मालदीव में सत्ता परिवर्तन से जुड़े हैं भारत के अनेक हित

दक्षिण में श्रीलंका के अतिरिक्त हमारा एक और पड़ोसी देश है जिसे हम मालदीव के नाम से जानते हैं। इस देश के साथ हमारे आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ते शायद उतने ही पुराने हैं जितने श्रीलंका के साथ हैं। कहते हैं मौर्य वंश के सम्राट अशोक के समय मालदीव में बौद्ध धर्म पहुँचा और वहां के शासकों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण भी दिया। सन् 1887 में इंग्लैंड का उपनिवेश बना और सन् 1965 में आज़ाद होते ही भारत ने मालदीव के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए क्योंकि बाहरी शक्तियों से सुरक्षित रहने के लिए मालदीव से भारत की निकटता अत्यधिक आवश्यक थी। मालदीव हिन्द महासागर क्षेत्र में ऐसी जगह स्थित है जहाँ वह भारत के इर्द गिर्द सुरक्षा कवच में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
 
मालदीव, हिंद महासागर में श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम और भारत के लक्षद्वीप के दक्षिण में स्थित है। यह राष्ट्र लक्षद्वीप से मात्र  700 किमी और भारतीय मुख्य भूमि से लगभग 1,200 किमी दूर है। मालदीव एक द्वीप नहीं बल्कि 1192 द्वीपों की श्रृंखला है जिनमे से मात्र दोसौ द्वीप ही आबाद हैं। द्वीप इतने छोटे हैं कि विश्व के कई मानचित्रों में मालदीव नज़र ही नहीं आता है। यह एक स्वतंत्र देश है जिसकी जनसंख्या पांच लाख लाख से भी कम किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि वह ऐसे समुद्री मार्गों के दरम्यान स्थित है जहाँ से दुनिया का दो तिहाई तेल और मालवाहक जहाजों का आधा हिस्सा गुजरता है। 
 
यदि आपको स्मरण हो तो सन् 1988 में, जब अब्दुल्ला लुथुफी के नेतृत्व में भाड़े के सैनिकों ने वैधानिक सरकार का तख्ता पलट करने का प्रयास किया, तब तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ने भारत सहित कई देशों से सैन्य हस्तक्षेप का अनुरोध किया था। तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने सेना को तुरंत कार्यवाही का आदेश दिया।
 
भारतीय सेना ने भी बिना समय खोए इस द्वीप राष्ट्र पर पैराशूट सैनिकों को उतारा तथा नौसैनिक युद्धपोतों को तैनात कर सरकार को बचा लिया। भारत के इस सैन्य हस्तक्षेप को ऑपरेशन कैक्टस नाम दिया गया था जो दोनों देशों के बीच मित्रता की मिसाल थी। उधर मालदीव ने भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, हर मुद्दे पर  भारत का समर्थन किया है फिर चाहे वह संयुक्त राष्ट्र हो, राष्ट्रमंडल हो या फिर सार्क।
 
मालदीव यकायक चर्चा में इसलिए आया क्योंकि पिछले सप्ताह वहाँ एक बेहद महत्वपूर्ण सत्ता परिवर्तन हुआ। हाल ही के आम चुनावों में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने मालदीव प्रोगेसिव पार्टी के अब्दुल्ला यामीन को करारी शिकस्त दी। इब्राहिम मालदीव के नए राष्ट्रपति होंगे। सत्ता में यह फेरबदल भारत के लिए बहुत अहम है क्योंकि जैसा हम जानते हैं चीन, भारत को चारों तरफ से घेरने का इरादा रखता है।

 
वर्तमान शासक अब्दुल्ला यामीन एक कट्टर चीनी समर्थक है इसलिए मालदीव धीरे धीरे भारत की मित्रता से दूर, चीन की गोद में बैठ रहा था तो भारत के लिए चिंता का विषय बन गया था। यामीन धीरे धीरे तानाशाह भी बनने की ओर अग्रसर था और पिछले दो वर्षों में विपक्षी पार्टियों के प्रमुख नेताओं और अदालतों के जजों को जेल में डाल दिया था। राष्ट्रपति पद के प्रमुख उम्मीदवार श्रीलंका में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यामीन मीडिया पर भी सख्त हो गया था। लेकिन मालदीव के नागरिकों के मताधिकार की ताकत के आगे इन चुनावों में यामीन को करारी हार का मुंह देखना पड़ा।
 
 
भारत की ख़ुशी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आधिकारिक घोषणा होने से पूर्व ही इब्राहिम की इस जीत का बड़ी उतावली में स्वागत करते हुए उन्हें बधाई दे डाली। 

 
यामीन के कार्यकाल में भारतीयों को अपमानित किया जा रहा था और चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर धांधली का अंदेशा था। यही कारण था कि अगस्त माह में सुब्रमण्यम स्वामी ने भारत सरकार को मालदीव पर आक्रमण करने की सलाह दे डाली थी साथ ही चुनावों में सीधे हस्तक्षेप की माँग भी कर डाली थी। यद्यपि उनके इस बयान की मालदीव सहित भारत में भी अनेक लोगों ने आलोचना की थी किन्तु सुब्रमण्यम स्वामी अपनी मर्जी के खुद मालिक हैं और उनके पास अकाट्य तर्क होते हैं अपना पक्ष रखने के लिए।
 
 
यामीन का कार्यकाल नवम्बर में समाप्त हो रहा है और उन्होंने घोषणा की है कि वे सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से कर देंगे। किन्तु जब तक यह हो नहीं जाता तब तक भारत और भारत के कूटनीतिज्ञों के लिए एक चिंता का सबब बना रहेगा। सत्ता के हस्तांतरण के पश्चात् उम्मीद है कि पुरानी मैत्री के दिन बहाल हो जायेंगे और भारत के दक्षिण में चीन द्वारा पैर ज़माने के प्रयास नाकामयाब होंगे। नई सरकार आते ही भारत को मालदीव में प्रजातंत्र को मजबूत करने के प्रयास करने होंगे ताकि चीनी समर्थक भविष्य में पुनः भारत के लिए कोई अप्रिय स्थिति पैदा न कर सकें। राजनैतिक धारा अपने देश के अनुकूल बह रही है, वर्षांत तक इसकी प्रतीक्षा रहेगी फिर भी भारत जैसे उभरते राष्ट्र को अपने आस पास के छोटे राष्ट्रों में हो रहे परिवर्तनों पर सतत सजग रहना होगा।

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