लाइफ कोचिंग : अपने व्यवहार में ढूंढें मुश्किलों का हल

लाइफ कोचिंग बहुत से भारतीयों के लिए नया शब्द हो सकता है, लेकिन पश्चिमी देशों से आई इस विधा का भारत में तेजी से प्रचलन बढ़ रहा है। तनाव, पारिवारिक एवं व्यावसायिक उलझनों में एक लाइफ कोच व्यक्ति का अच्छा मददगार हो सकता है। 
 
वेबदुनिया से खास बातचीत में लाइफ कोच डॉ. आलोक पुरोहित ने बताया कि हर व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग तरह से व्यवहार करता है। वह किस तरह से व्यवहार करता है, यदि उसके बारे में वह बेहतर तरीके से समझ सके तो अपनी बहुत सी समस्याओं का हल ढूंढ सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्ति के व्यवहार में ही उसकी समस्याओं का हल भी निहित होता है। 
 
लाइफ कोचिंग पर चर्चा करते हुए आलोक कहते हैं कि लाइफ कोचिंग एक नए तरह की लर्निंग है, जो एंटरप्रेन्योर, एक्जीक्यूटिव, सीनियर मैनेजर, बिजनेस ऑनर्स आदि के लिए है। इसमें व्यक्ति के व्यवहार को समझकर उसे मार्गदर्शन दिया जाता है और उसकी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया जाता है।
आलोक कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में पश्चिमी दुनिया में लाइफ कोचिंग का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। एकाध साल से भारत में भी इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। वे कहते हैं कि तेज रफ्तार जिंदगी, तनाव, उलझनें, व्यक्तिगत और व्यावसायिक समस्याएं आदि के चलते लाइफ कोचिंग की जरूरत पड़ती है। व्यक्ति के व्यवहार को समझकर आगे बढ़ना ही लाइफ कोचिंग की सबसे बड़ी विशेषता है।
 
इस विधा के माध्यम से कोच संबंधित व्यक्ति के व्यवहार को समझकर उसकी पीड़ा, नकारात्मकता को बाहर लाता है और उसके भीतर सकारात्मकता पैदा करता है, जिससे व्यक्ति की ताकत और विश्वास बढ़ता है। 
 
पुरोहित  कहते हैं कि लाइफ कोचिंग क्लासरूम ट्रेनिंग की तरह नहीं है। इसमें लोकेशन भी कोई मायने नहीं रखती। स्काइप और इंटरनेट के माध्यम से व्यक्ति कहीं भी ट्रेनिंग ले सकता है। यूं तो सप्ताह में एक घंटे का मार्गदर्शन पर्याप्त होता है, लेकिन कभी जरूरत के मुताबिक सप्ताह में दो बार भी ट्रेनिंग दी जा सकती है।

वे कहते हैं कि अनुभव हमें अच्छा भी सिखाते हैं और बुरा भी। भविष्य के निर्णय भी हमारे अनुभव के आधार पर ही होते हैं। कोचिंग के दौरान व्यक्ति अपनी विफलता, भय आदि कमजोरियों की चर्चा करता हैं। यह कोचिंग पूरी तरह गोपनीय होती है। कोच व्यक्ति की सामर्थ्य को विकसित करता है ताकि वह अपने जीवन में और सफलता अर्जित कर सके।
 
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आलोक कहते हैं कि लाइफ कोच की निगाह अपने क्लाइंट पर उसी तरह होती है, जिस तरह फुटबॉल के मैदान में खेल रहे खिलाड़ियों पर कोच की होती है। हमारी कोशिश रहती है कि व्यक्ति खुद के व्यवहार से सीखें। वे कहते हैं कि बिजनेस, करियर आदि में गलत फैसले के चलते लोग लाइफ कोच की मदद लेते हैं।
अपनी बात के समर्थन में शेयर मार्केट का उदाहरण देते हुए आलोक कहते हैं कि बाजार एक ही तरह से चलता है, लेकिन कुछ पैसा गंवाते हैं तो कुछ कमाते हैं। इसमें मार्केट का कोई दोष नहीं है, इसके पीछे व्यक्ति का व्यवहार ही होता है। जैसे- लालच, भय आदि। जैसी परिस्थितियों में वह निर्णय लेता है, उसी के अनुरूप वह नफा-नुकसान भी उठाता है। हमारा प्रयास रहता है कि उनके व्यवहार को संतुलित कैसे किया जाए, ताकि वे सही निर्णय ले सकें। 
पुरोहित  कहते हैं कि सबसे अहम बात यह है कि व्यक्ति को परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढालना सीखना चाहिए क्योंकि बदलाव आज की मूलभूत आवश्यकता है। वे कहते हैं कि नाम के साथ श्री और जी लगाने की हमारी परंपरा है, लेकिन नई पीढ़ी इन चीजों को नहीं मानती। इसका यह मतलब नहीं कि वह किसी का सम्मान नहीं करती। वे कहते हैं कि किसी समय डायनासोर सबसे बड़े प्राणी थे। पर्यावरण बदला लेकिन वे खुद को उसके अनुरूप नहीं ढाल सके और नष्ट हो गए। आज सिर्फ उनके अवशेष देखने को मिलते हैं। 
 
लाइफ कोच रखने से पहले यह आवश्यक है कि क्लाइंट का निश्चय दृढ़ हो क्योंकि यह एक ध्येय आधारित प्रक्रिया है एवं इसमें निरंतरता एवं फोकस की मूलभूत जरूरत होती है। लाइफ कोचिंग में व्यावहारिक रूपांतरण होता है एवं लोग सफल तथा संतुष्ट जीवन की ओर अग्रसर होते हैं। पुरोहित का मानना है कि लाइफ कोच आने वाले समय में बहुत बड़ा योगदान देंगे एवं उनकी उपयोगिता लगातार बढ़ेगी। 
 

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