भाजपा की 3 राज्यों में विजय से कांग्रेस को यह सबक याद रखने होंगे

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल के तौर पर देखे 4 राज्यों के विधानसभा चुनावों में से 3 राज्यों में भाजपा की प्रचंड जीत से कुछ बातें एकदम साफ हो रही हैं, कांग्रेस और राहुल गांधी भले ही सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रहे हो, लेकिन धरातल पर अब भी उन्हें कई सबक याद रखने होंगे। दक्षिण भारत के तेलंगाना में कांग्रेस की जीत बहुत बड़ी है। सीखना चाहें तो कर्नाटक और तेलंगाना से बहुत से सबक सीखे जा सकते हैं।

सबसे बड़ा सबक है कि उत्तर भारत में अभी भी जातिगत आरक्षण फिलहाल विनिंग मुद्दा एकदम तो नहीं दिख रहा। मुफ्त अनाज, कैश ट्रांसफर जैसी फ्रीबीज महिलाओं और निचले तबके के लोगों के बीच बड़ा आकर्षण हैं। इसका बड़ा उदाहरण है कि मध्यप्रदेश में एंटी इंकम्बेंसी और सत्ता के खिलाफ जो नाराजगी दिख रही थी, महिलाओं ने उसे एकदम पलट दिया।

लाड़ली बहना योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश में 21 से लेकर 60 साल तक की उम्र वाली एक करोड़ 31 लाख महिलाओं के खाते खोले गए हैं, जिसमें पहले प्रति माह एक हज़ार रुपए फिर 1250 रुपए की रक़म ट्रांसफर करने की प्रक्रिया चल रही है, शिवराज सरकार ने इसे बढ़ाकर 3 हजार तक करने का वादा किया है।

इसी तरह तेलंगाना में कांग्रेस ने वादा किया है कि वो सत्ता में आई तो वो हर बेरोज़गार युवा को चार हज़ार रुपए प्रति माह, महिलाओं को ढाई हज़ार रुपए प्रति माह, बुज़ुर्गों के लिए चार हज़ार रुपए प्रति माह पेंशन, किसानों को 15 हज़ार रुपए देगी और चुनाव परिणाम बताते है कि कांग्रेस का ये दांव पूरी तरह कारगर रहा।

इसके अलावा विधानसभा चुनाव के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 नवंबर को मुफ़्त अनाज की योजना को अगले पांच साल तक बढ़ाने का फ़ैसला किया। जिसका असर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में साफ दिखा।

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का एक और बड़ा कारण है कि मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस ने अपने पुराने क्षत्रपों पर ही भरोसा किया। मध्यप्रदेश में कांग्रेस बुजुर्ग नेताओं के दो खेमों में बंटी नजर आई, उनके हाथ में पूरे सूत्र होने से टिकट बंटवारे के दौरान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच मतभेदों की खबरें भी सामने आईं। सोशल मीडिया पर कमलनाथ का दिग्विजय सिंह और उनके बेटे जयवर्धन सिंह के कपड़े फाड़ो वाला बयान बेहद चर्चा में रहा था।

मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस का अहंकारी नेतृत्‍व, राजस्‍थान में अंर्तकलह और छत्‍तीसगढ में अति-आत्‍मविश्‍वास कांग्रेस को ले डूबा।

दूसरी तरफ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने टिकट बंटवारे में क्षेत्रीय समीकरण को प्राथमिकता देने के बजाए अपने लोगों को मौका दिया, उल्लेखनीय है कि इसके पहले भी मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में अशोक गहलोत द्वारा सचिन पायलट जैसे युवा नेताओं को हाशिए पर धकेलना कांग्रेस को भारी पड़ा है।

2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाग की कुल 34 सीटों में से कांग्रेस को 26 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय से अनबन के चलते मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ की सरकार को गिरा दिया। इस बार विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल इलाके में बीजेपी को बड़ी बढ़त मिली है।

अगले साल के शुरुआती महीनों में लोकसभा चुनाव होने है और कांग्रेस को इस हार से सबक लेते हुए इन राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन कर नई पीढ़ी को आगे लाना होगा। जैसा कांग्रेस ने तेलंगाना में किया। 2021 में कांग्रेस ने रेवंत रेड्डी को बड़ी ज़िम्मेदारी देते हुए प्रदेश अध्यक्ष चुना। रेवंत रेड्डी ही तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का चेहरा बने रहे।

एक और बड़ा कारण है जिसे भाजपा ने अच्छी तरह भुनाया, वो है हिन्दुत्व का मुद्दा, भाजपा ने राम मंदिर से लेकर अन्य कई मंदिरों के पुनरुद्धार ने हिंदू जनमानस में मोदी की छवि एक नायक के तौर पर बनाई। सनातन धर्म पर स्टालिन के बयान ने अंदर ही अंदर आग में घी का काम किया है।

इसके अलावा आदिवासी इलाक़ों में जमीनी स्तर पर आरएसएस की लोकप्रियता बढ़ी बल्कि आदिवासियों के बीच हिन्दू पहचान को भी बढ़ावा मिला। कांग्रेस अपने इस वोट बैंक को रीटेन नहीं कर पाई नतीजतन पिछले तीन चुनावों से बीजेपी आदिवासी इलाक़ों में बड़ी जीत हासिल करती आ रही है। कांग्रेस और उसके नेता सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा के मुकाबले कहीं नहीं ठहरे।

मोदी का चेहरा अब भी उत्तर भारत में जीत की गारंटी है, मोदी के मुकाबले अब भी विपक्ष के पास कोई ऐसा नेता है ही नहीं। लोकसभा के लिए एक सर्वमान्य और लोकप्रिय चेहरे का अभाव आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है।

कर्नाटक के बाद तेलंगाना में कांग्रेस की जीत से एक और बात साफ होती है कि अब दक्षिण और उत्तर के बीच वैचारिक गैप बढ़ रहा है। कांग्रेस कर्नाटक और तेलंगाना दोनों ही राज्यों में भ्रष्टाचार के मामले पर आक्रमक रही और इसका फायदा भी उन्हें मिला लेकिन मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पार्टी कुछ खास असर नहीं कर पाई।

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