सरदार पटेल का भाषण

(मार्च 1931 में जब कराची में काँग्रेस का 45वाँ अधिवेशन हुआ, उस अवसर पर अध्यक्ष की हैसियत से दिया गया भाषण।)

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अपना छोटा सा भाषण शुरू करने से पहले मैं पंडित मोतीलालजी के स्वर्गवास से श्रीमती स्वरूपरानी नेहरू, पंडित जवाहरलाल और उनके परिवार को हुई भारी हानि के लिए सम्मानपूर्वक संवेदना प्रकट करना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है इस बात से उनका शोक कुछ हलका होगा कि उनके दुःखों में सारा देश शामिल है। पंडित मोतीलालजी की सहायता इस मौके पर कितनी जरूरी थी, यह तो हम सबको और खासतौर पर गाँधीजी को जब पिछले महीने में समझौते की अत्यंत नाजुक मंत्रणाएँ चल रही थीं, उस दरमियान मालूम हो गया।

मौलाना मोहम्मद अली की मृत्यु का घाव ताजा ही था कि पंडित मोतीलालजी के अवसान का दूसरा घाव देश को सहना पड़ा। यह दुःख की बात है कि स्वर्गीय मौलाना के साथ हमारा मतभेद था, मगर जो दिल में हो वही जबान से बोलने वाले उस बहादुर देशभक्त की देशसेवा कभी भुलाई नहीं जा सकती। मैं बेगम साहिबा, मौलाना शौकत अली और उनके सारे परिवार के साथ आदरपूर्वक हमदर्दी जाहिर करता हूँ।

इसके सिवाय पिछले 12 महीनों में अनेक वीरों और वीरांगनाओं ने प्रशस्त रूप से चलने वाले सत्याग्रह युद्ध में अपने प्राण दिए। ऐसे इतिहास में अज्ञात और कीर्ति के कभी स्वप्न न देखने वाले गुमनाम वीरों के अमर नामों का भी मुझे जिक्र करना चाहिए। परमात्मा उनकी आत्माओं को शांति दे। उनके बलिदान हमें आत्मशुद्धि के मार्ग पर अग्रसर करें और हमें अधिक त्याग और तपश्चर्या करने की प्रेरणा दें।

नौजवान भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को थोड़े ही दिन पहले फाँसी हुई है। इससे देश बेहद उत्तेजित हो गया है। इन युवकों की कार्य-पद्धति से मुझे वास्ता नहीं है। मैं यह नहीं मानता कि और किसी उद्देश्य से हत्या करने की अपेक्षा देश के लिए हत्या करना कम निंद्य है। फिर भी भगतसिंह और उसके साथियों की देशभक्ति, हिम्मत और कुर्बानी के सामने मेरा सिर झुक जाता है। इन युवकों को दी गई फाँसी की सजा को देश निकाले में बदल देने की लगभग सारे देश की माँग होते हुए भी सरकार ने उन्हें फाँसी दे दी है। इससे प्रकट होता है कि मौजूदा शासन तंत्र कितना हृदयहीन है।
  अहिंसा के हमारे सफल प्रयोग ने उसमें भविष्य के लिए नई आशाओं का संचार किया है। अहिंसक लड़ाई में भाग लेने की किसानों की शक्ति के बारे में बहुतों को शंका थी और वे बड़े-बड़े दंगे-फसादों की दहशत रखते थे। मगर इस वर्ग ने बहादुरी से इस लड़ाई में सहयोग दिया।      


मगर हमें उत्तेजना और आवेश में अपने ध्येय से विचलित नहीं होना चाहिए। इस आत्मारहित और काष्ठवत्‌ चलने वाली मौजूदा हुकूमत के खिलाफ हमने जो भयंकर अभियोग-पत्र तैयार किया है, उसमें हथियारों पर अवलम्बित इसकी सत्ता का यह ताजा और उद्धत प्रदर्शन वृद्धि करता है। अगर लोकमत पर होने वाला यह अत्याचार हमें अहिंसा के असिधारा जैसे हमारे रास्ते से न डिगाए, तो इससे हमारी स्वराज्य के लिए योग्यता सिद्ध करने की शक्ति बहुत बढ़ जाएगी। भगवान इन बहादुर देश भक्तों की आत्माओं को शांति दे, और यह जानकर कि उनके दुःख और शोक में सारा देश शरीक है, उनके कुटुम्ब को कुछ संतोष प्राप्त हो।

मेरे जैसे सीधे-सादे किसान को आपने देश के प्रथम सेवक के पद के लिए चुना है, वह मेरी स्वल्प सेवा की कदर के बजाए गुजरात ने पिछले यज्ञ में जो अद्भुत बलिदान दिए, उनकी कदर करने के लिए है, यह मैं अच्छी तरह समझता हूँ। यह आपकी उदारता है कि इस सम्मान के लिए आपने गुजरात प्रांत को चुना। वरना सच बात तो यह है कि उस जमाने की अपूर्व जागृति वाले पिछले वर्ष में किसी भी प्रांत ने कुर्बानी करने में कोई कसर नहीं रखी। यह दयालु भगवान की कृपा ही है कि वह जागृति सच्ची आत्मशुद्धि की जागृति थी।

इसका अर्थ यह नहीं है कि हमने भूलें नहीं कीं। मगर यह बात तो निर्विवाद है कि हिन्दुस्तान ने दुनिया के सामने यह जाहिर कर दिया है कि अहिंसा का सामुदायिक प्रयोग अब स्वप्नदर्शियों का स्वप्न या मनुष्य का मिथ्या मनोरथ नहीं रहा, परंतु वह सच्ची सिद्ध वस्तु है। अब तक मानव-जाति हिंसा को देवी बनाकर बैठी हुई थी। वह उससे परेशान थी, मगर अहिंसा की सफलता के बारे में उसे विश्वास नहीं था।

अहिंसा के हमारे सफल प्रयोग ने उसमें भविष्य के लिए नई आशाओं का संचार किया है। अहिंसक लड़ाई में भाग लेने की किसानों की शक्ति के बारे में बहुतों को शंका थी और वे बड़े-बड़े दंगे-फसादों की दहशत रखते थे। मगर इस वर्ग ने जिस बहादुरी और अपूर्व सहन शक्ति से इस लड़ाई में भाग लेकर उस शंका और दहशत को झूठा साबित कर दिया, वही इस लड़ाई में सिद्ध होने वाली अहिंसा का सबसे बड़ा सबूत है।

मुझे यहाँ यह भी बता देना चाहिए कि स्त्रियों और बच्चों को लड़ाई में अपना हिस्सा लेने का आह्वान करके गाँधीजी ने अपनी अद्भुत व्यवहार-कुशलता का परिचय दिया है इन वर्गों की शक्ति स्वाभाविक रूप में ही जागृत हो उठी और उन्होंने ऐसा काम किया कि उसकी पूरी कीमत लगाने के लिए अभी अधिक समय बीतने की जरूरत है। मेरे खयाल से यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि सारी लड़ाई में अहिंसा का जो पालन हुआ उसका और उसके परिणामस्वरूप मिली हुई सफलता का अधिकांश श्रेय इन वीरों और वीरांगनाओं को मिलना चाहिए।

किसानों, मजदूरों, स्त्रियों और बच्चों ने जो हिस्सा लिया, उससे हमारी छाती गर्व और कृतज्ञता के मारे फूल जाती है। अहिंसा की दृष्टि से हमारा युद्ध विश्व युद्ध और बाहर की अनेक जातियाँ, खासतौर पर अमेरिका ने जो सहानुभूति दिखाई है और हमें वे जो प्रोत्साहन देते रहे हैं, वह कोई कम संतोष की बात नहीं है

संधि का रहस्
मगर सरकार के साथ हुई संधि के कारण सार्वजनिक जीवन के इस वीर युग के बारे में अधिक विस्तार करने की जरूरत नहीं रह जाती। आपकी कार्यसमिति ने आपकी मंजूरी की आशा से यह समझौता किया है। आप से प्रार्थना है कि अब आप उसे बाकायदा मंजूर करें। कार्यसमिति के सदस्य आपके विश्वासपात्र प्रतिनिधि थे, इसलिए आप उनकी की हुई संधि को अस्वीकार नहीं कर सकते। मगर आप उस समिति के प्रति अपना अविश्वास प्रकट कर सकते हैं और ज्यादा विश्वासपात्र समिति मुकर्रर कर सकते हैं।

हम इस समझौते को स्वीकार नहीं करते, तो हमारा कसूरमाना जाता और पिछले वर्ष की सारी तपश्चर्या व्यर्थ जाती। हमें तो सत्याग्रही की हैसियत से हमेशा यह दावा करना चाहिए- और हमने किया है- कि हम सदा शांति के लिए न केवल तैयार हैं, बल्कि उत्सुक भी हैं। इसलिए जब शांति के लिए दरवाजा खुला दिखाई दिया, तब हमने उससे फायदा उठा लिया। गोलमेज परिषद में जाने वाले हमारे देशवासियों ने पूरी जिम्मेदार हुकूमत की माँग की। ब्रिटिश दलों ने उस माँग को मान लिया और उसके बाद प्रधानमंत्री, वाइसरॉय, और हमारे कुछ प्रसिद्ध नेताओं ने काँग्रेस के सहयोग की माँग की।

इससे काँग्रेस की कार्यसमिति को महसूस हुआ कि अगर सम्मानपूर्वक संधि हो सकती है और किसी भी शर्त या काट-छाँट के बिना पूर्ण स्वराज्य की माँग करने का काँग्रेस का हक माना जाता हो, तो काँग्रेस गोलमेज परिषद में जाने का निमंत्रण स्वीकार कर ले और ऐसा विधान तैयार करने के प्रयत्न में सहयोग दे, जिसे सब दल स्वीकार कर सकें। अगर इस प्रयत्न में हम असफल हो जाएँ और तपश्चर्या के मार्ग के सिवाय दूसरा कोई रास्ता न रहे, तो उस पर जाने से हमें रोकने वाली कोई भी शक्ति पृथ्वी पर नहीं है।