हिंदी : दुनिया की बड़ी भाषा

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आँकड़ों के लिहाज से हिन्दी दुनिया की तीसरी बड़ी भाषा है। चाइनीज बोलने वाले 1000 मिलियन, अँगरेजी बोलने वाले 508 मिलियन और हिन्दी बोलने वाले लगभग 497 मिलियन लोग हैं। चूँकि अँगरेजी बोलने वाले दुनिया के लगभग हर देश में हैं इसलिए इस भाषा की पहुँच चाइनीज और हिन्दी के मुकाबले ज्यादा हो गई।

अँगरेजी भाषी देशों जैसे इंग्लैंड और अमेरिका ने दूसरे देशों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष शासन भी किया इसलिए अँगरेजी का विकास भी खूब हुआ, लेकिन पिछले दो दशकों में सरदहें पार कर हिन्दी भाषी लोगों ने भी अपनी पहचान बनाई है। याद रहे कि व्यापार के लिए हिन्दी बोलने का ट्रेंड नया नहीं है, अँगरेजों ने भी भारत आकर लालच में हिन्दी सीखी थी।

भारतीय वैज्ञानिकों, सॉफ्टवेयर इंजीनियरों, व्यवसायियों और छात्रों ने अपनी ग्लोबल पहचान बनाई है। साथ ही भारत के प्रति रुझान रखने वाले भी हिन्दी सीख रहे हैं। अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी में हिन्दी के प्रोफेसर वैन ऑल्फेन कहते हैं- 'जब मैंने हिन्दी सीखी थी तब इस भाषा के प्रति लोगों का रुझान कम था, लेकिन आज अमेरिका में हिन्दी भाषा की सारी कक्षाएँ पैक हैं।' आँकड़ों के लिहाज से भले ही हिन्दी तीसरे क्रम पर हो, लेकिन इसके प्रसार और व्यापकता के चलते हम हिन्दी को अँगरेजी के समकक्ष दूसरे क्रम पर रख सकते हैं।

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अब अँगरेजी से लोग चमकते नहीं! :- पहले हमारे आसपास अगर कोई अँगरेजी बोलता था तो लोग विस्मित होकर देखने लगते थे। लेकिन स्कूलों में अँगरेजी की पढ़ाई, टीवी, अखबार और उच्च शिक्षा ने लोगों को अँगरेजी पर अपना अधिकार जमाने का अवसर प्रदान किया है। बल्कि यूँ कहें कि अँगरेजी पर पकड़ होने से लोगों का उसके प्रति 'फेसिनेशन' कम हो गया। दूसरी तरफ प्रसार माध्यमों ने हिन्दी के साहित्यिक स्वरूप से निकलकर बोलचाल वाले स्वरूप को अपनाया। हिन्दी अखबारों, न्यूज चैनल्स और फिल्मों में जो भाषा आप देख-सुन रहे हैं वह हकीकत में एक दशक पहले ऐसी नहीं थी।

अगर यह भी कहा जाए कि भाषा के इस नए स्वरूप ने रेडियो और अखबार को नया जीवन दिया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नए माध्यमों जैसे इंटरनेट और सेल्यूलर सेवाओं ने भी हिन्दी को उतनी ही जल्दी स्वीकार किया। आज हर गेजेट जैसे- मोबाइल, एटीएम और आईपॉड भी हिन्दी में ऑपरेट किया जा सकता है। 'वेबदुनिया' जैसे पोर्टल ने हिन्दी में इंटरनेट सेवाएँ देने की जो शुरुआत की थी वह याहू, गूगल ने भी स्वीकार की। आज सारे सर्च इंजन हिन्दी सहित कई अन्य हिन्दुस्तानी भाषाओं में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। यकीनन अगर गूगल या याहू को इस रास्ते पर बिजनेस की महक नहीं आती तो वे हिन्दी को कभी अपनी सेवा में शामिल नहीं करते।

बंदों में है दम :- बकौल प्रसून जोशी, 'शब्दों में बड़ी ताकत है। लेकिन उनके इस्तेमाल और व्यवहार का दायित्व उन लोगों के कंधों पर हो, जो ज्ञान, विवेक, समझदारी और संवेदनशीलता के मामले में ऊँचे सोपानों पर खड़े हैं।' बिजनेस में हिन्दी की ताकत का प्रमाण है हिन्दी फिल्मों का अकाल्पनिक मुनाफा, सैकड़ों हिन्दी न्यूज चैनल और क्रिकेट कॉमेंट्री का हिन्दी में होना। पर इन माध्यमों का स्तर और गुणवत्ता हिन्दी के साथ बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है हिन्दी और हिन्दी भाषी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों का।

ये वे लोग हैं जिन्होंने कॉर्पोरेट और मीडिया जगत में हिन्दी जगत को गति प्रदान की। श्याम बेनेगल, प्रसून जोशी, किशोर बियाणी, आशुतोष राणा, पीयुष पांडे, चारू शर्मा, मृणाल पांडे, नवजोतसिंह सिद्धू इसके कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण है।

इन्हीं लोगों द्वारा आगे बढ़कर कदम उठाने के कारण अब सेलेब्रिटीज हिन्दी में मीडिया से बात करने में कतराते नहीं। महानगरों में हाइपर मॉल्स की बड़ी दुकानों के नाम अँगरेजी के साथ हिन्दी में भी लिखे जा रहे हैं। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में 'पंडित' और 'लोटा' जैसे शब्द समाहित किए जा रहे हैं। इंटेल जैसी कंपनी अपने विज्ञाबन कैंपेन को हिन्दी में चलाने पर मजबूर हुई है।

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