मनुष्य को संस्कारित करता है अध्यात्म

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पिछले कुछ समय से अध्यात्म के क्षेत्र में बाजारवाद का प्रभाव बढ़ा है। इसी वजह से अध्यात्म के क्षेत्र में भी अवमूल्यन हुआ है। अत: स्वस्थ समाज के लिए आत्म जागरण जरूरी है। जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद के अनुसार अध्यात्म के क्षेत्र में बाजारवाद ने प्रभाव डाला है और यह चिंता का विषय है।

उन्होंने कहा कि यह आर्थिक युग है। इसमें पदार्थ की अधिक इच्छा के कारण व्यक्ति अशांत रहता है। अति योगवाद स्वच्छंद और अनियंत्रित भोगवाद के कारण स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं हो पा रहा है। इसके लिए हर मनुष्य को अनुशासित व संस्कारित होना होगा, तभी वह समाज व सृष्टि के लिए उपयोगी होगा और व्यक्ति को संस्कारित करना ही अध्यात्म का काम है।

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आज मनुष्य उपभोक्ता बनकर रह गया है। जागो ग्राहक के नारे पर सिर्फ बाहर से जगाया जा रहा है, जबकि आज आवश्यकता है आत्म जागरण की। आध्यात्मिक अनुष्ठान से ही व्यक्ति के अंतर को जगाया जा सकता है।

मनुष्य ने जल, वायु और पृथ्वी की निरंतर उपेक्षा से बहुत कुछ बिगाड़ दिया है। आज पीने लायक जल सिर्फ डेढ़ प्रतिशत बचा है। अगर अब भी मनुष्य नहीं जागा तो जल संकट और बढ़ेगा।

उन्होंने कहा कि दुनिया भर में प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने का काम हो रहा है, ऐसे में अत्यंत प्राचीन काल में बने रामसेतु को भी संरक्षित करना चाहिए। यह धर्म विशेष नहीं बल्कि मानव मात्र की योग्यता और क्षमता का ऐतिहासिक प्रमाण भी है।

उत्तरकाण्ड एक ऐसी कथा का वर्णन है जिसमें सभी का निचोड़ है। जो व्यक्ति अपनी ज्यादा प्रशंसा सुनना पंसद करता है, वह कभी ऊंचाई नहीं छू पाता। यही अवगुण दशानन रावण में भी था। वह अपनी गलती को स्वीकार न करते हुए प्रशांसा सुनने में ज्यादा मन लगाता था। रावण को कई बार उसकी पत्नी मन्दोदरी और भाई विभीषण ने समझाया लेकिन उसे बात समझ नहीं आई। इसीलिए प्रभु श्रीराम के हाथों रावण का का नाश हुआ।

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