बागली। उपचुनाव के चलते हाटपिपल्या सीट पर अब 11वें विधानसभा चुनाव में है। वर्ष 1977 में गठित हुई हाटपिपल्या विधानसभा का इतिहास भितरघात से ग्रसित रहा है। जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी दूसरों का हक और अधिकार मारने कला के मध्य अब दलबदल के चलते उपचुनाव की स्थिति पैदा हुई है। हाटपिपल्या समेत मध्यप्रदेश की 28 सीटों के लिए आज यानी मंगलवार को मतदान हो यहा है।
हमेशा से यहां पर भाजपा और कांग्रेस के मध्य सीधा मुकाबला हुआ है। सामान्य विधानसभा सीट होने की वजह से यहां के चुनाव हमेशा चर्चा के केंद्र में और जातिवाद से पोषित रहा है। मार्च 2020 में राज्यसभा सदस्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए भाजपा प्रत्याशी मनोज चौधरी को जिले के केंद्रीय भाजपा नेता और पूर्व मंत्री दीपक जोशी के प्रबल प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। वहीं विरोध की एक आवाज पूर्व भाजपा विधायक रहे तेजसिंह सैंधव ने भी उठाई।
यद्यपि भाजपा ने डैमेज कंट्रोल किया, लेकिन परिणाम ही तय करेंगे कि यह कितना कारगर साबित हुआ। क्योंकि भाजपा प्रत्याशी चौधरी को इन सभी के मध्य कांग्रेस में राइवल रहे कांग्रेस प्रत्याशी राजवीरसिंह बघेल सीधी चुनौती दे रहे हैं। हालांकि चौधरी का यह दूसरा चुनाव है और बघेल अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके साथ उनके पिता पूर्व विधायक राजेन्द्रसिंह बघेल की तीन बार की विधायकी का अनुभव और पुराने कांग्रेसियों की टीम भी है।
लेकिन, राइवलरी की महत्वपूर्ण बात यह थी वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों में वर्तमान भाजपा प्रत्याशी चौधरी के पिता पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष नारायणसिंह चौधरी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरकर पूर्व विधायक बघेल को केवल 220 मतों से पराजित करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उस चुनाव में विजेता रहे पूर्व मंत्री जोशी को हाटपिपल्या में स्थायित्व मिला।
2008 में शुरू हुई थी राइवलरी : वर्ष 2003 में पूर्व विधायक बघेल ने 46.59 प्रतिशत मत हासिल करके संघ से भाजपा में आए रायसिंह सैंधव को 2054 मतों से पराजित किया था। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों से पहले बागली विधानसभा सीट आरक्षित हो गई और पूर्व विधायक जोशी ने हाटपिपल्या में प्रयास शुरू किए थे। उस समय पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष नारायणसिंह चौधरी ने कांग्रेस की और से विधायकी की दावेदारी शुरू की।
जोशी ने तो भाजपा का टिकट बड़े आराम से प्राप्त कर लिया, लेकिन कांग्रेस में बड़ी रार हुई और पूर्व जिप अध्यक्ष चौधरी और पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा के समर्थक अशोक कप्तान ने निर्दलीय ताल ठोंकी। दोनों ने क्रमशः 21161 और 6011 मत हासिल किए। जबकि भाजपा के जोशी और कांग्रेस के बघेल के मध्य मतांतर केवल 220 का था। चौधरी और कप्तान ने क्रमशः 19.75 और 5.61 प्रतिशत मत हासिल किए थे। वहीं विजेता जोशी ने 33.05 प्रतिशत और निकटम प्रतिद्वंदी बघेल ने 32.84 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे। यह अंतर केवल 0.21 प्रतिशत था।
उसके बाद वर्ष 2013 के चुनावों में जोशी ने बघेल पर 6140 मतों की बढ़त बनाई। वर्ष 2018 में कांग्रेस ने बघेल का टिकट काटकर चौधरी को उम्मीदवार बनाया। उन्होंने कद्दावर पूर्व मंत्री जोशी को 13519 मतों से हराया भी लेकिन वे सिंधिया के साथ भाजपा में चले गए और पहली बार हाटपिपल्या उपचुनाव की आहट में आया।
दोनों पार्टियों ने लगाई ताकत : हाटपिपल्या विधानसभा में दोनों ही पार्टियों ने ताकत झोंक दी। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सभा और रोड शो किए। कांग्रेस ने भी पूर्व सीएम कमलनाथ को उतारा। दोनों ही दलों ने खूब चुनावी वादे किए। लेकिन चौधरी ने पाटीदार, धाकड़ और खाती समाज के मतदाताओं पर ध्यान दिया वहीं बघेल ने क्षत्रिय मतों समेत कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक पर ध्यान केन्द्रित किया।
जमीनी मुद्दों पर किसी का भी ज्यादा जोर नहीं रहा। चाहे वह ज़िला मुख्यालय तक पहुंचने वाला नेवरी-बागली मुख्य मार्ग हो या हाटपिपल्या क्षेत्र के गांवों व हाटपिपल्या नगर में जल संकट का मुद्दा हो। देवगढ़-हाटपिपल्या मार्ग पर निर्मित कालीसिंध नदी की पुलिया हो जो भारी बारिश में पूर के चलते घंटों तक मार्ग अवरुद्ध किए रहती है।
जातिगत समीकरण :
दलित : 43 हजार
मुस्लिम : 22 हजार
खाती : 20 हजार
राजपूत : 17 हजार
सैंधव : 11 हजार
कुल मतदाता : 1 लाख 91 हजार 410
77 पोलिंग बूथ से कोरोना काल में 288 पोलिंग बूथ : वर्ष 1977 में जब हाटपिपल्या में पहला विधानसभा सीट पर पहला विधानसभा चुनाव में केवल 77 मतदान केंद्र थे। समय के साथ मतदाता बढ़ने और परिसीमन के बाद वर्ष 2013 में 210 मतदान केंद्रों के माध्यम से मतदान करवाया गया। लेकिन उपचुनाव में 2020 में मतदान केंद्रों की संख्या बढ़कर 288 की गई है। जिसमें 252 मुख्य और 36 सहायक मतदान केंद्र है, जबकि क्रिटिकल मतदान केंद्रों की संख्या 62 है।