतहाशा तौर पर बढ़ा है। जो लोग पहले शेयर नहीं करते थे, अब वे भी अपनी कविता, कहानी और डायरी को शेयर कर रहे हैं।

साहित्‍य विमर्श के लिए अब ज्‍यादातर लेखक और कवि फेसबुक पर लाइव आ रहे हैं। इसके साथ ही जूम और स्‍काइप जैसे एपलिकेशन का सहारा लिया जा रहा है। लेखकों के साथ ही पाठक भी इसमें पार्ट‍िसिपेट कर चर्चा कर रहे हैं। गद्य से लेकर पद्य तक की अभिव्‍यक्‍त‍ि हो रही है। यहां सबसे अहम है कि किसी मंच की जरुरत नहीं। किसी किताब की जरुरत नहीं। खासतौर से नए और अप्रकाशि‍त लेखकों के लिए सोशल मीडिया वरदान ही साबि‍त हो रहा है। इसमें उनकी रचनाओं के लिए हाथों-हाथ अच्‍छी और बुरी प्रति‍क्रि‍याएं सामने आ जाती हैं।

एक और अच्‍छी बात यह भी है कि साहित्‍य की बोझि‍ल और उबाऊ महफि‍लों और गोष्‍ठ‍ियों से लोगों को नि‍जात मिली है। यहां स्‍वतंत्रता भी मिली है कि कौन किसे पढ़े या देखे यह उसकी मर्जी है। इसमें साहित्‍यिक पाठ के दौरान किसी बंद कमरे में फंस जाने का डर नहीं कि कोई एक बार कहानी सुनने बैठ गया तो वह बीच में उठ नहीं सकता। जहां अच्‍छा लि‍खा जा रहा है वहां यूसर्ज ठहरते हैं और उसे आगे शेयर करते हैं। जहां ठीक नहीं है वहां बगैर प्रति‍क्रि‍या दिए ही आगे बढ़ जाने की सुवि‍धा है।

हालांकि‍ कई पुराने और स्‍थापि‍त लेखक और कवि सोशल मीडि‍या पर चल रहे साहि‍त्‍य की गंभीरता पर भी सवाल उठा सकते हैं, लेकिन बावजूद इसके उसके रचना धर्म पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। क्‍योंकि कई ऐसे नए लेखक हैं जिन्‍होंने इस प्‍लेटफॉर्म का बेहतर उपयोग कर के कुछ हद तक अपनी जगह बनाई है। ऐसे कई नाम हैं जिनके लेखन और कविता को नकारा नहीं जा सकता है।

इस बात को भी बेहतर तरीके से समझ लिया गया है कि जिस सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म को अब तक हलके में लिया जा रहा था, इस कोरोना काल में वही सबसे ज्‍यादा कारगर साबि‍त हुआ है। चाहे वो सूचना हो, खबर हो, सोशल गेदरिंग हो या साहि‍त्‍य का कोई इवेंट।

खासतौर से साहित्‍य ने अपना नया मंच खोज लिया है। वैसे भी संप्रेषण का मतलब ही यह होता है कि दुनि‍या के किसी अज्ञात कोने में बैठकर अपनी जेब से मोबाइल निकालकर आप अपनी बात लिखे और वह दुनिया के हर कोने तक पढ़ी जाए।

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