बंगाल में जय श्रीराम के नारे पर सियासी महाभारत, ममता के भड़कने पर भाजपा ने उठाए सवाल

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के बाद भी सियासी पारा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। एक ओर भाजपा लगातार ममता को झटका देते हुए उनके विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा रही है तो दूसरी ओर अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तेवर भी तीखे होते जा रहे हैं। गुरुवार को जब मुख्यमंत्री का काफिला उत्तरी 24 परगना जिले के भाटपारा इलाके से गुजर रहा था तो कुछ लोगों के समूह ने जय श्रीराम के नारे लगाए। जय श्रीराम के नारे सुनते ही ममता भड़क गईं।

मुख्यमंत्री ने अपना काफिला रुकवाकर गाड़ी से नीचे उतरकर नारे लगाने वाले लोगों को जमकर खरी-खोटी सुनाई। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने नारे लगाने वालों का भाजपा के लोग ठहरा दिया। घटना से जुड़ा जो वीडियो सामने आया है उसमें वो लोगों को धमकाने वाले अंदाज में बंगाल से बाहर कर देने की चेतावनी भी दे रही हैं, वहीं पूरे मामले पर अब सियासत भी गर्मा गई है।

पश्चिम बंगाल के प्रभारी और भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट कर निशाना साधते हुए लिखा कि ममता बनर्जी जी, आपको बांग्लादेशी घुसपैठियों पर, रोहिंग्याओं पर, आतंकवादियों पर, नकली नोट का धंधा करने वालों पर, गौ तस्करों पर, बलात्कारियों पर गुस्सा नहीं आता! भाजपा कार्यकर्ताओं के हत्यारों पर भी गुस्सा नहीं आता! 'जय श्रीराम' सुनकर गुस्सा क्यों आ जाता है? इससे पहले लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ममता बनर्जी पर आरोप लगाया था कि उनकी सरकार लोगों को जय श्रीराम के नारे लगाने से रोकती है।

इसके बाद अपनी रैलियों में खुद अमित शाह ने मंच पर जय श्रीराम के नारे लगाए थे। वहीं अब चुनाव के समय जय श्रीराम के नारे से जुड़ा विवाद जिस भाटपारा इलाके का है जहां परिणाम के बाद पिछले कई दिनों से भाजपा और टीएमसी के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हो रही है। चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार अर्जुन सिंह ने टीएमसी के दिनेश त्रिवेदी को हराया है।

वहीं पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर आनंद पांडे कहते हैं कि उत्तरी परगना में मुख्यमंत्री का जय श्रीराम के नारे लगाने वालों पर भड़कना कहीं न कहीं चुनाव में मिली हार के बाद उनकी हताशा को दिखाता है। आनंद पांडे कहते हैं कि भाटपारा वो इलाका है जहां बड़ी संख्या में हिंदी भाषी लोग रहते हैं और ममता बनर्जी का उन पर सार्वजनिक तौर पर भड़कना उनकी तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा देने वाली विचारधारा की तरफ इशारा करता है।

वो कहते हैं कि 2011 में ममता की पार्टी जब सत्ता में आई तो इसके पीछे तुष्टिकरण की नीति बहुत बड़ा कारण रही थी तब उन्होंने हिंदी भाषी लोगों को बंगाल में अतिथि बताया था और अब बाहरी बता रही हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे दोनों ही पार्टियां वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिश में किस तरह आगे बढ़ेंगी।

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