मौत के बाद सुभाष चंद्र बोस को नेहरू की अंतिम यात्रा में देखा गया था

subhash chandra bose death
सुभाष चंद्र बोस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। नेताजी का पूरा जीवन किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है क्योंकि उनकी मौत आज भी हर किसी के लिए एक रहस्य है। ऐसा माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 के दिन सुभाष चंद्र बोस का निधन ताइहोकु हवाई एयरपोर्ट पर हवाई हादसे में हो गया था। ऐसा कहा जाता है कि उनके प्लेन ने जैसे ही एयरपोर्ट से उड़ान भरी उसके कुछ ही सेकेंड बाद वो हवा में डगमगाता हुआ नीचे गिर गया। नेताजी इस हादसे में बुरी तरह घायल हुए और कुछ घंटों बाद उन्हें मिलिट्री हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। इस हॉस्पिटल में उन्होंने अपनी आखरी सांस ली। 
 
जापान सरकार ने विमान हादसे से इनकार किया
नेताजी के मौत के कुछ ही दिन बाद जापान सरकार ने कहा था कि ताइवान में उस दिन कोई विमान हादसा नहीं हुआ था। सरकार के इस बयान के बाद नेताजी की मौत का संशय और बढ़ गया। आपको बता दें कि ताइवान, जो 1940 के दशक में जापान के कब्जे में था वह आखिरी देश था जिसने नेताजी को जीवित देखा था। 
 
नेताजी की मौत का रहस्य सुलझाने के लिए भारत सरकार द्वारा तीन जांच आयोग गठित किए गए थे। पहले दो आयोग ने कहा कि नेताजी की मृत्यु हवाई हादसे में हुई थी तो दूसरी ओर तीसरे जस्टिस मनोज मुखर्जी आयोग ने इस बात से साफ़ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि बेशक नेताजी की मृत्यु हुई है लेकिन हवाई हादसे में नहीं हुई है। 
पहले दो आयोग के अनुसार, भारत सरकार ने यह माना कि  सुभाष चंद्र बोस की मौत 18 अगस्त 1945 में एक विमान हादसे में हुई थी। हर साल भारत में 18 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। पर दूसरी यह भी माना जाता है कि सुभाष चंद्र बोस जिस विमान से यात्रा कर रहे थे वह रास्ते में ही लापता हो गया था। उनके विमान के लापता होने से ही कई सवाल खड़े हो गए थे। इन सवालों में सबसे आम सवाल थे कि क्या विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था? क्या नेताजी की मौत एक हादसा थी या हत्या? 
 
मौत के बाद नेताजी को देखे जाने की चर्चाएं
नेताजी की मौत के बाद देश में करीब 60-70 के दशक में उन्हें जगह-जगह जिंदा देखे जाने की चर्चाएं हुईं। यह मामला तब गरमाया जब नेताजी को नेहरु के देहावसान में उन्हें श्रृद्धासुमन अर्पित करते हुए देखा गया। नेहरु जी की मृत्यु के समय भारत सरकार के फिल्म प्रभाग द्वारा एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई गई थी और इस फिल्म की तस्वीरों ने भारत में सनसनी मचा दी थी। 
 
यह बात 24 मई 1964 की है जब जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर नई दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में जनता के दर्शनों के लिए रखा था। नेहरु के अंतिम दर्शन के लिए देश-विदेश के लोग बड़ी संख्या में कतार लगाकर खड़े हुए थे। इसी दौरान एक भिक्षु भी उन्हें श्रृद्धांजलि देने आया जो बिलकुल सुभाष चंद्र बोस की तरह लग रहा था। 
 
वो सुभाष नहीं बल्कि यह शख्स था
दरअसल सुभाष की तरह दिखने वाले वो भिक्षु भारत में रह रहे कंबोडियाई बौद्ध भिक्षु भंते समदश वीरा धर्मवारा बेलोंग महाथेरा थे। इसके बाद खोसला आयोग के विशेष अनुरोध पर उनके सामने भी आए। इसके बाद जस्टिस खोसला आयोग के सामने भिक्षु धर्मवारा की गवाही हुई। इस भिक्षु को आयोग के सामने लाने का अनुरोध डॉ. लोकेश चंद्रा ने किया था। अगर डॉ. लोकेश चंद्रा उन भिक्षु को आयोग के सामने नहीं लाते तो लोग यही मानते कि बोस अभी भी जीवित हैं।
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