शक्तिशाली होते हुए भी कौरव कर बैठे यह पांच बड़ी चूक और हार गए युद्ध...

महाभारत युद्ध को भारत की भूमि कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षौहिणी सेना थी। एक अक्षौहिणी में 21870 हाथी, 21870 रथ, 65610 घोड़े और 109350 पैदल होते थे। कौरव पक्ष में एक से बड़कर एक महान योद्धा थे लेकिन फिर भी कौरव हार गए इसका क्या कारण था? आओ जानते हैं पांच बड़े कारण।
 
 
1.पहली सबसे बड़ी चूक
जब युद्ध तय ही हो गया तो दुर्योधन श्रीकृष्ण से सहायता मांगने हेतु द्वारिका जा पहुंचा। उस वक्त श्रीकृष्ण सोए हुए थे तो दुर्योधन उनके सिरहाने जा बैठा। इसके बाद ही अर्जुन भी इसी कार्य हेतु पहुंचा और वे उनके पैरों के पास जा बैठा। जब श्रीकृष्ण की आंख खुली तो उन्होंने सबसे पहले अर्जुन को देखा। अर्जुन से कुशल क्षेम पूछने के भगवान कृष्ण ने उनके आगमन का कारण पूछा। अर्जुन ने कहा, 'भगवन्! मैं भावी युद्ध के लिए आपसे सहयोग लेने आया हूं।'
 
 
अर्जुन के इतना कहते ही सिरहाने बैठा दुर्योधन बोला, हे कृष्ण! मैं भी आपसे सहायता के लिए आया हूं। चूंकि मैं अर्जुन से पहले आया हूं इसलिए मांगने का पहला अधिकार मेरा है।' तब श्रीकृष्ण ने कहा, 'हे दुर्योधन! मेरी दृष्टि पहले अर्जुन पर पड़ी है, और तुम कहते हो कि तुम पहले आए हो। अतः मुझे तुम दोनों की ही सहायता करनी पड़ेगी। मैं तुम दोनों में से एक को अपनी पूरी सेना दे दूंगा और दूसरे के साथ मैं स्वयं रहूंगा। अब तुम लोग निश्‍चय कर लो कि किसे क्या चाहिए।' अर्जुन ने श्रीकृष्ण को अपने साथ रखने की इच्छा प्रकट की जिससे दुर्योधन प्रसन्न हो गया क्योंकि वह तो श्रीकृष्ण की विशाल सेना लेने चाहता था। यह कुरुवंशी दुर्योधनी की सबसे बड़ी चूक थी
 
 
2.दूसरी सबसे बड़ी चूक
कौरवों की सेना पांडवों से युद्ध हारने लगी तो दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और कहने लगा कि आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। मुझे तो आप पर शंका हो रही है। यह सुनकर भीष्म पितामह क्रोधित हो गए और उन्होंने तुरंत ही अपनी कमान से पांच सोने के तीर लिए और उन्हें अभिमंत्रित करके बोले कि कल इन पांच तीरों से वे पांचों पांडवों को मार देंगे। तब दुर्योधन ने वे पांचों तीर पितामह के हाथ से लेकर कहा ठीक है कल सुबह इन तीरों को मैं आपको वापस कर दूंगा।
 
 
भगवान श्रीकृष्ण को इस घटना का पता चल गया। तब उन्होंने अर्जुन को बुलाया और कहा कि हे अर्जुन एक बार तुमने दुर्योधन की जान एक गंधर्व से बचाई थी। तब तुम्हें दुर्योधन ने वचन दिया था कि इसके बदले कोई भी चीज मांग लेना, तो अब समय आ गया है कि अभी तुम जाओ और दुर्योधन से पांच सोने के तीर मांग लो। अर्जुन दुर्योधन के पास गया और उसने तीर मांगे। क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन ने अपने वचन को पूरा किया और तीर अर्जुन को दे दिए। यदि दुर्योधन ऐसा नहीं करता तो निश्चित ही पांचों पांडव मारे जाते।
 
 
3.तीसरी सबसे बड़ी चूक
युद्ध में जब घटोत्कच ने कौरवों की सेना को कुचलना शुरू किया तो दुर्योधन घबरा गया और ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। तब कृष्ण ने कर्ण से कहा कि आपके पास तो अमोघ अस्त्र है जिसके प्रयोग से कोई बच नहीं सकता तो आप उसे क्यों नहीं चलाते। कर्ण कहने लगा नहीं ये अस्त्र तो मैंने अर्जुन के लिए बचा कर रखा है।

 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अर्जुन पर तो तुम तब चलाओंगे जब ये कौरव सेना बचेगी, ये दुर्योधन बचेगा। जब ये सभी घटोत्कच के हाथों मारे जाएंगे तो फिर उस अस्त्र के चलाने का क्या फायदा? दुर्योधन को कृष्ण की ये बात समझ में आ गई और वह कर्ण से अमोघ अस्त्र चलाने की जिद करने लगता है। कर्ण दुर्योधन को समझाता है कि तुम घबराओ नहीं ये कृष्ण की कोई चाल है। लेकिन दुर्योधन एक नहीं सुनता है और कर्ण मजबूरन वह अमोघ अस्त्र को घटोत्कच के उपर चला देता है। घटोत्कच को दूसरे तरीके से भी मारा जा सकता था लेकिन डर के बारे दुर्योधन यह बड़ी चूक कर बैठा और अर्जुन को मारने का एक मौका हाथ से जाता रहा।

 
4.चौथी सबसे बड़ी चूक
महाभारत युद्ध में जयद्रथ के कारण अकेला अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया था और दुर्योधन आदि योद्धाओं ने एक साथ मिलकर उसे मार दिया था। इस जघन्नय अपराध के बाद अर्जुन प्रण लेते हैं कि अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध नहीं कर पाया तो मैं स्वयं अग्नि समाधि ले लूंगा। इस प्रतिज्ञा से कौरवों में हर्ष व्याप्त हो जाता है और पांडवों में निराशा फैल जाती है।
 
 
कौरव किसी भी प्रकार से जयद्रथ को सूर्योस्त तक बचाने और छुपाने में लग जाते हैं। जब काफी समय तक अर्जुन जयद्रथ तक नहीं पहुंच पाया तो श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को कुछ देर के लिए छिपा दिया, जिससे ऐसा लगने लगा कि सूर्यास्त हो गया। सूर्यास्त समझकर जयद्रथ खुद ही अर्जुन के सामने हंसता हुआ घमंड से आ खड़ा होता है। तभी उसी समय सूर्य पुन: निकल आता है और अर्जुन तुरंत ही पलटकर जयद्रथ का वध कर देता है। यदि जयद्रथ कुछ देर और छुपा रहता तो युद्ध का वहीं अंत हो गया होता। यह कौरव पक्ष की सबसे बड़ी चूक थी।
 
 
5.पांचवीं सबसे बड़ी चूक
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों की तरफ से सेनापति थे। भीष्म घोर युद्ध करते हुए न केवल पांडवों की सेना के हजारों सैनिकों का संहार कर दिया बल्कि अर्जुन को घायल कर उनके रथ को भी जर्जर कर दिया था। ऐसे में श्रीकृष्ण को एक युक्ति समझ में आती है और कृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म के सामने हाथ जोड़कर उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते हैं। भीष्म कुछ देर सोचने पर उपाय बता देते हैं।
 
 
दरअसल, भीष्म ने अपनी मृत्यु का रहस्य यह बताया था कि वे किसी नपुंसक व्यक्ति के समक्ष हथियार नहीं उठाएंगे। इसी दौरान उन्हें मारा जा सकता है। इस नीति के तरह युद्ध में भीष्म के सामने शिखंडी को उतारा जाता है। शिखंडी के समक्ष भीष्म अपने अस्त्र त्याग देते हैं। शिखंडक्ष भीष्म पर सैंकड़ों तीर छोड़ता है लेकिन भीष्म का उसे कुछ भी नहीं होता है। लेकिन पीछे से अर्जुन भी अपने तीन शिखंडी के तीरों के साथ छोड़ते है जिसके चलते भीष्म का शरीर छलनी हो जाता है। भीष्म वे कराहते हुए नीचे गिर पड़ते हैं और भीष्म बाणों की शरशय्या पर लेट जाते हैं। यह कौरव पक्ष के भीष्म की सबसे बड़ी चूक थी कि वे अपनी मृत्यु का राज बता देते हैं। यदि भीष्म तीरों की शरश्या पर नहीं लेटते तो पांडव युद्ध में शायद ही जीत पाते। लेकिन जहां श्रीकृष्ण है वहां सबकुछ संभव है।

दुर्योधन ने गिनाई अपनी तीन गलतियां :
अंत में जब दुर्योधन कुरूक्षेत्र के युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस से ले रहा था, उस समय उसने अपनी तीन अंगुलियां उठा रखी थी। भगवान श्रीकृष्ण उसके पास गए तब उसने कहा, मेरी पहली गलती यह थी कि मैंने स्वयं नारायण के स्थान पर उनकी नारायणी सेना को चुना। यदि नारायण युद्ध में कौरवों के पक्ष में होते, तो आज परिणाम कुछ और ही होता।
 
 
मेरी दूसरी गलती यह थी कि अपनी माता के लाख कहने पर भी मैं उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। यदि वह नग्नावस्था में जाता, तो आज उसे कोई भी योद्धा परास्त नहीं कर सकता था। और, मेरी तीसरी और अंतीम गलती यह थी कि मैं युद्ध में आखिर में गया। यदि वह पहले ही जाता तो कई बातों को समझ सकता था और शायद उसके भाई और मित्रों की जान बच जाती।..मगर कृष्ण ने दुर्योधन को कहा कि अगर तुम कुछ भी कर लेते तब भी हार जाते। ऐसा सुनने के बाद दुर्योधन ने अपनी अंगुली नीचे कर ली।
 
 

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