श्री राधारानी के 10 अनसुने रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप

भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का जिक्र विष्णु, पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। मान्यता और किवदंतियों के आधार राधा के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। आओ जानते हैं कुछ अनसुनी बातें।
 
 
1. भगवान श्रीकृष्‍ण से श्रीराधा लगभग 5 वर्ष बड़ी थी। कहते हैं कि श्रीरुक्मिणी भी श्रीकृष्ण से उम्र में बड़ी थी। श्रीराधा एक सिद्ध और संबुद्ध महिला थीं। 
 
2. ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड 2 के अध्याय 49 के श्लोक 39 और 40 के अनुसार राधा जब बड़ी हुई तो उनके माता पिता ने रायाण नामक एक वैश्य के साथ उसका संबंध निश्चित कर दिया। रायाण माता यशोदा का सगा भाई था।
 
3. दक्षिण में प्रचलित कथा के अनुसार श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्‍ण को तब देखा था ज‍बकि माता यशोदा ने उन्हें ओखल से बांध दिया था। श्रीकृष्ण को देखकर श्रीराधा बेसुध सी हो गई थी। उत्तर भारतीय मान्यता अनुसार कहते हैं कि वह पहली बार गोकुल अपने पिता वृषभानुजी के साथ आई थी तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था। कुछ विद्वानों के अनुसार संकेत तीर्थ पर पहली बार दोनों की मुलाकात हुई थी।
 
 
4. श्रीराधा का पहला नाम वृषभानु कुमारी था, क्योंकि वह वृषभानु की पुत्री थीं। 
 
5. गर्ग संहिता के अनुसार एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने श्रीराधा और श्रीकृष्ण का बचपन में ही गंधर्व विवाह करवाया था। श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अकसर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे, जहां राधारानी भी अपने पिता के साथ आती थी। वहीं दोनों का विवाह हुआ था।
 
6. श्रीराधा के परिवार को जब पता चला कि यह श्रीकृष्‍ण की मुरली सुनकर उनके प्रेम में नाचती हुई उनके पास पहुंच जाती है तो उन्होंने श्रीराधा को घर में ही कैद कर दिया था। तब श्रीकृष्ण ने अपने साथियों सहित एक दिन उन्हें रात में कैद से मुक्त कराकर उद्धव और बलराम सहित अन्य सखियों के साथ रातभर नृत्य किया था। यह रात पूर्णिमा की रात थी जब महारास हुआ था। बाद में श्रीराधा की मां राधा के कक्ष में गई तो राधा उन्हें वहां सोते हुए मिली।
 
 
7. भगवान श्रीकृष्ण के पास एक मुरली थी जिसे उन्होंने राधा को छोड़कर मथुरा जाने से पहले दे दी थी। राधा ने इस मुरली को बहुत ही संभालकर रखा था और जब भी उन्हें श्रीकृष्ण की याद आती तो वह यह मुरली बजा लेती थी। श्रीकृष्ण उसकी याद में मोरपंख लगाते थे और वैजयंती माला पहनते थे। श्रीकृष्ण को मोरपंख तब मिला था जब वे राधा के उपवन में उनके साथ नृत्य कर रहे मोर का पंख नीचे गिर गया था तो उन्होंने उसे उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया था और राधा ने नृत्य करने से पहले श्रीकृष्ण को वैजयंती माला पहनाई थी।
 
 
8. श्रीराधा राधी की अष्ट सखियां थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। सभी सखियां श्रीकृष्ण और श्रीराधा की सेवा में लगी रहती थीं। सभी के कार्य अलग अलग नियुक्त थे। श्रीधाम वृंदावन में इन अष्टसखियों का मंदिर भी स्थित है।
 
 
9. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गौचारण करते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप धरके श्रीकृष्ण पर हमला करना चाहा लेकिन श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। राधा कुंड क्षेत्र श्रीकृष्ण से पूर्व राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। अरिष्टासुर से ब्रजवासी खासे तंग आ चुके थे। इस कारण श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया था। वध करने के बाद राधाजी ने बताया कि आपने गौवंश के रूप में उसका वध किया है अत: आपको गौवंश हत्या का पाप लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्‍ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधाजी ने भी बगल में अपने कंगन से एक दूसरा कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। श्रीकृष्ण के खोदे गए कुंड को श्‍याम कुंड और राधाजी के कुंड को राधा कुंड कहते हैं।
 
 
10. मथुरा जाने के बाद राधा और कृष्ण का कभी मिलन नहीं हुआ। हां, उधव श्रीकृष्‍ण का संदेश जरूर ले गए थे। कहते हैं कि इसके बाद राधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात द्वारिका में हुई थी। सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।
 
 
कहते हैं कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।

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