वो तेरे प्यार का गम!

जनकसिंह झाला

सोमवार, 30 नवंबर 2009 (15:05 IST)
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''तुम्हें क्या मिला वह तो मैं नहीं जानता लेकिन एक बात जरूर जानता हूँ कि तुमने उस शख्स को खोया है जो कभी अपने आपसे भी ज्यादा तुम्हें प्यार करता था। तुमने उसे धोखा दिया है जिसने अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ तुम पर भरोसा किया। खैर तुम्हे जो करना था वह तुमने कर लिया बस अब एक आखिरी गुजारिश है। मेरे बाकी बचे जीवन में कभी भी और कहीं भी अगर तुम्हारा मुझसे सामना हो जाए तो भगवान के लिए अपना रास्ता बदल देना या फिर अपना मुँह फेर लेना। क्योंकि मैं जानता हूँ कि जब कभी भी मैं तुम्हारा चेहरा देखूँगा तब मुझे सिर्फ एक ही बात का अफसोस रहेगा कि मैंने इस चेहरे के पीछे छुपे हुए उस शख्स से प्यार किया जिसने आखिर तक मुझे धोखे के अलावा और कुछ भी नहीं दिया। हो सकता है कि उस वक्त मैं गुस्से में आकर कुछ ऎसा काम कर जाऊँ जो मैं कभी नहीं करना चाहता।''

उस दिन अचानक ही रीटा की नजर राजीव के द्वारा लिखे गए उस खत पर पड़ गई जो कई सालों से एक किताब के पन्नों के बीच में सड़ रहा था। यह खत राजीव और रीटा की प्यार की यादों को बयाँ करने वाला आखिर खत था।

कॉलेज के दिनो में ही इन दोनों के प्यार का गुल खिला था। रीटा प्रिंसीपल साहब की ऑफिस से बाहर ही निकली थी कि अचानक ही सामने के कैन्टीन में राजीव अपने दोस्तों के साथ काफी पी रहा था। नई स्टूडेंट को देखकर सभी सीनियर्स रीटा के नजदीक आ गए और देखते ही देखते उसकी रैगिंग शरू कर दी। हद तो तब हो गई जब रीटा को कहा गया कि 'वह एक अपाहिज महिला की तरह लंगडाती लंगडाती सभी स्टूडेन्ट्स के सामने आकर भीख माँगे।

रीटा के लिए दिल्ली शहर बिल्कुल नया था और यहाँ के लोग भी। वह बिलकुल घबरा गई और फूट फूट कर रोने लगी। उस समय राजीव ही था जो एक फरिश्ता बनकर उसे बचाने आया था। उसने सभी सीनियर्स को खूब डाँटा और उन्हें रीटा से माफी माँगने के लिए भी कहा।

उसी दिन से राजीव रीटा के मन को भा गया। धीरे-धीरे उन दोनों की दोस्ती बढ़ने लगी। दूरियाँ नजदीकियों में तब्दील होने लगी और एक दिन रीटा ने सामने से ही राजीव को प्रप्रोज कर दिया। राजीव को भी रीटा बहुत पसंद थी उसने भी उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया। समय बीतता गया और उनका प्यार परवान चढ़ते गया। बात शादी तक भी आ पहुँची।

अब राजीव एक प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर था उसकी तनख्वाह भी अच्छी थी। रीटा भी हाईस्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ाती थी। अचानक ही राजीव का तबादला मुंबई शहर में हो गया। रीटा से कोसों दूर होने के बावजूद भी वह हर महीने उसे मिलने के लिए मुंबई से दिल्ली आता रहता था। दोनों घंटों तक टेलीफोन पर एक-दूसरे से बातें किया करते थे। लेकिन धीरे-धीरे रीटा के फोन आने बंद हो गए। राजीव जब कभी भी फोन करता या तो फोन काट दिया जाता या फिर लंबे समय तक उसमे घंटियाँ बजती रहती।

राजीव भी थोड़ा व्यस्त होने के कारण चार-पाँच महीनों तक दिल्ली नहीं जा पाया। बाद में राजीव को मालूम हुआ कि रीटा और उनका परिवार दिल्ली छोड़कर कहीं दूर चले गए हैं। राजीव ने रीटा के बारे में जानने के लिए पूरी कोशिश की। वह रीटा के हर दोस्त, हर रिश्तेदार से मिला लेकिन किसी को भी रीटा कहाँ है उसकी जानकारी नहीं थी।

इस बात को पूरे पाँच साल बीत गए। एक दिन राजीव ऑफिस से बाहर ही निकला था कि सामने सड़क पर खड़े एक गुब्बारे वाले के पास एक महिला अपने छोटे बच्चे के साथ खड़ी थी। उसका बेटा गुब्बारे खरीदने के लिए बार बार उससे जिद करता था लेकिन वह मना कर रही थी।

राजीव को उस महिला का चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा। वह न चाहते हुए भी अपनी कार को रोड के दूसरी तरफ ले गया। उसने उस महिला को गौर से देखने का प्रयास किया, वह महिला और कोई नहीं बल्कि रीटा ही थी और वह बच्चा जो कब से उससे गुब्बारा खरीदने की जिद कर रहा था वह उसका ही बेटा था। एक मिनट के लिए राजीव अपने आपको सँभाल नहीं पाया। रीटा अब तक कहाँ थी और कब उसकी शादी हो गई, उसने क्यों मुझे नहीं बताया? ऎसकई सवाल थे जो राजीव को परेशान कर रहे थे। उसने धीरे से अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला और रीटा के नजदीक आकर खड़ा हगया

वो तेरे प्यार का गम-2

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