guru purnima 2020 : जानिए गुरु (व्यास) पूर्णिमा की पौराणिक मान्यता, महत्व, मुहूर्त एवं पूजा विधि

Guru Purnima 2020
 
 
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। यह पर्व महर्षि वेद व्यास को प्रथम गुरु मानते हुए उनके सम्मान में मनाया जाता है। महर्षि वेद व्यास ही थे जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी।
 
पूर्णिमा की तिथि 4 जुलाई 2020 को सुबह 11 बजकर 33 मिनट ले लग जाएगी, जो 5 जुलाई की सुबह 10 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। इस दिन आषाढ़ पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण भी लगेगा। लेकिन इस चंद्र ग्रहण का असर भारत में नहीं होगा, जिसके कारण सूतक मान्य नहीं होगा।
 
पौराणिक मान्यता:-
 
माना जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। चूंकि गुरु वेद व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेद का ज्ञान दिया था इसलिए वे सभी के प्रथम गुरु हुए। इसलिए उनके जन्मदिवस के दिन उनके सम्मान में यह पर्व मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। 
 
कैसे करे गुरु पूर्णिमा के दिन पूजन:- 
 
1- प्रातः घर की सफाई, स्नानादि के बाद घर के किसी पवित्र स्थान पर पाटे पर सफेद वस्त्र बिछाएं व उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं।
 
2- संकल्प:- इसके बाद दाहिने हाथ में जल, अक्षत व पुष्प लेकर 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र पढ़कर पूजा का संकल्प लें।
 
3- उसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ें।
 
 
4- इसके बाद व्यास जी, ब्रह्मा जी, शुक्रदेव जी, गोविंद स्वामी जी और शंकराचार्य जी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करें।
 
5- फिर अपने गुरु की या उनकी फोटो रखकर पूजा करें व उन्हें वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर यथा योग्य दक्षिणा दें और उन्हें प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
 
हिंदू परंपरा में गुरु को ईश्वर से भी आगे का स्थान प्राप्त है तभी तो कहा गया है कि
 
 
'हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर' 
 
अर्थात् यदि प्रभु रूठ गए तो गुरु की शरण में आपका उद्धार हो जाएगा लेकिन यदि गुरु ही रूठ गया तो कहां जाओगे।
 
इस दिन के शुभ अवसर पर गुरु पूजा का विधान है, गुरु के सानिध्य में पहुंचकर साधक को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त होती है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी होता है। वेद व्यास जी प्रकांड विद्वान थे, उन्होंने वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उन्हें वेद व्यास के नाम से पुकारा जाने लगा।
 
 
ज्ञान का मार्ग है गुरु पूर्णिमा :-
 
शास्त्रों में गुरु के अर्थ के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है। गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले होते हैं। गुरु की भक्ति में कई श्लोक रचे गए हैं जो गुरु की सार्थकता को व्यक्त करने में सहायक होते हैं। गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार संभव हो पाता है और गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं हो पाता।
 
 
भारत में गुरु पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल से चली आ रही यह परंपरा हमारे भीतर गुरु के महत्व को परिलक्षित करती है। पहले विद्यार्थी आश्रम में निवास करके गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे तथा गुरु के समक्ष अपना समस्त बलिदान करने की भावना भी रखते थे, तभी तो एकलव्य जैसे शिष्य का उदाहरण गुरु के प्रति आदर भाव एवं अगाध श्रद्धा का प्रतीक बना, जिसने गुरु को अपना अंगूठा देने में क्षण भर की भी देर नहीं की। 
 
गुरु पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उज्ज्वल और प्रकाशमान होते हैं उनके तेज के समक्ष तो ईश्वर भी नतमस्तक हुए बिना नहीं रह पाते। गुरु पूर्णिमा का स्वरूप बनकर आषाढ़ रूपी शिष्य के अंधकार को दूर करने का प्रयास करता है। शिष्य अंधेरे रूपी बादलों से घिरा होता है, जिसमें पूर्णिमा रूपी गुरु प्रकाश का विस्तार करता है। जिस प्रकार आषाढ़ का मौसम बादलों से घिरा होता है, उसमें गुरु अपने ज्ञान रूपी पुंज की चमक से, सार्थकता से पूर्ण ज्ञान का आगमन होता है। 
 
गुरु आत्मा -
 
परमात्मा के मध्य का संबंध होता है गुरु। गुरु से जुड़कर ही जीव अपनी जिज्ञासाओं को समाप्त करने में सक्षम होता है तथा उसका साक्षात्कार प्रभु से होता है। हम तो साध्य हैं किंतु गुरु वह शक्ति है, जो हमारे भीतर भक्ति के भाव को आलौकिक करके उसमें शक्ति के संचार का अर्थ अनुभव कराती है और ईश्वर से हमारा मिलन संभव हो पाता है। परमात्मा को देख पाना गुरु के द्वारा संभव हो पाता है। इसीलिए तो कहा है,
 
 
'गुरु गोविंददोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
 
गुरु पूर्णिमा महत्व :-
 
गुरु को ब्रह्मा कहा गया है। गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है। गुरु ही साक्षात महादेव है, क्योकि वह अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करता है। गुरु का महत्व सभी दृष्टि से सार्थक है। आध्यात्मिक शांति, धार्मिक ज्ञान और सांसारिक निर्वाह सभी के लिए गुरु का दिशा-निर्देश बहुत महत्वपूर्ण होता है। गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं है, अपितु वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है।

 
गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में ले जाने का कार्य करता है, सरल शब्दों में गुरु को ज्ञान का पुंज कहा जा सकता है। आज भी इस तथ्य का महत्व कम नहीं है। विद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों द्वारा आज भी इस दिन गुरु को सम्मानित किया जाता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह-जगह भंडारे होते हैं और मेलों का आयोजन किया जाता है।
 
वास्तव में हम जिस भी व्यक्ति से कुछ भी सीखते हैं, वह हमारा गुरु हो जाता है और हमें उसका सम्मान अवश्य करना चाहिए। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 'गुरु पूर्णिमा' अथवा 'व्यास पूर्णिमा' है। लोग अपने गुरु का सम्मान करते हैं, उन्हें माल्यापर्ण करते हैं तथा फल, वस्त्र इत्यादि वस्तुएं गुरु को अर्पित करते हैं। यह गुरु पूजन का दिन होता है जो पौराणिक काल से चला आ रहा है।

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