मृत्यु की चिंता और चिंतन का महत्व

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एक महात्मा अपने शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे और उन्हें योगाभ्यास सिखाते थे। वह सत्संग भी करते थे। एक शिष्य चंचल बुद्धि का था। बार-बार गुरु से कहता, आप कहां जंगल में पड़े हैं, चलिए एक बार नगर की सैर करके आते हैं।

महात्मा ने कहा, मुझे तो अपनी साधना से अवकाश नहीं है। तुम चले जाओ। शिष्य अकेला ही नगर चला गया। नगर में बाजार की शोभा देखी। मन अति प्रसन्न हुआ। इतने में एक भवन की छत पर निगाह पड़ी। देखा कि एक परम सुंदरी छत पर कपड़े सुखा रही है। बस वह कामदेव के बाण से आहत हो गया।

जब शिष्य आश्रम लौटा तो चेले का चेहरा देखकर महात्मा जान गए कि यह बच्चा काम वासना शिकार हो गया है। पूछने पर चेले ने उत्तर दिया- गुरुदेव! हृदय में असहनीय पीड़ा हो रही है।

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महात्मा बोले, क्या नजर का कांटा हृदय में गड़ गया? चेले ने सारा वृत्तांत कह सुनाया।

चेले से गुरुजी ने उस स्त्री का पता पूछा तो पता चला कि वह नगर के एक सेठ की पत्नी है। महात्मा ने एक पत्र के जरिए सेठ को अपनी पत्नी को लेकर आश्रम में एक रात के लिए आने के लिए कहा। सेठ आया तो उसे अलग बैठाकर महात्मा स्त्री को लेकर शिष्य के पास गए और कहा, यह स्त्री रात भर तेरे पास रहेगी, पर ध्यान रखना कि सूर्य निकलते ही तेरा देहांत हो जाएगा।

उस स्त्री को सारी बात बता कर आश्वासन दिया कि तुम्हारे धर्म पर कोई आंच नहीं आएगी। इधर चेला रात भर कांपता रहा। सारी वासना काफूर हो गई। सुबह गुरुजी ने पूछा, तेरी इच्छा पूरी हुई?

शिष्य ने आपबीती सुना दी। स्त्री को सम्मानपूर्वक सेठ के साथ रवाना कर महाराजजी ने शिष्य से कहा, मृत्यु की चिंता और चिंतन सदा करते रहना चाहिए। यही तुझे बचाएगी।

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