दलित और आदिवासी भाजपा से नाराज

गुरुवार, 11 दिसंबर 2008 (21:27 IST)
भाजपा ने मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में भले ही शिवराजसिंह चौहान सरकार की विकास एवं जन कल्याणकारी योजनाओं के बारे पर अच्छे बहुमत से सत्ता पा ली हो, लेकिन इन योजनाओं के असली जरूरतमंद अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्गों में पार्टी अपना भरोसा कायम नहीं रख पायी।

पार्टी का वर्ष 2003 के चुनावों की तुलना में इस बार के चुनावों में अनुसूचित जाति (अजा) एवं अनुसूचित जनजाति (अजजा) के लिए आरक्षित सीटों में प्रदर्शन कमजोर रहा। नए परिसीमन में हालाँकि मध्यप्रदेश में अजा (एससी) के लिए आरक्षित सीटें 34 से बढ़कर 35 तथा अजजा (एसटी) के लिए आरक्षित सीटें 41 से बढ़कर 47 हो गई हैं, लेकिन भाजपा का ग्राफ पहले की तुलना में काफी नीचे आ गया।

वर्ष 2003 में भाजपा 34 में से 30 अजा सीटों पर और 41 में से 36 अजजा सीटों पर विजयी रही थी, लेकिन इस बार वह सिर्फ अजा के लिए आरक्षित 35 में से 25 और अजजा के लिए आरक्षित 47 में से 30 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी है।

अजजा सीटों पर सबसे बड़ा नुकसान गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) को हुआ है। वर्ष 2003 में तीन सीटें जीतने वाली गोंड आदिवासियों की पार्टी का इस बार खाता तक नहीं खुला है।

अजा और अजजा सीटों पर इस बार कांग्रेस को बढ़त मिली है। उसे अजा के लिए आरक्षित नौ और अजजा के लिए सुरक्षित 17 सीटों पर जीत हासिल हुई है। दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 228 उम्मीदवार खड़े किए और सात सीटें जीती हैं, लेकिन उसे किसी भी आरक्षित सीट पर जीत नसीब नहीं हुई।

हालाँकि उमा भारती की भारतीय जन शक्ति (भाजश) का हाल कुछ ठीक रहा। कुल पाँच सीटें जीतने वाली भाजश को अजा के लिए आरक्षित एक सीट पर जीत हासिल हुई है।

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि लगातार दूसरी बार सत्ता में आने में सफल रही भाजपा को दलितों और आदिवासियों के बीच अपने जनाधार को मजबूत बनाने पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा।

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