Kushmanda ki Katha: नवदुर्गा नवरात्रि की चतुर्थी की देवी मां कूष्मांडा की कथा कहानी

WD Feature Desk

गुरुवार, 11 अप्रैल 2024 (14:35 IST)
Kushmanda devi ki katha: 9 दिनों तक चलने वाली चैत्र या शारदीय नवरात्रि में नवदुर्गा माता के 9 रूपों की पूजा होती है। माता दुर्गा के 9 स्वरूपों में चौथे दिन चतुर्थी की देवी है माता कुष्मांडा। नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा का पूजन किया जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है। आओ जानते हैं माता कुष्मांडा देवी की पावन कथा क्या है।
ALSO READ: नवरात्रि की तृतीया की देवी मां चंद्रघंटा की पौराणिक कथा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। 
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।
 
देवी का स्वरूप : इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कूष्मांडा। इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है।
 
 मां कुष्मांडा की कथा कहानी- Chandraghanta ki katha Story:
 
कुत्सित कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत संसार,
स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या सा कूष्मांडा।
ALSO READ: नवरात्रि की प्रथम देवी मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
देवी की कथा के अनुसार जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी तब उस समय चारों ओर अंधकार था। देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंड सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई। उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान माता की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ। अतः यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई। इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं। वह देवी जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री देवी हैं।
 
नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी