बाथरूम और टॉयलेट एक साथ होने से होते हैं ये 5 नुकसान

अनिरुद्ध जोशी

मंगलवार, 5 नवंबर 2019 (16:34 IST)
आजकल घरों में बाथरूम और टॉयलेट एक साथ होना आम बात है। खासकर फ्‍लैट में यह देखने को मिलता है। इसे अटैच लेट-बॉथ कहते हैं। कई फ्लैटों में यह ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए बहुत ही सुंदर बनाए जाते हैं, लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार इससे 5 तरह के नुकसान हो सकते हैं।
 
 
1.घर में वास्तु दोष : वास्तु शास्त्र के नियम के अनुसार इससे घर में वास्तुदोष उत्पन्न होता है। इस दोष के कारण घर में रहने वालों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
 
 
1.मनमुटाव : इस तरह के दोष से पति-पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के बीच अक्सर मनमुटाव एवं वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है। घर में अधिक समय तक रहने का किसी का भी मन नहीं लगता है।
 
 
2.ग्रहण योग : वास्तु शास्त्र में बाथरूम में चंद्रमा का वास और टॉयलेट में राहु का वास रहता है। यदि चंद्रमा और राहु एक जगह इकट्ठे होते हैं तो यह ग्रहण योग बनाते हैं। इससे चंद्रमा दूषित हो जाता है। चंद्रमा के दूषित होते ही कई प्रकार के दोष उत्पन्न होने लगते हैं क्योंकि चंद्रमा मन और जल का कारक है जबकि राहु को विष समान माना गया है जो मस्तिष्‍क को खराब करता है। इस युति से जल विष युक्त हो जाता है। जिसका प्रभाव पहले तो व्यक्ति के मन पर पड़ता है और दूसरा उसके शरीर पर।
 
 
3.प्रति द्वेष की भावना : चंद्र और राहु का संयोग होने से मन और मस्तिष्क विषयुक्त हो जाते हैं। इसलिए लोगों में सहनशीलता की कमी आती है। मन में एक दूसरे के प्रति द्वेष की भावना बढ़ती है।
 
 
4.घटना-दुर्घटना बढ़ना : लाल किताब के अनुसार राहु का दोष उत्पन्न होने से जीवन में घटना और दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं। अत: घर का टॉयलेट और सीढ़ियां हमेशा साफ-सुथरी और दोषमुक्त रखना चाहिए।
 
 
5.धन की हानी : ऐसा कहते हैं कि जीवन में धन की आवक गुरु और चंद्र से होती है। चंद्र से मन की मजबूती होती है तो राहु का सकारात्मक पक्ष यह है कि वह कल्पना शक्ति का स्वामी, पूर्वाभास तथा अदृश्य को देखने की शक्ति प्रदान करता है। अत: दोनों के खराब होने से जहां धन की हानी होती है वहीं मन और मस्तिष्क कमजोर हो जाता है।
 
 
क्या होना चाहिए : वास्तु शास्त्र के प्रमुख ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश में अनुसार ‘पूर्वम स्नान मंदिरम’ अर्थात भवन के पूर्व दिशा में स्नानगृह होना चाहिए। दूसरी ओर इसी ग्रंथ में कहा गया है कि ‘या नैऋत्य मध्ये पुरीष त्याग मंदिरम’ अर्थात दक्षिण और नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा के मध्य में पुरीष यानी मल त्याग का स्थान होना चाहिए।
 
 
शौचालय के वास्तु नियम :- यदि गलती से आपका शौचालय ईशान कोण में बन गया है तो फिर यह बहुत ही धनहानि और अशांति का कारण बन जाता है। प्राथमिक उपचार के तौर पर उसके बाहर शिकार करते हुए शेर का चित्र लगा दें। शौचालय में बैठने की व्यवस्था यदि दक्षिण या पश्चिम मुखी है तो उचित है।
 
 
स्नानघर के वास्तु नियम :- स्नानघर में वास्तुदोष दूर करने के लिए नीले रंग के मग और बाल्टी का उपयोग करना चाहिए। स्नानघर में किसी भी तरह की तस्वीर नहीं लगाना चाहिए बल्की उचित दिशा में एक छोटासा दर्पण होना चाहिए।
 

वेबदुनिया पर पढ़ें