रावण पुत्र मेघनाद के बारे में 10 खास बातें

ऋषि विश्वश्रवा ने ऋषि भारद्वाज की पुत्री इलाविदा से विवाह किया था जिनसे कुबेर का जन्म हुआ। विश्वश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से रावण, कुंभकरण, विभीषण और सूर्पणखा पैदा हुई थी। मंदोदरी से रावण को जो पुत्र मिले उनके नाम हैं- मेघनाद, महोदर, प्रहस्त, विरुपाक्ष भीकम वीर। कहते हैं कि धन्यमालिनी से अतिक्या और त्रिशिरार नामक दो पुत्र जन्में जबकि तीसरी पत्नी के प्रहस्था, नरांतका और देवतांका नामक पुत्र थे।
 
 
1. मेघनाद का जन्म : मेघनाद रावण और मंदोदरी का सबसे ज्येष्ठ पुत्र था। क्योंकि रावण एक बहुत बड़ा ज्योतिष भी था जिसे एक ऐसा पुत्र चाहिए था जो कि महाबलशाली और महाप्रतापी हो, इसलिए उसने सभी ग्रहों को अपने पुत्र कि जन्म-कुंडली के 11-वें (लाभ स्थान) स्थान पर रख दिया, परंतु रावण कि प्रवृत्ति से परिचित शनिदेव 11वें स्थान से 12वें स्थान (व्यय/हानी स्थान) पर आ गए जिससे रावण को मनवांछित पुत्र प्राप्त नहीं हो सका। इस बात से क्रोधित रावण ने शनिदेव के पैर पर प्रहार किया था।
 
 
वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार जब मेघनाद का जन्म हुआ तो वह समान्य शिशुओं की तरह रोया नहीं था बल्कि उसके मुंह से बिजली की कड़कने की आवाज सुनाई दी थी। यही कारण था की रावण ने अपने इस पुत्र का नाम मेघनाद रखा।
 
 
2. मेघनाद का परिवार : मेघनाद की पत्नी का नाम सुलोचना और पुत्र का नाम अक्षय कुमार था। हनुमानजी ने अक्षय कुमार का अशोक वाटिका में वध कर दिया था। कहते हैं कि इसकी एक और पत्नी थीं जिसका नाम नागकणः था जो पाताल के राजा शेषनाग की पुत्री थी। 

 
3. स्वर्ग विजयी : मेघनाद अपने पिता की तरह स्वर्ग विजयी था। उसने इंद्र को पराजित कर दिया था। इंद्र को परास्त करने के कारण ही ब्रह्माजी ने इसका नाम इंद्रजीत रखा था। मेघनाद का मूल नाम घननाद था लेकिन इंद्र को हराने के बाद उसे इंद्रजीत, वासवजीत, शक्रजीत-इंद्र कहा गया।

 
4. ब्रह्मा का वरदान : बंधक इंद्र को छुड़ाने ‍के लिए जब ब्रह्मा ने आज्ञा दी तो मेघनाद ने इंद्र को बंधन-मुक्त कर दिया था। इस पर ब्रह्मा ने कहा वरदान मांगो। तब मेघनाद ने अमरता का वर मांगा, लेकिन ब्रह्मा ने कहा कि यह देने संभव नहीं लेकिन उन्होंने इसके समान ही वर जरूर दिया। वर अनुसार अपनी कुल देवी प्रत्यांगीरा के यज्ञ के दौरान मेघनाद को स्वयं त्रिदेव नहीं हरा सकते और नहीं मार सकते थे।

 
5. मेघनाद के गुरु : मेघनाद ने शुक्रचार्य और साक्षात महादेव से शिक्षा प्राप्त की थी। महादेव शिव से प्रशिक्षण प्राप्त लगभग सभी दिव्यास्त्रों का ज्ञाता बन गया था। किशोरावस्था कि आयु होते-होते इसने अपनी कुलदेवी निकुंभला (प्रत्यांगीरा) के मंदिर में अपने गुरु से दीक्षा लेकर कई सिद्धियां प्राप्त कर लीं थीं। जब मेघनाथ युवा अवस्था में पहुंचा तो उसने कठिन तपस्या के बल पर संसार के तीन सबसे घातक अस्त्र (ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र और वैष्णव अस्त्र) प्राप्त कर लिए थे।

 
6. अतिमहारथी योद्धा : आदिकाल से अब तक यही एक मात्र ऐसा योद्धा है जिसे अतिमहारथी की उपाधि दी गई है। इसका नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जो ब्रह्माण्ड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पाशुपात अस्त्र के धारक कहे जाते हैं। इसने अपने गुरु शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर तथा त्रिदेवों द्वारा कई अस्त्र- शस्त्र एकत्र किए थे। स्वर्ग में देवताओं को हरा कर उनके अस्त्र-शस्त्र पर भी अधिकार कर लिया था।

 
7. पितृभक्त मेघनाद : मेघनाद पितृभक्त पुत्र था। उसे यह पता था कि राम स्वयं भगवान है फिर भी उसने पिता का साथ नहीं छोड़ा। जब उसकी मां मंदोदरी ने उसे यह कहा कि इंसान मुक्ति की तरफ अकेले जाता है तब उसने कहा कि पिता को ठुकरा कर अगर मुझे मोक्ष या स्वर्ग भी मिले तो मैं ठुकरा दूंगा।

 
8. मृत्यु का कारण : अपने विशिष्ट रथ पर अत्यधिक निर्भरता, अगस्त्य द्वारा बनाए गए कुछ नए दिव्यास्त्रों जैसे सूर्यास्त्र, एन्द्रास्त्र आदि से अनिभिज्ञता जो उसकी पराजय और मृत्यु का कारण बनी।

 
9. मेघनाद का वध : कुम्भकर्ण के वध के बाद मेघनाद युद्ध में उतरा। पहले दिन के युद्ध में उसने सुग्रीव की पूरी सेना को हिला डाला। राम और लक्ष्मण भी उसकी मायावी शक्ति के सामने बेबस हो चले थे। क्योंकि उसने अपनी कुलदेवी का यज्ञ प्रारंभ करके ही युद्धघोष किया था। जिसके प्रभाव से उसका रथ अदृश्य हो जाता था। मौका पाकर उसने राम और लक्ष्मण पर नागपास का प्रयोग किया और दोनों को मूर्छित कर दिया। नागपाश से मूर्छित व्यक्ति अगले दिन का सूरज नहीं देख सकता था। तब हनुमानजी तुरंत गुरुढ़ भगवान के पास गए और उन्हें लेकर आए। गरुड़ को देख नाग भयभीत हो गए तथा उन्होंने राम तथा लक्ष्मण को मुक्त कर दिया तथा उनकी मूर्छा टूटी।

 
अगले दिन मेघनाद ने अपने शक्ति बाण से लक्ष्मण जी मूर्छित कर दिया। तब लक्ष्मण के प्राण को बचाने के लिए हनुमानजी लंका से सुषेण वैद्य को उठा लाये। वैद्य ने हनुमान को उपाय बताते हुए संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा। उस संजीवनी बूटी से ही लक्ष्मण की मूर्छा टूटी।

 
तीसरे दिन विभीषण के कहने पर लक्ष्मण वहां जा पहुंचे जहां मेघनाद कुलदेवी का यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में कुलदेवी की पूजा करते समय हथियार उठने की मनाही थीं परतु फिर भी वहां रखे यज्ञ पात्रों की सहायता से मेघनाद लक्ष्मण से बचते हुए सकुशल लंका पहुंच गया।ो

 
चौथे दिन मेघनाद को लक्ष्मण ने वीरगती को प्राप्त कर दिया। इसी युद्ध में लक्ष्मण के घातक बाणों से मेघनाद मारा गया। लक्ष्मणजी ने मेघनाद का सिर उसके शरीर से अलग कर दिया और सिर को प्रभु श्रीराम के चरणों में रख दिया।

 
10. सुलोचना लेकर आई कटा सिर : यह कथा हमें रामायण में नहीं मिलती है। यह कथा हमें रामायण से इतर दक्षिण भारत की प्रचलित लोककथा में मिलती है। कहते हैं कि यह किवदंती है। इसमें सचाई नहीं है। रामायण अनुसार प्रभु श्रीराम ने मेघनाद का शव अपने दूतों के हाथ रावण के दूतों को सौंप दिया था।

श्रीराम मेघनाद की मृत्यु की सूचना मेघनाद की पत्नी सुलोचना को देना चाहते थे। उन्होंने मेघनाद की एक भुजा को, बाण के द्वारा मेघनाद के महल में पहुंचा दिया। वह भुजा जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना ने देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। तब कटे हाथ ने लिखकर लक्ष्मण का गुणगान किया।
 
 
रावण को सुलोचना ने मेघनाद का कटा हुआ हाथ दिखाया और अपने पति का सिर मांगा। सुलोचना रावण से बोली कि अब में एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहती में पति के साथ ही सती होना चाहती हूं। तब रावण ने कहा, ‘पुत्री चार घड़ी प्रतिक्षा करो में मेघनाद का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर आता हूं। लेकिन सुलोचना को रावण की बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब सुलोचना मंदोदरी के पास गई। मंदोदरी ने कहा कि तुम राम के पास जाओ, वह बहुत दयालु हैं।
 
 
सुलोचना जब राम के पास पहुंची तो उसका परिचय विभीषण ने करवाया। सुलोचना ने राम से कहा, ‘हे राम में आपकी शरण में आई हूं। मेरे पति का सिर मुझे लौटा दें ताकि में सती हो सकूं। राम सुलोचना की दशा देखकर दुखी हो गए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को अभी जीवित कर देता हूं।

 
सुलोचना ने कहा कि, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे पति जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें। मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि आपके दर्शन हो गए। मेरा जन्म सार्थक हो गया। अब जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं।

 
राम के कहने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए लेकिन उनके मन में यह आशंका थी कि कि मेघनाद के कटे हाथ ने लक्ष्मण का गुणगान कैसे किया। सुग्रीव से रहा नहीं गया और उन्होंने कहा में सुलोचना की बात को तभी सच मानूंगा जब यह नरमुंड हंसेगा।

 
सुलोचना के सतीत्व की यह बहुत बड़ी परीक्षा थी। उसने कटे हुए सिर से कहा, ‘हे स्वामी! जल्दी हंसिए, वरना आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब सत्य नहीं मानेंगे। इतना सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इस तरह सुलोचना अपने पति का कटा हुए सिर लेकर चली गईं।

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