जलते जंगलों से बढ़ रहा है पीने के पानी पर खतरा

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020 (11:28 IST)
दुनिया के 100 सबसे बड़े शहरों की कुल जल आपूर्ति का 60 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा ऐसे इलाकों से आरंभ होता है, जो लगातार आग के खतरे से असुरक्षित होते जा रहे हैं। ऐसे में पीने के पानी को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
 
ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में विशालकाय वार्रागाम्बा बांध पर आजकल कपड़ों के परदे लगे हुए हैं। ये कोशिश है आसपास के जंगलों में लगी भीषण आग की वजह से राख और सेडीमेंट को जलाशय में गिरने से रोकने की। ग्रेटर सिडनी इलाके के लिए असंसाधित पीने के पानी का 80 प्रतिशत इसी जलाशय में है।
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राजधानी कैनबरा में अधिकारी जलते हुए जंगलों और झाड़ियों पर नजर बनाए हुए हैं और वे उम्मीद कर रहे हैं कि एक नए जल प्रशोधन संयंत्र के खुलने और और भी कुछ कदमों की मदद से 17 साल पहले हुई एक समस्या को दुबारा होने से रोका जा सकेगा। 17 साल पहले इसी तरह भीषण आग का प्रकोप चारों तरफ फैल गया था और उसकी वजह से पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई और आपूर्ति भी।
 
इस बार आग से सितंबर से लेकर अभी तक आग से दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में 1 लाख किलोमीटर वर्ग से भी अधिक इलाका जल चुका है लेकिन इसका अभी तक पीने के पानी की प्रणालियों पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। लेकिन अधिकारियों को तजुर्बे से मालूम है कि सबसे बड़ा खतरा तब आएगा, जब अगले कुछ महीनों या सालों तक क्षतिग्रस्त वॉटरशेड और जलग्रहण क्षेत्रों के नुकसान से उभरने के बीच बार-बार बारिश होगी और इस बार लगी आग के विस्तार और तीव्रता की वजह से क्या-क्या संभावित असर होंगे ये अभी साफ नहीं हुआ है।
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इंग्लैंड के स्वानसी विश्विद्यालय के प्रोफेसर स्टेफान डोर का कहना है, 'ऑस्ट्रेलिया में एक ही आगे के मौसम में जितना जंगली इलाका जल गया है वो चौंका देने वाला है। डोर सेडीमेंट और राख के बहाव पर जंगली आग के असर का अध्ययन करते हैं। उनका कहना है, 'इतिहास में आज तक ऐसा कुछ भी नहीं देखा गया।'
 
ऑस्ट्रेलिया में जो परिस्थिति है, वो एक बढ़ती हुई वैश्विक चिंता को दर्शाती है: जंगल, चरागाह और दूसरे वो इलाके जो अरबों लोगों को पीने का पानी देते हैं, आग के खतरे से लगातार असुरक्षित होते जा रहे हैं। ये जिन कारणों की वजह से हो रहा है, उनमें एक बड़ी भूमिका लगातार गर्म और सूखे होते हुए मौसम की है जिसकी वजह से आग के मौसम लंबे हो गए हैं। इसके अलावा पहले से कहीं ज्यादा लोग ऐसे इलाकों में रहने जा रहे हैं, जहां उनसे गलती से आग लग सकती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया के 100 सबसे बड़े शहरों की कुल जल आपूर्ति का 60 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा आग के खतरे से असुरक्षित वॉटरशेड से शुरू होता है। इसके अलावा अनगिनत छोटे समुदाय असुरक्षित इलाकों में सतह पर उपस्थित पानी पर निर्भर रहते हैं।
 
जब बारिश आती है तब वो अतितीव्र हो सकती है और एक छोटी अवधि में काफी पानी गिरा सकती है। यह पानी नंगी ढलानों को तुरंत काट सकता है और राख, सेडीमेंट और मलबे को बहुत बड़ी मात्रा में अत्यंत महत्वपूर्ण जलमार्गों और जलाशयों में गिरा सकता है। उपलब्ध पानी को घटाने के अलावा इस से पानी में प्रदूषक भी जा सकते हैं और ऐसे पोषक तत्व भी जा सकते हैं जिनसे एलगी पैदा हो सकती है।
 
विशेषज्ञों का कहना है कि और भी चिंता की बात ये है कि हाल के दशकों में जंगली ईको सिस्टम में जलने वाले इलाके में वृद्धि हुई है और संभव है कि गर्म होती जलवायु की वजह से ये वृद्धि इस शताब्दी में चलती रहेगी।
 
बहुत तेज आग आर्गेनिक पदार्थ और उस ऊपरी मिट्टी को जला देती है जिसकी पेड़-पौधों को पुन:सृजन के लिए आवश्यकता होती है। इससे पानी को सोखने के लिए कुछ भी बाकी नहीं रह जाता। गर्मी से धरती भी बंद और कठोर भी हो सकती है जिसकी वजह से पानी तुरंत बह जाता है और अपने रास्ते में आई हर चीज को बहा ले जाता है। इसकी वजह से नदी-नालों का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है जिससे जलाशय तक पहुंचने से पहले पानी को उच्च गुणवत्ता देने वाले मछलियां, पौधे और दूसरे जलीय जंतु मर जाते हैं।
 
जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्तरी कनाडा और अलास्का जैसे इलाकों पर भी असर पड़ा है। कनाडा में अल्बर्टा के फोर्ट मैकमर्रे इलाके में 2016 में जंगली आग के प्रकोप के बाद राख से प्रदूषित पानी के संसाधन का खर्च नाटकीय रूप से बढ़ गया।
 
मेलबर्न विश्वविद्यालय में शोधकर्ता गैरी शेरिडन कहते हैं कि आगे जाकर आग और सूखे की वजह से कुछ समुदायों को अपने पानी के स्रोत को बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है। ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर स्थित पर्थ ग्राउंड वॉटर और नमकीन पानी को संसाधन करने वाली प्रणालियों की तरफ मुड़ चुका है, क्योंकि 1970 के दशक के बाद से बारिश के पानी में उल्लेखनीय ढंग से कमी आई है। पर अभी के लिए करोड़ों लोगों को वही पानी पीते रहना होगा, जो लगातार आग के खतरे से असुरक्षित होते जंगलों से निकलता है। (फ़ाइल चित्र)
 
सीके/आरपी (एपी)

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