27 नवंबर : हरिवंश राय बच्चन की जयंती, जानें उनकी रचनाएं

harivansh rai bachchan : हिन्दी साहित्य जगत में हरिवंश राय बच्‍चन सबसे अधिक प्रिय कवि रहे हैं। 27 नवंबर को उनका जन्मदिन मनाया जाता है। हरिवंश राय बच्‍चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को प्रयागराज में हुआ था। उन्होंने अपनी लेखनी से गद्य और पद्य दोनों विधाओं में सरलता और सहजता के साथ जीवन दर्शन को प्रस्‍तुत किया, इसीलिए आज भी काव्य प्रेमियों में उनकी लोकप्रियता सर्वोच्च शिखर पर है। 'मधुशाला' के रचयिता रहे डॉ. हरिवंश राय बच्चन हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। 
 
आइए यहां पाठकों के लिए प्रस्‍तुत हैं बच्चन जी की रचनाओं का संक्षिप्‍त परिचय-
 
आत्मकथा / रचनावली
 
क्या भूलूं क्या याद करूं(1969)
नीड़ का निर्माण फिर(1970)
बसेरे से दूर (1977)
दशद्वार से सोपान तक (1965)
बच्चन रचनावली के नौ खण्ड (1983)
 
कविताएं :
 
तेरा हार (1932)
मधुशाला (1935)
मधुबाला (1936)
मधुकलश (1937)
निशा निमंत्रण (1938)
एकांत संगीत (1939)
आकुल अंतर (1943)
सतरंगिनी (1945)
हलाहल (1946)
बंगाल का काव्य (1946)
खादी के फूल (1948)
सूत की माला (1948)
मिलन यामिनी (1950)
प्रणय पत्रिका (1955)
धार के इधर उधर (1957)
आरती और अंगारे (1958)
बुद्ध और नाचघर (1958)
त्रिभंगिमा (1961)
चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962)
दो चट्टानें (1965)
बहुत दिन बीते (1967)
कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968)
उभरते प्रतिमानों के रूप (1969)
जाल समेटा (1973)
 
विविध
 
बचपन के साथ क्षण भर (1934)
खय्याम की मधुशाला (1938)
सोपान (1953)
मैकबेथ (1957)
जनगीता (1958)
ओथेलो(1959)
उमर खय्याम की रुबाइयां (1959)
कवियों के सौम्य संत: पंत (1960)
आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत (1960)
आधुनिक कवि (1961)
नेहरू: राजनैतिक जीवनचित्र (1961)
नये पुराने झरोखे (1962)
अभिनव सोपान (1964)
चौसठ रूसी कविताएं (1964)
डब्लू बी यीट्स एंड औकल्टिज़्म (1968)
मरकट द्वीप का स्वर (1968)
नागर गीत) (1966)
बचपन के लोकप्रिय गीत (1967)
हैमलेट (1969)
भाषा अपनी भाव पराये (1970)
पंत के सौ पत्र (1970)
प्रवास की डायरी (1971-1972)
टूटी छूटी कड़ियाँ(1973)
मेरी कविताई की आधी सदी (1981)
सोहं हँस (1981)
आठवें दशक की प्रतिनिधी श्रेष्ठ कविताएं (1982)
मेरी श्रेष्ठ कविताएं (1984)
 
सभी में हरिवंश राय बच्‍चन की सबसे लोकप्रिय कविता 'मधुशाला' बहुत चर्चित रही है-
 
कविता : मधुशाला
 
मदिरालय जाने को घर से 
चलता है पीनेवाला, 
'किस पथ से जाऊं?' 
असमंजस में है वह भोलाभाला; 
अलग-अलग पथ बतलाते सब 
पर मैं यह बतलाता हूं-
'राह पकड़ तू एक चला चल, 
पा जाएगा मधुशाला'।
 
पौधे आज बने हैं साकी 
ले-ले फूलों का प्याला, 
भरी हुई है जिनके अंदर 
परिमल-मधु-सुरभित हाला, 
मांग-मांगकर भ्रमरों के दल 
रस की मदिरा पीते हैं, 
झूम-झपक मद-झंपित होते, 
उपवन क्या है मधुशाला!
 
एक तरह से सबका स्वागत 
करती है साकीबाला, 
अज्ञ-विज्ञ में है क्या अंतर 
हो जाने पर मतवाला, 
रंक-राव में भेद हुआ है 
कभी नहीं मदिरालय में, 
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक 
है यह मेरी मधुशाला।
 
छोटे-से जीवन में कितना 
प्यार करूं, पी लूं हाला, 
आने के ही साथ जगत में 
कहलाया 'जानेवाला', 
स्वागत के ही साथ विदा की 
होती देखी तैयारी, 
बंद लगी होने खुलते ही 
मेरी जीवन-मधुशाला!

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