ऑपरेशन लोटस के बाद भी जारी है कांग्रेस में तोड़फोड़

अरविन्द तिवारी

सोमवार, 27 जुलाई 2020 (13:00 IST)
बात शुरू करते हैं यहां से...

♦️ इंफास्ट्रक्चर आईकान दिलीप सूर्यवंशी फिर चर्चाओं में हैं। नेता तो उनके यहां मत्था टेकने जाते ही हैं, पर अब उनके दरबार में आईएएस और आईपीएस अफसरों की भीड़ बढ़ने लगी है। ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के फैसले में भी उनकी अहम भूमिका रही है। ऐसा कहा जाता है कि उनकी बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कभी टालते नहीं। कहा तो यह भी जाता है कि कमलनाथ ने भी उन्हें कभी निराश नहीं किया। यही कारण है कि कांग्रेस के दौर में भी एक दर्जन से ज्यादा मंत्री उनके अतिथि सत्कार का लुत्फ लिया करते थे। नौकरशाह तो उन्हें इसलिए भी तवज्जो देंगे कि इकबाल सिंह बैंस के बाद कौन मध्यप्रदेश का मुख्य सचिव होगा, यह तय करवाने में उनकी अहम भूमिका रहना है।
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♦️ इन दिनों भोपाल में जिन बंगलों को लेकर सबसे ज्यादा मारामारी है, उनमें एक शिवाजी नगर स्थित C21 भी है। यह बंगला अभी कमलनाथ के ओएसडी रहे प्रवीण कक्कड़ को आवंटित था। कई कैबिनेट मंत्री इसके लिए कतार में थे लेकिन लॉटरी लगी पहली बार के विधायक आकाश विजयवर्गीय की। हालांकि अभी कक्कड़ ने बंगला खाली करने के लिए कुछ समय मांगा है। लेकिन उनके इंदौरी कनेक्शन से वाकिफ लोग तो यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि बंगला कक्कड़ के पास रहे या विजयवर्गीय के, बात तो एक ही है। वैसे यह माना जाता है कि संबंध बनाने और निभाने में प्रवीण कक्कड़ की कोई जोड़ नहीं है।
 
♦️ जब कमलनाथ विधानसभा चुनाव के पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तब उन्होंने माणक अग्रवाल को मीडिया सेल का चेयरमैन बनाया था। कुछ दिन बाद वहां शोभा ओझा की ताजपोशी हो गई। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिन नेताओं ने सत्ता का जमकर दोहन किया, उनमें शोभा भी एक थीं। अपनी फर्राटेदार अंग्रेजी के दम पर उन्होंने कई नौकरशाहों को यह एहसास करवाया कि वही सब कुछ हैं। अफसर भी झांसे में आते गए। जनसंपर्क विभाग तो मानो इन्हीं ने चलाया। अब कांग्रेस की सरकार नहीं है। अफसर कांग्रेस के नेताओं को तवज्जो नहीं दे रहे हैं और संघर्ष के इस दौर में शोभा ओझा परिदृश्य से गायब हैं।
 
♦️ इतनी लापरवाही...! मंत्री अरविंद भदौरिया के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद वीडी शर्मा और सुहास भगत तुरंत क्वारंटाइन हो गए और टेस्ट भी करवाया, पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बेखौफ होकर लोगों से मिलते रहे और बैठकें लेते रहे। न तो मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस और न ही भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया उन्हें कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए क्वारंटाइन होने की सलाह दे पाए। सीएम के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद अब वे तमाम लोग, जो लखनऊ से लौटने के बाद से मुख्यमंत्री के संपर्क में आए जिनमें कई मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं, इन दोनों को कोस रहे हैं। नौकरशाहों में भी चर्चा है कि आखिर ऐसी लापरवाही हुई कैसे?

♦️ परिवहन आयुक्त रहे बी. मधु कुमार से जुड़ा एक वीडियो वायरल होने के बाद इन दिनों रघुवीर सिंह मीणा और गिरीश सक्सेना के बाद सबसे ज्यादा चर्चा है सत्यप्रकाश शर्मा की। परिवहन महकमे से ही ताल्लुक रखने वाला यह कारिंदा जब भी अपने मनमाफिक स्थितियां नहीं रहती हैं, फितरत में लग जाता है। जोड़-तोड़ से राजपत्रित अधिकारी का दर्जा प्राप्त कर चुके शर्मा के कहानी-किस्से विभाग के ही लोग इन दिनों चटखारे लेकर सुना रहे हैं और यह बताने से भी नहीं चूक रहे हैं। इसी पर नकेल का नतीजा है 4 साल पहले बने इस वीडियो का सामने आना।
 
♦️ मनोहर ऊंटवाल ने लोकसभा छोड़ विधानसभा में जाना पसंद किया था और आगर से दूसरी बार विधायक बन गए थे। उनके दिवंगत होने के बाद इस सीट पर बेटे की निगाहें हैं। पार्टी भी ऊंटवाल परिवार को उपकृत करना चाहती है ताकि सहानुभूति का फायदा भी मिल सके। पर दिक्कत दूसरी है। पार्टी के बड़े नेता चाहते हैं कि पत्नी चुनाव लड़े जबकि परिजन बेटे के पक्ष में हैं। मामला दिल्ली तक पहुंच गया है और फैसला विनय सहस्त्रबुद्धे के माध्यम से ही होना है। यही कारण है कि बेटे ने उनके दरबार में भी दस्तक दे दी है।
 
♦️ कमलनाथ का मैनेजमेंट तो अपनी जगह है, पर इन दिनों सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया के मैनेजमेंट की बड़ी चर्चा है। विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा में आए भदौरिया सबसे पहले 2005 के बड़ामलहरा उपचुनाव के दौरान चर्चा में आए थे। फिर जो भी जवाबदारी सौंपी गई, उसमें वे खरे उतरे। चाहे वह उमा भारती के दौर में सत्ता और संगठन के बीच समन्वय की हो या फिर कुछ महीने पहले ऑपरेशन लोटस के दौरान कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की। अब सरकार बनने के बाद जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव से मुक्त होने के लिए कुछ और विधायकों को भाजपा में लाने की बात चली तो फिर भदौरिया ने मोर्चा संभाला और 15 दिन में 3 से पाला बदलवा दिया। अभी अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन ऑपरेशन जारी है। देखते हैं कितने और ला पाते हैं?
 
♦️ एडीजी प्रशासन का पद पाने में सफल हुए अन्वेष मंगलम के बारे में कहा जाता है कि वे हमेशा सिस्टम से चलते हैं और इसी का फायदा उन्हें मिलता है। सालों पहले आदेश होने के बावजूद वे डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर का पद हासिल नहीं कर पाए। लेकिन इसके बाद जो भी जिम्मेदारी मिली, उसे पूरी शिद्दत के साथ पूरा किया। मध्यप्रदेश के डॉयल 100 सिस्टम को देश में जो अलग पहचान मिली, उसके पीछे भी अन्वेष मंगलम ही हैं। पुलिस मुख्यालय में डीजीपी एडीजी प्रशासन और एडीजी इंटलीजेंस के बाद ही सबसे अहम माने जाते हैं और इन दोनों पदों पर इन दिनों ऐसे अधिकारी पदस्थ हैं जिनकी पुलिस महकमे में एक अलग छवि है।
 
 
चलते चलते...
 
*अरुण यादव ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ दहाड़ रहे हैं और उनके समर्थक विधायक भाजपा में जा रहे हैं। अलर्ट रहें अरुण भाई, पूर्वी निमाड़ के बाद अब पश्चिम निमाड़ की बारी है।
 
*ग्वालियर जोन के एडीजी से भोपाल के नजदीक भौंरी स्थित देश के शीर्ष पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में से एक के संचालक बनाए गए एडीजी राजा बाबू सिंह की पदस्थापना में 1 सप्ताह के भीतर ही बदलाव किसी को समझ में नहीं आ रहा है।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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