बूढ़े नवाबों की ‘खाने की हवस’ की वजह से ईजाद हुआ लजीज ‘गिलौटी कबाब’

हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि कुछ ऐसे राजा या नवाब भी हुए हैं जिनकी खाने की हवस की वजह से बेइंतहा लजीज पकवानों का ईजाद हुआ। गि‍लौटी कबाब उनमें से एक है। कहा जाता है कि लखनऊ के नवाबों के दांत गि‍र जाते थे और वे कबाब नहीं खा पाते थे तो उन्‍होंने अपने खानसामाओं को गि‍लौटी कबाब बनाने के फरमान जारी कर दिए, जिन्‍हें बगैर दांत के खाया जा सकता है। यह कमाल है।

शायद इसीलिए भारत के राजाओं और महाराजाओं के शौक और सनकों के कि‍स्‍से पूरे जग में जाहिर हैं।

जी, हां यह कोई कहानी नहीं, बल्‍क‍ि एक हकीकत है कि भारत में कुछ ऐसे भी राजा या नवाब हुए हैं, जिनके खाने के शौक या कहें कि खाने की सनक की वजह से कई तरह की डि‍श का ईजाद हुआ।

लखनऊ एक ऐसा ही शहर रहा है, जिसे नवाबों के लिए जाना जाता है। वाजिद अली शाह एक ऐसे नवाब थे जिन्‍हें अपने लिखे गीत ‘बाबुल मोरा नैहरवा छूटा ही जाए’ के लिए जाना जाता है, वाजिद अली ने अपने महल में एक परीखाना बनवाया था, जहां गीत-संगीत और आर्ट कल्‍चर की सारी गतिविधि‍यां होती थीं।

खैर, यह अलग बात है। आज हम लखनऊ के जिन नवाबों की बात कर रहे हैं, उनकी सनकें कुछ अलग रही हैं। यहां के कुछ नवाब खाने के शौक के लिए जाने जाते हैं।

जो लखनऊ गया है या जो कबाब खाने के शौकीन हैं, उन्‍हें पता होगा एक कबाब होता है जिसका नाम है ‘गि‍लौटी कबाब’ इस कबाब का अवि‍ष्‍कार लखनऊ के नवाबों की वजह से ही हुआ।

दरअसल लखनऊ के नवाब कबाब के बड़े शौक़ीन हुआ करते थे, लेकिन बहुत मीठा खाने और उम्र बढ़ने के साथ इन नवाबों के दांत दिन ब दिन कमजोर होने लगे और आलम यह हो गया कि ये नवाब अपने समय में कुछ भी खाने से लाचार हो गए।

कमजोर दांतों की वजह से स्‍वादिष्‍ट खाने से वंचि‍त रहने लगे। सबसे चिंताजनक तो यह रहा कि वे अपना सबसे प्र‍िय कबाब भी नहीं खा पा रहे थे।

लेकिन वे थे तो नवाब... करते तो वही जो वे चाहते थे। उन्‍होंन इसका भी तरीका निकाल लिया। यानि कबाब खाने की तरकीब भी उन्‍होंने ईजाद कर ली।

उन्होंने अपने बावर्च‍ियों और खानसामाओं को बुलाया और ऐसे मुलायम कबाब बनाने की फरमाइश की, जिसे बिना दांतों के खाया जा सके। उन्‍होंने कहा कि ऐसे कबाब जो मुलायम हो। बस फि‍र क्‍या था नवाबों के लिए शुरू हो गया ऐसे कबाब बनाने का अभि‍यान जो बेहद मुलायम हो। बस तभी से मशहूर कबाब ‘ गिलौटी कबाब’  का निर्माण हुआ।

गिलौटी का मतलब होता है मुंह में घुल जाना यानि ये कबाब इतना मुलायम होता है कि खाने पर ये पूरा मुंह में घुल जाता है। ये दूसरे कबाबों की तरह सख्त नहीं होता है।

आपको बता दें कि लखनऊ शहर अपनी तहजीब और लजीज खाने के लिए दुनिया भर में मशहूर है। नवाबी व्यंजनों में बिरियानी, कबाब, कोरमा, कुल्चे, शीरमाल, रुमाली रोटी, काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब प्रमुख रूप से शामिल हैं, लेकिन आज हम लखनऊ के विशेष व्यंजन ' गिलौटी कबाब 'के बारे में बतायेंगे।

कैसे बनता है 'गिलौटी कबाब?
- गिलौटी कबाब के लिए अदरक, लहसुन, पपीते का गूदा, काली मिर्च पाउडर, हरी मिर्च, लेग पीस, चना दाल,  मक्खन, जावित्री और घी या तेल होना चाहिए।

- इसको बनाने के लिए लेग पीस को बारीक पीस लें और उसके बाद उसमें सारे मसाले मिलाकर टाइट गूंथ लें। बाद में छोटे-छोटे और चपटे आकार के गोले बनाकर गर्म तेल में फ्राई कर लें। इन कबाब को आप परांठे या रुमाली रोटी और चटनी के साथ खा सकते हैं।

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