सांप्रदायिक सौहार्द पर न आए आंच, विहिप नहीं मनाएगी शौर्य दिवस

संदीप श्रीवास्तव

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019 (17:36 IST)
अयोध्या। इस बार विश्व हिन्दू परिषद 6 दिसंबर को शौर्य दिवस नहीं मनाएगी, क्योंकि विहिप का मानना है कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के निर्माण के आदेश का फैसला देश की सर्वोच्च्य अदालत से आने के उपरांत देश में सुख-शांति एवं सांप्रदायिक सौहार्द पर किसी प्रकार से आंच न आने पाए और अयोध्या में भव्य श्रीराम जन्मभूमि का निर्माण निर्धारित समय से शुरू हो सके। वहीं दूसरी ओर बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे इक़बाल अंसारी ने भी साफतौर पर कहा कि अब जब देश की सबसे बड़ी अदालत में इस मसले का फैसला आ चुका है तो यौमे-गम मनाने का कोई मतलब नहीं है।

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को रामजन्मभूमि स्थित विवादित ढांचे को कारसेवकों के द्वारा ढहाया गया था, जिसके उपरांत हर वर्ष 6 दिसंबर को विहिप शौर्य दिवस के रूप में मनाती चली आ रही है। इस वर्ष 28वां शौर्य दिवस है, जिसे विहिप ने स्थगित करते हुए अब अयोध्या के मठ-मंदिरों एवं घरों में ही दीप प्रज्‍जवलन का कार्यक्रम कर रही है, जिसकी जानकारी विहिप प्रवक्ता शरद शर्मा ने दी।

उन्होंने बताया कि श्रीरामलला के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के उपरांत अब अयोध्या सहित देशभर में 6 दिसंबर को सार्वजनिक रूप से आयोजित होने वाले शौर्य दिवस के कार्यक्रम को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है। इस दिन विहिप पदाधिकारियों ने देश व प्रदेशवासियों से शांति और सद्भाव को बल प्रदान करने का आह्वान किया है।

शर्मा ने कहा कि 6 दिसंबर की घटना हिन्दुओं को सदैव स्वाभिमान और सम्मान का स्मरण कराती रहेगी। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीरामलला के पक्ष में निर्णय का स्वागत देश के प्रत्येक रामभक्त ने किया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण 9 नवंबर 2019 की तिथि संपूर्ण देश के लिए सत्य की विजय के रूप में स्मरण दिलाती रहेगी।

इक़बाल अंसारी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यौमे-गम का कोई मतलब नहीं : मुस्लिम समुदाय 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद बाबरी मस्जिद की शहादत के रूप में तभी से मनाते चले आ रहे हैं।

इसी तरह इस वर्ष भी मुस्लिम समुदाय की ओर से बाबरी एक्शन कमेटी ने 28वीं बरसी के रूप में यौमे-गम मनाने का फैसला लिया है, जबकि बाबरी मस्जिद के मुद्दई इक़बाल अंसारी ने साफतौर पर कहा कि अब जब देश की सबसे बड़ी अदालत में इस मसले का फैसला आ चुका है तो इस प्रकार के आयोजनों को मनाने का कोई मतलब नहीं है।

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