हिन्दी कविता : सियासत

गरीब की रोटी से
लटकती सियासत
 
किसान खून से
लथपथ सियासत
 
कभी सत्ता में
कभी विपक्ष में
सियासत
 
कभी जीत में
कभी हार में
सियासत
 
अभिव्यक्ति के नाम पर
नंगी नाचती सियासत
 
सेना को कोसकर
मुस्कुराती सियासत
 
धार्मिक उन्माद को
धधकाती सियासत
 
गरीबों के धंधों को
धूल में मिलाती सियासत
 
माल्या के कर्जों को
जनता से वसूलती सियासत
 
अपने ही पैसों के लिए
हमको तरसाती सियासत
 
सांसों पर भी टैक्स
लगाती ये सियासत
 
मीडिया को भोंपू
बनाती ये सियासत।
 
जेएनयू में भारत विरोधी
नारे लगाती ये सियासत।
 
भारत का खाकर
पाकिस्तान चिल्लाती
ये सियासत।
 
जातिवाद, भाषावाद में
मुस्कुराती ये सियासत।
 
सामाजिक सरोकारों से
दूर जाती सियासत।
 
देश के गद्दारों संग
चाय पीती सियासत।
 
बेशर्मी की सारी हदें
पार करतीं सियासत।

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