स्‍वप्‍नपरी के सपनों की दास्‍तान

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- नुपूदीक्षि

बीसवीं सदी में हॉलीवुड की सबसे विवादास्‍पद अभिनेत्री सेक्‍स गॉडेस मर्लिन मनरो के जीवन के बारे में लोग आज भी जानना चाहते हैं। मर्लिन मनरो की खूबसूरती, प्रेम-प्रसंगों और रहस्‍यमय ढ़ंग से हुई मौत के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, जिसमें सात पुस्‍तकें भी शामिल हैं

सौंदर्य की मल्लिका पर हिंदी में पहली बार ‘स्‍वप्‍नपरी मर्लिन मनर’ नामक किताब लिखी गई है। संजय श्रीवास्‍तव द्वारा लिखित यह पुस्‍तक कई मायनों में विशिष्‍ट है। इसकी पहली विशेषता यह है कि इसमें मर्लिन मनरो को सेक्‍स सिंबल के रूप में नहीं, बल्कि एक स्‍वप्‍नशील इंसान के रूप में चित्रित किया गया है। यह किताब जीवित माँ-बाप की अनाथ लड़की के सपनों की हकीकत को बहुत खूबसूरती से बयाँ करती है। नोर्मा जीन, जिसे दुनिया मर्लिन मनरो के नाम से जानती है, बचपन से ही पिता के प्‍यार से महरूम रही। माता- पिता के होते हुए भी उसे बचपन अनाथाश्रम में कुछ कड़वे अनुभवों के साथ गुजारना पड़ा। लाखों लोगों को जिसके सौंदर्य ने दीवाना बना दिया, उसी मर्लिन को बचपन में किसी ने प्‍यार से नहीं कहा कि तुम बहुत प्‍यारी हो।

बचपन की उदास नोर्मा से शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचने वाली मर्लिन मनरो के सफर का इस किताब में जीवंत चित्रण किया गया है। फिल्‍मी दुनिया में सपने जिंदगी में और जिंदगी सपनों में बदल जाते हैं। सपनों जैसी शोहरत और सफलता तो मर्लिन को मिली, लेकिन फिर भी जीवन में एक अधूरापन ही रहा, जिसे तीन शादियाँ और कई प्रेमप्रसंग भी पूरा न कर सके।

शायद इसी अधूरेपन को भरने के लिए पिता के प्‍यार की भूखी मर्लिन ने अपने पिता को ढूँढकर उनसे मिलने का प्रयास किया। लोकप्रियता के शिखर पर होने और अपनी ओर से पहल करने के बावजूद उसे पिता की उपेक्षा ही मिली।

मर्लिन बार-बार आहत होती और हर बार सदमे से उबरकर नई सफलता के लिए मेहनत करती। कैनेडी भाईयों से संबंध बनने और बिगड़ने के बाद उसने एक विद्रोहिणी का रूप ले लिया। उसका विद्रोही रूप और यह संबंध ही उसकी रहस्‍यमय मौत का कारण बन गए। इस किताब में मर्लिन मनरो की मौत के बारे में भी कई तथ्‍यों को निष्‍पक्ष रूप से लिखा गया है।

सपने देखने, उन्‍हें सहेजने, उनके साकार होने और कुछ सपनों के टूटने की कहानी है, स्‍वप्‍नपरी मर्लिन मनरो

हिंदीप्रेमियों के लिए यह पुस्‍तक एक सकारात्‍मक संदेश की तरह है क्‍योंकि इस तरह के विषय पर अब तक केवल अँग्रेजी में लिखा जाता रहा है।

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