दोस्ती, एक स्नेहिल स्पर्श

गायत्री शर्म

WDWD
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज से उसके रिश्तों का ताना-बाना बड़ा ही वृहद होता है। वैसे तो उसके रिश्तों की फेहरिस्त बड़ी लंबी होती है, परंतु कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो जीने का जुनून जगाते हैं, कुछ कर गुजरने की जिद बन जाते हैं क्योंकि उन रिश्तों में 'प्रेरणा' की ऊर्जा निहित होती है। ये रिश्ते उस स्पंदन की अनुभूति होते हैं, जिनका आधार ही दोस्ती की नींव है।

दोस्ती कहें या मित्रता, बोलने-सुनने में भले ही सहज सा लगे परंतु इस आत्मीय रिश्ते की गहराइयाँ पग-पग पर किस तरह हमें अनुकूलता/प्रतिकूलताओं में प्रेरित करती है, हमारा सम्बल बनती है, हमें संभालती है, यह वही समझ सकता है जिसके पास एक अच्छा दोस्त है।

'दोस्ती' वह स्वत: स्फूर्त चेतना है, जिसका आगाज़ नई उम्मीदें जगाता है तो अंजाम लौकिक सफलताओं के शीर्ष पर ले जाता है। कुछ कर गुजरने की ललक जब बढ़ती है तो एक सच्चा दोस्त हमें न केवल प्रेरित करता है बल्कि प्रत्येक कदम पर एक सहारा बनकर उस मंजिल तक ले जाता है, जिसकी हमें तलाश होती है। मैं तो यही कहूँगी कि दोस्ती वह रोशनी है, जिसकी ऊष्मा में रिश्तों की रौनक खिलखिला उठती है।

दोस्त हमेशा उसी तरह साथ निभाता है जैसे हमारा साया। दोस्त होने का अर्थ है एक ऐसा आश्रय, जो हमें इस बात के लिए आश्वस्त करता है कि जीवन के झंझावातों में वह हमेशा हमारा साथ निभाएगा। पतवार बनकर किनारे पर ले जाएगा।

बदलते कालचक्र में भले ही दोस्ती ने नया आयाम ले लिया हो परंतु इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता है कि दोस्ती का रिश्ता आज भी उसी विश्वास, समर्पण और अगाध स्नेह का पर्याय है, जितना कि वह बीते समय में रहा है। चूँकि समय बलवान है इसलिए बदलता रहता है परंतु तमाम रिश्तों में एक सच्चे दोस्त की 'दोस्ती' का रिश्ता समय की धारा के साथ परिवर्तित नहीं बल्कि प्रगाढ़ होता है।

समय की तराजू में जब रिश्तों का वजन तौला जाता है तो हमेशा उसी ओर का पलड़ा भारी रहता है, जिस रिश्ते में नि:स्वार्थ प्रेम और समर्पण का अहसास समाया होता है।

किसी ने ठीक ही कहा है कि तनाव, चिंता और परेशानियों से यदि दूर जाना है तो एक अच्छे दोस्त को हमेशा-हमेशा साथ रखो। दोस्त के सामने हमारा जीवन एक खुली किताब की तरह होना चाहिए क्योंकि शक व संदेह इस रिश्ते को दीमक की तरह भीतर से खोखला कर देते हैं। अहसान और अहंकार दोस्ती में सर्वथा निषेध है। दोस्ती की बुनियाद ही परस्पर प्रेम, सामंजस्य और समर्पण पर आश्रित रहती है।

कुछ रिश्ते तो निभाए जाते हैं मगर यह इकलौता ऐसा है, जिसे जिया जाता है। 'दोस्ती' जिंदादिली का नाम है। 'दोस्त' बनकर दर्द दूर नहीं किया तो दोस्ती क्या खाक निभाई। सुख-दु:ख में दोस्ती ठंडी हवा का झोंका बनकर गले से लिपट जाती है, जिसका स्नेहिल स्पर्श तनाव में भी सुकून देता है।

'दोस्ती' की सरगम पर विश्वास के सुर पैरों में अपनेपन के नुपूर बाँधकर थिरकते हैं। 'दोस्ती' के पर्वत से ही प्रेरणा के झरने बहकर सफलतारूपी सरोवर में जा मिलते हैं। 'दोस्ती' वह जुगनू है, जिसकी टिमटिमाती रोशनी प्रतिकूलताओं की निशा में उम्मीद की किरण की तरह हमेशा जगमगाती रहती है।

'दोस्ती' उस सुरभि का नाम है जिसका अहसास 'अपनत्व' का अनुभव कराता है। कोई कहे 'दोस्त' हमदर्द होता है परंतु सच्चाई तो यह है कि 'दोस्त' वह गुरूर होता है, जिसके आश्रय में हममें मुसीबतों से लड़ने का साहस जाग जाता है।

तो बोलिए... क्या आप बन सकते हैं, ऐसे दोस्त। यदि 'हाँ' तो आज ही के दिन से इसकी शुरुआत कीजिए...।