बनाएं रखें सकारात्मक सोच, क्योंकि मन के जीते जीत हैं...

आज के प्रतिस्पर्धा के युग में सभी जाने-अनजाने तनाव से ग्रस्त हैं। तनाव की वजह चाहे छोटी हो तुच्छ हो या बड़ी, शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। नींद न आना, भूख न लगना या बहुत ज्यादा खाना, सदैव तबीयत का रोना रोना या स्वयं को सबसे ज्यादा बदनसीब समझना, दिमाग में सदैव दूसरे के व्यवहार से उथल-पुथल होते रहना, सिरदर्द, थकान, बेरुखी ये सब लक्षण इसी तनाव के नतीजे हैं। होते-होते यह तनाव तन, मन व दिमाग को बीमार बनाता है फिर डॉक्टर के चक्कर, दवाइयों के साइड इफेक्ट्स हमें और बीमार बनाते हैं। जीवन के प्रति, काम के प्रति उदासीनता आने लगती है व व्यक्ति हर परिस्थिति में नाखुश, उदास, अतृप्त व असंतोषी ही लगता है और धीरे-धीरे वह इसकी आदत बना लेता है। ऐसे लोग किसी भी उम्र के क्यों न हों, चेहरे पर उदासी के भाव लिए अपने दुखों व तबीयत का रोना रोते हुए ही दिखाई देते हैं व लोग भी उनसे दूर ही होते जाते हैं।
 
इस तनाव के कारण जिंदगी बोझ लगने लगती है, पर इससे उबरने का एकमात्र उपाय है स्वयं को समझाना, स्वयं को उत्साहित रखना व किसी भी परिस्थिति में जीवन को सर्वोपरि समझ उसकी छोटी-छोटी समस्याओं को नजरअंदाज करते हुए छोटी-छोटी बातों में प्रसन्नता ढूंढते हुए हर पल खुश रहने व प्रसन्न होने की मानसिकता विकसित करना। निम्न बातों से हम दुखी होते हैं। उन पर गहन मनन-चिंतन करने की आवश्यकता है, सोचने की जरूरत है कि क्या ये बातें जिनका हम तनाव लेते हैं, इतनी बड़ी हैं कि हम उन्हें महत्व दे-देकर खुद की खुशियां, जश्न, प्रसन्नता बिगाड़ रहे हैं।
 
1. लोग क्या कहेंगे : हमारा हर काम अपने हिसाब से, जो उचित हो, होना चाहिए। आप सबको प्रसन्न नहीं रख सकते इसीलिए जिसमें आपका, आपके परिवार का, समाज का हित हो, कीजिए। 'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना' हमेशा ध्यान में रखते हुए अपनी जिंदगी का लुत्फ उठाते हुए जिंदगी का सफर तय कीजिए।
 
2. लोगों को बदलने की अपेक्षा रखना : हम किसी को बदल नहीं सकते। हर कोई अपने विचार व स्वभाव अनुसार ही व्यवहार करेगा अत: लोगों को बदलने का प्रयास कर दुखी होने से अच्छा है कि हम स्वयं में बदलाव लाएं।
 
3. असफलता का डर : हर कार्य को उचित ढंग से पूर्ण मेहनत व लगन से करना भर हमारे हाथ में है। सफल-असफल होना परिस्थितियों व कुछ हद तक भाग्य द्वारा निर्धारित होता है। अत: असफल होने का डर फिजूल है।
 
4. लोगों से अपेक्षा रखना : अधिकतर दुख व निराशा हाथ लगती है, जब हम बच्चों, परिवारजनों, रिश्तेदारों या दोस्तों से अपेक्षाएं रखने लगते हैं। किसी से कोई अपेक्षा न रखते हुए अपने कर्तव्य पूर्ण करना आपको अधिक खुश रखेगा।
 
5. अपनी तकलीफ को अधिक समझना : कुछ लोग अपने शारीरिक, मानसिक व सामाजिक संत्रासों को जरूरत से अधिक महत्व दे उन्हीं का रोना रोते हैं। उन्हें लगता है कि वे ही सबसे ज्यादा पीड़ित, प्रताड़ित हो अन्याय को सहन कर रहे हैं, दूसरों के दुखों व परेशानी के आगे अपनी परेशानी कितनी छोटी है, इसे स्वयं को समझाने से ही सदा प्रसन्न रहा जा सकेगा।
 
6. दूसरों से तुलना करना : हमारे दुखों का सबसे बड़ा कारण होता है कि हम हमारे जीवन व परिस्थितियों की दूसरे से सदैव तुलना करते रहते हैं। फिर वे हमारे भाई-बहन हों, सहकर्मी, पड़ोसी या रिश्तेदार। जिस दिन हम अपनी उपलब्धियों व सफलता में खुश होना और उससे भी ज्यादा दूसरों की खुशी में, सफलता में सच्चे मन से सहभागी होना सीख लेंगे यकीन मानिए सभी तनाव दूर हों अजीब-सी खुशी का अनुभव होगा।
 
7. हर समस्या का समाधान है।
 
8. कुछ समय बीतने के बाद समस्या की गंभीरता स्वयं ही कम हो जाती है।
 
9. कोई परेशानी, कोई मुसीबत, कोई बीमारी जीवन से बड़ी नहीं हो सकती।
 
10. जीवन का हर क्षण पूर्व निर्धारित, पूर्व नियोजित ईश्वर द्वारा निर्धारित है, तो हमें चिंता करने की, तनाव लेने की क्या आवश्यकता है? अपने प्रयत्नों व प्रयासों से हमें केवल और केवल परिस्थितियों को धैर्य, साहस व उच्च मनोबल से सामना करते हुए उन्हें अनुकूल बनाने व उन्हीं परिस्थितियों में खुश रहने का प्रयास करना है।
 
11. सफलता व विफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जीत के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा हो, पर हार स्वीकारने की भी मानसिकता विकसित करें।
 
12. अधिक से अधिक अच्छा सोचें, अच्छा करें, दूसरों की अच्छाई की सराहना करें। जो देंगे, वही लौटकर द्विगुणित होकर लौटेगा।
 
13. ईश्वर में आस्था रखने व उसके प्रति समर्पित भाव से जीने से एक अजीब-सा आत्मविश्वास व निश्चितंता का भाव उत्पन्न होता है व हम प्रसन्न रह सकते हैं।
 
14. प्रकृति का सान्निध्य, प्रकृति के बाशिंदों के तरह-तरह के रूप, पेड़-पौधे, नदी, झरने, समुद्र, पक्षियों के विविध रंग, फूलों की सुंदर विभिन्न रचनाएं, फलों के तरह-तरह के स्वाद जीवन की अभूतपूर्व खुशियां लुटाने में सक्षम हैं, इनका मोल करना सीखिए।
 
15. समय निकालकर आत्म अवलोकन करें। अपनी कमियां उदारता से स्वीकारें व दूसरों के गुणों की जी खोलकर प्रशंसा करने से धीरे-धीरे आत्मिक सुख मिलेगा व तनाव दूर होगा।
 
16. ईर्ष्या, द्वेष, गुस्सा, कुंठा, जलन, दूसरों की तुलना करके दुखी होने की प्रवृत्ति केवल और केवल तनाव ही देती है अत: स्वयं को समझाकर इससे दूर रहें।
 
17. कोई दूसरा आपको खुश रख सकें, कर सकें यह मुमकिन नहीं। स्वयं खुश रहना सीखिए। जीवन के हर छोटे-बड़े प्रसंग को, घटना को, उपहार को, ईश्वरप्रदत्त शरीर सौष्ठव, घर-परिवार, बच्चों व मित्रों के साथ को अपना अहोभाग्य मान स्वीकारें व खुश रहें। 
 
अंत में इतना समझ लें कि सुख-दुख, हार-जीत व सफलता-विफलता जीवन का अहम हिस्सा है, इन्हीं के साथ से जीवन को गति मिलती है। ईश्वर-प्रदत्त जीवन एक वरदान है। इसके हर पल को चुनौती समझ सहजता व सरलता से खुशी-खुशी जीवन को बिताइए। आनंद व उल्लास से भरे रहें। पता नहीं कब जीवन संध्या आकर जीवन समाप्त हो जाए।
 
अत: स्वयं खुश रहिए, प्रसन्न रहिए, क्योंकि 'मन के जीते जीत है' मन को हारने मत दीजिए।

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