साइकल और सवाल पर्यावरण के!

- सुषम बेद

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विकास के इस चरण पर पहुंच, एक ओर तो हम तकनीकी उपकरणों के इतने आदी हो गए हैं कि उनके बिना अपनी हस्ती ही डोलती हुई नजर आती है। दूसरी ओर जलवायु में आने वाले भारी परिवर्तन बार-बार हमे चेतावनी दे डालते हैं कि क्या हम अपनी दुनिया को सही दिशा में ले जा रहे हैं या कि नर्क के गर्त में झोंकने वाले हैं?

और अमेरिका को विकास के लगभग चरम पर ही है। हर दिशा में नई खोज, नए आविष्कार, हमेशा नए का आग्रह ही इस देश की नब्ज बना हुआ है। शायद यही कारण है कि यथास्थिति को ज्यों की ‍त्यों स्वीकारना भी यहां के लोगों की मनोवृत्ति नहीं है, अपितु बदलाव अगर जरूरी है तो होना ही है।

भौतिक विकास के साथ ही उसके हानिकारक प्रभावों से भी सोचने वाला अमेरिकी ‍अपरिचित नहीं है। यह और बात है कि उन नकारात्मक प्रभावों को नजरअंदाज करने वाले भी यहां कम नहीं। इसीलिए यह विवाद बराबर बना रहता है कि किस हद तक पिघलते ग्लेशियरों को बचाने की ‍कोशिश की जाए या आए दिन के इन तूफानों, दावानल, सूखा या बाढ़ से कोई पाठ सीखा जाए। कुछ वै‍ज्ञानिक इसे प्रकृति के स्वाभाविक चक्र का ही अंग मान इसके बारे में कोई भी उद्यम करने के हक में नहीं और दूसरे निश्चित रूप से मांग करते हैं कि अमेरिकी सरकार पर्यावरण के दूषण को रोकने के लिए बाकायदा कदम उठाएं और उसके लिए खजाने से आवश्यक राशि भी निकालकर जमा करें।

अब विकास को उलटा तो किया जा नहीं सकता, पर अगर हमें आने वाली पीढ़ियों का जरा-सा भी खयाल है और इस दुनिया को उनके लिए सुरक्षित छोड़कर जाना है तो भरसक हमें उन ही उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए, जो किसी हद तक पर्यावरण को बेहतर बनाएं या और बिगड़ने से बचाएं रखें।


और इसी दिशा में याद किया गया था साइकल को। साइकल की ईजाद 1817 में जर्मनी में हुई और हर सभ्य देश में इसे अपनाया गया। पर गाड़ियों के आविष्कार के बाद बेचारी साइकल की ऐसी बेइज्जती हुई कि कम आमदनी वालों को भी लगने लगा कि टांगों की मशक्कत के बजाय क्यों न स्कूटर की सवारी की जाए।

और फिर हम सब जानते ही हैं कि पेट्रोल से चलने वाले वाहनों ने किस तरह हमारी सड़कों को खचाखच भरा और हमारे माहौल को दूषित किया है‍ कि उससे कहीं निस्तार ही नहीं दीखता। फिर चाहे दिल्ली की सड़के हों या न्यूयॉर्क की, हर बड़े शहर में ठसाठस गाड़ियों से निजात नहीं दीखती। संख्‍या बढ़ ही रही है, कहीं से घटती नहीं दिखती।

न्यूयॉर्क के पिछले मेयर ब्लूमबर्ग ने इसी समस्या से सीमित निजात पाने के लिए शहर में एक बड़ा बदलाव लाने की कोशिश की, वह था साइकल को वापस लाना। यूं तो साइकलें शहरों में चलती ही हैं।

अमेरिका के सभी शहरों में लोग शौकिया साइकल चलाते हैं और जब ज्यादा दूरी न हो तो साइकल का इस्तेमाल चाहे कम होता हो, पर बंद नहीं हुआ। मेरी बिटिया भी जब कॉलेज में पढ़ती थी तो आसपास आने-जाने के लिए यही वाहन उसके पास होता था।

मेयर ब्लूमबर्ग की साइकल योजना के तरह शहर में 10 हजार साइकलें शहर के खाते से लाने का फैसला किया गया। सिटी बैंक ने इसे अगले 5 साल के लिए स्पांसर किया। इन साइकलों के लिए बाकायदा साइकल स्टेशन बनाए गए और सबसे क्रांतिकारी बात थी कि सड़कों पर साइकल पाथ बनाए गए ताकि साइकल वाले कारों से न भिड़कर अपने अलग पथ पर शांति से चलाएं। गाड़ियों के लिए अलग लेन हैं ही।

मकसद यह कि लोगबाग स्टेशन से साइकल उठाएं और चाहे यात्री हों या काम करने वाले, घूम-घामकर या काम खत्म करके रात लौटने पर साइकल किसी भी स्टेशन पर लौटा दें।

मैनहेट्टन में ट्रैफिक तो खासतौर से पागल करने देने वाला रहा है। तो शहर में लोग गाड़ियां कम चलाएं और साइकल से ही चलना शुरू करें तो एक तो कारों के दूषण से शहर बचेगा, दूसरे यह कसरत करने और स्वस्थ बने रहने का भी बढ़िया तरीका है। तीसरा गाड़ियां नहीं चलेंगी तो दुर्घटनाएं भी कम होंगी। तो पूरे मैनहेट्टन में जगह-जगह यह स्टेशन बने और बड़ी बात यह कि बड़े ही नाममात्र किराए पर यह साइकल लेकर आप जी भर इस्तेमाल कीजिए‍ फिर किसी भी साइकल स्टेशन पर उसे लगा दीजिए। सारी प्रक्रिया बड़ी ही आसान कर दी गई थी।

यह सचमुच बहुत ही बढ़िया सूझ थी और साइकलों का इस्तेमाल भी खूब हो रहा है। पर अमेरिका आखिर स्वतंत्र देश है। सबकी अपनी सोच, अपनी समझ, अपने स्वार्थ!

अब कार वाले शोर मचाते हैं कि हमारी सड़कों से साइकल पथ बनाकर सड़कें तंग कर दी ग हैं। इस मारे ट्रैफिक और भी जाम हो जाता है। टैक्सीवाले तो खासतौर पर दुखी हैं कि अपने पैसेंजर को उतारने के लिए वे अकसर साइकल की लेन में आ जाते हैं तो टिकट मिल जाता है। और तो और, साइकल वालों से टक्कर भी हो जाती है‍ जिसका नुकसान साइकल वालों को होता ही है, बेचारे टैक्सी वालों को भी नुकसान। उनकी यह भी शिकायत रहती है कि साइकल वाले ट्रैफिक नियमों का ठीक से पालन नहीं करते और बार-बार दुर्घटना का खतरा बना रहता है।

न्यूयॉर्क का नया मेयर स्वाभाविक है क‍ि पुराने मेयर की उपलब्धियों में खोट ही देखे और उसे भी लगता है कि बेचारे गाड़ियों वाले परेशान हैं कि सड़कें तंग हो गई हैं। नए मेयर बिल बलासियो की प्राथमिकताएं अलग हैं। वे प्री-स्कूल की शिक्षा को मुफ्त बनाने में पैसा खरचना चाहते हैं न कि साइकलों की संख्या बढ़ाने पर, जो कि ज्यादा जनता के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।

मैं सोचती हूं कि सरकार खरचा करे या न करे, पर हमारा अपना तो फरज बनता ही है कि हम अपने पर्यावरण को बचाने की हर कोशिश करते रहें, क्योंकि जो संसार हमें छोड़कर जाना है, वह स्वस्थ और सुंदर और प्रदूषणमुक्त हो!

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