पहले परमाणु हमला नहीं करने को लेकर संधि चाहता है चीन

DW

बुधवार, 28 फ़रवरी 2024 (10:23 IST)
-वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
 
चीन चाहता है कि दुनिया के परमाणु देशों को एक संधि करनी चाहिए कि वे पहले परमाणु हमला नहीं करेंगे। भारत और चीन के बीच पहले से ऐसा समझौता है। चीनी विदेश मंत्रालय की हथियार नियंत्रित करने वाली शाखा ने कहा है कि सबसे बड़े परमाणु देशों को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के बारे में नया समझौता करना चाहिए।
 
उसने सुझाव दिया है कि परमाणु हथियारों के सबसे बड़े जखीरे वाले देशों के बीच यह संधि होनी चाहिए कि न तो वे पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेंगे और न इस बारे में एक दूसरे के खिलाफ राजनीतिक बयान देंगे।
 
विभाग के निदेशक सुन शियाबो ने परमाणु शक्ति-संपन्न देशों से अपील की है कि वे संयुक्त राष्ट्र के निरस्त्रीकरण सम्मेलन (CD) के प्रति 'अपनी विशेष जिम्मेदारी' निभाएं। यूएन के निरस्त्रीकरण सम्मेलन में 65 देश शामिल हैं और इसका मकसद परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए आपसी समझौते करना है।
 
जेनेवा में सोमवार को सीडी की साप्ताहिक बैठक में सुन ने कहा कि इस संगठन को एक ऐसा कानूनी रास्ता तैयार करना चाहिए जो गैर-परमाणु देशों को परमाणु हमलों से सुरक्षित करे। इसके लिए उन्होंने एक रोडमैप बनाने की भी मांग की जिसमें समय-सीमा तय हो।
 
सुन ने कहा, 'परमाणु शक्ति-संपन्न देशों को इस संधि पर बातचीत कर इसे अमली जामा पहना देना चाहिए।' हाल के सालों में दुनिया में परमाणु हथियार हासिल करने की रफ्तार तेज हुई है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद कई देशों ने अपने परमाणु कार्यक्रमों पर फिर से विचार शुरू किया है।
 
9 देशों के पास हैं परमाणु हथियार
 
दुनिया में 9  ऐसे देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार हैं। इनमें रूस के पास सबसे बड़ा जखीरा है। उसके बाद अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, पाकिस्तान, भारत, इसराइल और उत्तर कोरिया शामिल हैं। लेकिन सिर्फ 2 देशों चीन और भारत के बीच ही औपचारिक रूप से 'पहले परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं' करने का समझौता है।
 
रूस और अमेरिका के बीच 'न्यू स्टार्ट परमाणु संधि' हुई थी लेकिन पिछले साल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस न्यू स्ट्रैटजिक आर्म रिडक्शन ट्रीटी से अपनी भागीदारी निलंबित कर दी थी। हालांकि पुतिन के सार्वजनिक रूप से दिए बयान के बाद उनके विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि संधि के मुताबिक युद्ध के लिए तैयार परमाणु मिसाइलों और हथियारों की संख्या पर जो पाबंदी है, उसे रूस आगे भी मानता रहेगा।
 
न्यू स्टार्ट संधि साल 2010 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा और रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के बीच हुई थी। इस संधि के तहत अमेरिका और रूस में कितनी मिसाइल बिलकुल तैयार स्थिति में होंगी उनकी संख्या तय की गई है। रूस और अमेरिका के पास पूरी दुनिया के 90 प्रतिशत परमाणु हथियार हैं।
 
उभरते खतरों के लिए तैयारी
 
सुन ने अपने भाषण में दुनिया के सामने मौजूद सुरक्षा खतरों को कम करने की भी बात की। उन्होंने कहा कि निरस्त्रीकरण को लेकर एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए जो किसी के प्रति भेदभावपूर्ण न हो और हथियारों के निर्यात पर भी नियंत्रण करे। इसके लिए उन्होंने बायोकेमिस्ट्री के क्षेत्र में भी अनुपालन को बढ़ावा देने की बात कही।
 
सुन ने कहा कि यूएन निरस्त्रीकरण सम्मेलन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बाह्य अंतरिक्ष और साइबर सुरक्षा के उभर रहे खतरों पर भी काम करना चाहिए। हाल के दिनों में अंतरिक्ष में पहुंचने की होड़ बढ़ी है, जिसके बाद ऐसी आशंकाएं उभर रही हैं कि उपग्रहों का इस्तेमाल हथियारों के रूप में किया जा सकता है।
 
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर क्षमता का इस्तेमाल विरोधी देशों के खिलाफ होने के खतरे भी तेजी से बढ़ रहे हैं। हालांकि चीन को साइबर हमलों का एक बड़ा केंद्र माना जाता है। हाल ही में इंटरनेट पर लीक हुए दस्तावेजों में यह बात सामने आई थी कि चीन की निजी कंपनी कई देशों में साइबर हमलों के लिए जिम्मेदार थी और उसने कई सरकारों के नेटवर्क हैक किए।

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