रसिया, द डांस ऑफ डिजायर : कला, प्रेम और रिश्तों का सुंदर समीकरण

उपन्यासकार कोरल दासगुप्ता से बातचीत पर आधारित 
 
नृत्य, कला की सर्वश्रेष्ठ सौंदर्य अभिव्यक्ति है। भरतनाट्यम उस अभिव्यक्ति का सबसे विशिष्ट रूप है। भव्यता, भंगिमाएं, दिव्यता और सौम्यता इस विधा के खूबसूरत तत्व हैं। कोरल दासगुप्ता, नृत्यांगना नहीं है लेखिका हैं। बचपन में भरतनाट्यम के शोज् देखते हुए उनके मन में जो कोमल अनुभूतियां पनपी, वे उसी समय यह सुनिश्चित कर चुकी थीं कि एक न एक दिन इन्हें अपने लेखन में जरूर उतारेंगी और इसी का सुखद परिणाम है उनका ताजा और बेहद खूबसूरत उपन्यास रसिया, द डांस ऑफ डिजायर (Rasia, The Dance of Desire)... उनके इस उपन्यास की हर तरफ चर्चा है। कारण स्पष्ट है कि रसिया, द डांस ऑफ डिजायर में वह सब है जो एक नाजुक मन पढ़ना चाहता है, जो एक सच्चा कलाकार महसूस करता है, जो अपने रिश्तों में ताजगी चाहता है और जो मन की सबसे खूबसूरत अनुभूति प्रेम में है, प्रेम में होना चाहता है.... 
 
'फॉल विंटर कलेक्शंस' के बाद उनके नवीनतम उपन्यास रसिया, द डांस ऑफ डिजायर के बहाने जब हमने कोरल से बात की तो प्रेम और रिश्तों को लेकर इतनी गहरी और मीठी बातें सामने आई जो सिर्फ और सिर्फ एक संवेदनशील लेकिन संतुलित व्यक्तित्व ही कर सकता है। 
 
कोरल के अनुसार वह लिखती तो रहीं पर उपन्यास लेखन उन्होंने बहुत देरी से लिखना आरंभ किया। वह मार्केटिंग की प्रोफेसर हैं। उनकी पहली किताब अकादमिक थी वह इस तरह सामने आई जब वे अपने जीवन के सबसे दिव्य अनुभव से गुजर रहीं थीं। जब उनके भीतर एक और जिंदगी धड़क रही थी।

वे प्रेग्नेंट थी, तब उन्हें कई तरह की प्यार भरी पाबंदियों का सामना करना पड़ा इस दौरान उन्होंने जो लिखा वह यह सोचकर नहीं लिखा कि कहीं छपेगा तब बस इतना ही ख्याल था कि मार्केटिंग के नोट्स बन रहे हैं। उनके प्रकाशक मित्र ने देखा और इस तरह  पहली किताब उनके हाथ में आ गई....
 
रसिया, द डांस ऑफ डिजायर उनका ताजा उपन्यास है जिसकी मूल भावना प्रेम है।

प्रेम को कोरल परिभाषित करती है- प्रेम वह है जब आपको कुछ देने से खुशी मिलती है। वह मानती हैं कि प्रेम नहीं बदला है पैशन बदला है, एक्सप्रेशन बदले हैं, फैशन बदला है।

प्रेम की गहराई वैसी नहीं रही पर आज भी प्रेम का मनोवैज्ञानिक असर तो होता है। मोहब्बत वही है... रिश्ते कई बार जरूरत से बनते हैं जरूरी नहीं उनसे मोहब्बत भी हो। एक साथ समय बिताने पर हम अपने आप बंधते चले जाते हैं. .. चाहे मैंटली या फिजिकली तब अपने आप वह रिश्ता मोहब्बत में उतरने लगता है। मान लीजिए मेरा कंप्यूटर है अगर मैं उसके साथ समय बहुत बिताती हूं तो वह वहां भी मेरा एक रिश्ता है। पर कोई भी रिश्ता टूटने के बाद बहुत दुखता है। भीतर ही भीतर बहुत कुछ चटकता है। 
 
रसिया, द डांस ऑफ डिजायर के बारे में कोरल कहती है...इसमें प्रेम त्रिकोण है, दो व्यक्ति के बीच जो तीसरी लड़की है उसकी अपनी यात्रा है। यह जो तीसरी लड़की है वह भी इसी समाज की वास्तविकता है। इसी समाज का सच है उसे आप नकार नहीं सकते। वह अपने गुरु से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण ले रही है लेकिन उसे उनकी कला भरतनाट्यम के साथ गुरु भी चाहिए। दूसरी तरफ गुरु की कश्मकश है। इन सबके बीच मु्स्कुराती और कराहती कला व व्यावसायिकता की जंग है। पत्नी मानसी की दृढ़ता है...वत्सला का उद्दाम आवेग है, शेखर की असमंजसता है...
 
कोरल मानती हैं कि जो अपनी कला को दिल से जीते हैं वो इंसान अपनी निजी जिंदगी में चाहे जो कर जाए लेकिन जिस दुनिया में उनकी असली विस्तार है वहां वो कभी बगावत नहीं करेंगे... कई बार पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ की यह आइडॅलॉजिकल डिफरेंस बहुत गंभीर संघर्ष का आकार लेता है। 

यह उसकी अपनी कला के प्रति गंभीरता है, समर्पण है और वहीं हमें आकर्षित करता है। आगे बढ़ने के लिए जिस तरह कला में व्यावसायिकता का सुंदर तालमेल जरूरी है उसी तरह व्यवसाय में कला और रचनात्मकता का कोमल अभिस्पर्श अपने क्षेत्र में अलग मुकाम बनाने में सहायक होता है। 
 
नारीवाद को लेकर कोरल के विचार बहुत स्पष्ट हैं वे कहती हैं मेरा नारीवाद प्रचलित नारीवाद से बिलकुल अलग है। मैं फेमेनिज्म के नाम पर हो रहे गलत आंदोलनों का समर्थन नहीं करती। मेरा नारीवाद पुरुष के साथ होने में विश्वास रखता है।
 
आजकल की लड़कियों का इरलेवेंट बातें कर शॉक वैल्यू क्रियेट करना, पुरुषों को अपने दुश्मन की तरह प्रस्तुत करना, बेकार की बात कर उटपटांग चर्चा कर गलत भावनाएं फैलाना ... यह मेरा फैमेनिसज्म नहीं है। मदद की असली जरूरत जिन लड़कियों को है वे आज भी गहरे अंधेरे में हैं और कुछ नारीवाद के नाम पर सिर्फ फायदा उठाने में लगे हैं....  Feminism is the corrupt sister of the cause called gender discrimination. वुमंस डे डिस्काउंट से फैमेनिज्म का पेट बढ़ता है जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को कोई फर्क नहीं पहुंचता.... 
 
और जहां तक सवाल है वुमन इंपावरमेंट महिला सशक्तिकरण का तो मैं इस शब्द, इस नारे का भी विरोध करती हूं कोई होता कौन है हमें सशक्त करने वाला.. ? और अगर सशक्तिकरण की बात है तो कहीं ना कहीं हम मान रहे हैं कि वे कमजोर है जबकि ऐसा नहीं है...अगर हमें सशक्त ही करना है तो सामाजिक सशक्तिकरण पर जोर देना होगा। शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र को सशक्त करना होगा। क्योंकि सोच, सभ्यता और संस्कारों के स्तर पर वह व्यक्ति, वह व्यवस्था कमजोर है जो एक नारी को अपना शिकार बनाते हैं। उसे सुशिक्षित करने की, उसे सभ्य बनाने की जिम्मेदारी भी तो हमारी है। 
 
कोरल की नजर में स्त्री स्वतंत्रता सिर्फ एक नारा भर नहीं है वह अपने लेखन में भी उसे विचारों के स्तर पर प्रखर बताती हैं।

कोरल के अनुसार मेरे स्त्री पात्र कभी सीमाओं का उल्लंघन नहीं करते क्योंकि मेरी नजर में स्वतंत्रता का अर्थ यह कतई नहीं है कि खुद ही अपनी गरिमा से समझौता करें। यही वजह है कि नारी, प्रेम, रिश्ते, कला और व्यवसाय सबको समेटते हुए रचा उनका उपन्यास पाठकों के एक खास वर्ग में अपनी विशिष्ट पहचान बना रहा है। कला की व्यापक परिधि में शेखर, मानसी और वत्सला के रिश्तों से जिंदगी की मासूम अनुभूतियां सहेजने वाले पुस्तक प्रेमी युवाओं के लिए यह उपन्यास वेलेंटाइन गिफ्ट हो सकता है।  

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