मणिपुर : आर्थिक नाकेबंदी, अशांति के साए में चुनाव?

इम्फाल। पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 3 महीने से भी अधिक समय से आर्थिक नाकेबंदी चल रही है और विधानसभा चुनावों में यह केंद्र की भाजपा सरकार के सामने सबसे बड़ा सिरदर्द है कि इसे किस तरह समाप्त कराया जा सके ताकि राज्य में स्थिति सामान्य हो सके। इसका परिणाम यह है कि मणिपुर में लोगों को खाने-पीने समेत सभी जरूरी सामानों की किल्लत पैदा हो गई है। 
 
केंद्र ने विधानसभा चुनाव से पहले नाकेबंदी खत्म कराने के लिए कोर्ट से इजाजत लेते हुए गायेदोन कामेई और स्टीफन शैंक्रिल को बातचीत कर मामला सुलझाने के लिए दिल्ली बुलाया है। ये दोनों यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) के शीर्ष नेताओं में से हैं और नाकेबंदी, नगा संगठनों की देन हैं। इससे पहले भी 7 फरवरी को इस मामले पर बातचीत हुई थी लेकिन कोई हल नहीं निकल सका था।
 
इस आर्थिक नाकेबंदी की शुरुआत राज्य के सीएम ओकराम इबोबी सिंह के उस निर्णय से हुई जिसके तहत मुख्यमंत्री ने राज्य में 7 नए जिले बनाए थे जिससे वहां के लोगों को महंगाई और दूसरी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। इसके विरोध में ही नगा समूह के लोगों ने 1 नवंबर से यहां नाकेबंदी शुरू कर दी थी।
 
राज्य में हिंसा के चलते इंफाल में कर्फ्यू लगा दिया गया। मोबाइल-इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। हथियारों से लैस पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान हिंसा वाले इलाकों में गश्त कर रहे हैं। इस दौरान राज्य में 3 बम विस्फोट भी हुए थे। मणिपुर के निवासियों ने आर्थिक नाकेबंदी का विरोध किया और विरोध प्रदर्शन में करीब 22 कारों, बसों और अन्य वाहनों में आग लगा दी गई। 
 
हालांकि आगजनी करने वालों ने वाहन चालकों और यात्रियों को निशाना नहीं बनाया लेकिन पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान हिंसा पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं। अनियंत्रित उग्र भीड़ को हटाने के लिए आंसू गैस का भी इस्तेमाल करती है।
 
नाकेबंदी को लेकर लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) को पाल-पोस रही है। आतंकवादी संगठन इसे मजबूत कर रहे हैं। स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है और केंद्र मणिपुर में 1 नवंबर से अनिश्चितकालीन आर्थिक नाकेबंदी को लेकर मूकदर्शक बना हुआ है। क्या ऐसे हालातों में स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव संभव हैं?

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