Geeta Jayanti : महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी और गीता ज्ञान

गीता उपदेश भले ही श्रीकृष्ण ने रणक्षेत्र में दिए हैं, परन्तु हम महिलाओं के जीवन में रोजमर्रा के काम और जिंदगी की गुजर-बसर किसी जंग से कम नहीं। ये उपदेश केवल ज्ञान अर्जित करने व भक्ति मात्र का साधन नहीं है, यह आत्मसात करके जीने की कला है। कथा सुनने-सुनाने, दान-पुण्य, ज्ञान बघारने का शस्त्र नहीं बल्कि जीवन के कठिनतम मार्ग को आसान करने का शस्त्र है। दीवार पर लटके गीता संबंधी श्लोक, उपदेश, फोटो मोक्ष नहीं देते।  नहीं उन्हें पठन-पाठन मात्र से गुन सकते हो। इन्हें आजमाने के आलावा कोई और रास्ता जिंदगी की राह आसान नहीं बनाता। 
 
इसके लिए न तो आपको किसी आडम्बर की जरुरत है, न किसी विशिष्टता की। जरुरत है केवल खुद को जानने और खुद को खुश कैसे रखें ऐसी विधा की, जो सामान्य बुद्धि के साथ भी घरेलू जिंदगी को भी कारगर बनाने की अपार शक्ति रखती है, वो है गीता... ऐसी ही कुछ बातें आज हम जानते हैं जो हम महिलाओं के जीवन को सबल, शांत, आत्मविश्वासी और आनंददायक बनाती है। 
 
उदारता- हमारा मूल स्वभाव है. जन्मजात, पैदाईशी हममें मातृत्व, दया, प्रेम, वात्सल्य होता है। उसे बरक़रार रखें। प्रकृति और पर्यावरण, जीव-जंतु सभी के लिए उदार दृष्टिकोण रखें। सामाजिक जीवन अपने आप मधुरता लिए हो जाएगा। 
 
कला से प्रेम- मोरपंख, व बांसुरी धारण करना, संस्कृति व पर्यावरण के प्रति लगाव श्रीकृष्ण ने सिखाया, हम अपने आसपास हमेशा कलात्मक, शौकीन, सकारात्मक, खुश और हर पल जिन्दादिली से जीने व जीने देने वाले हमेशा कलाप्रेमी होते हैं। 
 
आत्मभाव में रहना- नाम, पद, प्रतिष्ठा, संप्रदाय, धर्म, स्त्री या पुरुष हम नहीं हैं। ये सब समय के साथ बदलने वाली चीजें हैं। ये शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा। लेकिन आत्मा स्थिर है और हम आत्मा हैं। आत्मा कभी न मरती है, न इसका जन्म है और न मृत्यु! आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है। इसलिए अमीर नहीं-अमर होने की दिशा में कार्य करते चलें। 
 
 नजरिए को शुद्ध करें- हमें अपने देखने के नजरिए को शुद्ध करना होगा और ज्ञान व कर्म तथा वास्तविकता को एक रूप में देखना होगा, जिससे हमारा नजरिया बदल जाएगा। सुनी सुनाई बातों के बजाय घटनाक्रम के सन्दर्भ की समझने की कोशिश कर बात को सुलझाने की कोशिश करें। कई छोटे-बड़े मसले पारिवारिक जीवन में आते हैं जिन्हें हमें ही निपटना होता है। 
 
क्रोध पर काबू, मन को शांत रखें- अपने क्रोध पर काबू रखें। क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि विचलित होती है, हम चिड़चिड़ापन लिए घूमते हैं। ऐसे स्वभाव वालों को कोई पसंद नहीं करता। अकेलापन व भय बढ़ने लगता है तब ये हमारे आत्मविश्वास के दुश्मन बन जाते हैं। इसलिए अशांत मन को शांत करने के लिए अभ्यास और विश्वास को पक्का करते जाओ। यही गीता भी सिखाती है।  
 
अपना काम स्वयं करें, पहले विचार करें-  हम जो भी कर्म करते हैं उसका फल हमें ही भोगना पड़ता है। इसलिए कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए। कोई और काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि हम अपना ही काम करें। भले वह अपूर्ण क्यों न हो। दखलंदाजी की आदत आपको अपमान के लिए प्रेषित करती हैं।  
 
कोई काम बड़ा-छोटा नहीं- सारथी बनना, युधिष्ठिर की ओर से दूत बन कर जाने से भी श्रीकृष्ण ने कभी गुरेज नहीं किया। नैतिक व सत्य, न्याय के लिए उन्होंने सभी कार्य किए। हमारे जीवन में भी ऐसे ही कई कम हैं जो हम अपनी दृष्टि से छोटा-बड़ा आंकते हैं जो हमें प्रगति मार्ग से भटकाते हैं।  
 
समता का भाव व निर्बल का साथ- कोशिश करें सभी के प्रति समता का भाव हो। कठिन है पर असंभव नहीं। ये भाव हमें आंतरिक सुख देता है। श्रीकृष्ण की तरह हमेशा निर्बल, कमजोर परन्तु सत्यनिष्ठ व न्याय पर अटल का साथ दें। जैसे सुदामा, पांडवों का साथ श्रीकृष्ण ने दिया।
 
अहंकार रहित अन्याय का प्रतिकार- नारी हमेशा नारायणी है। श्रीकृष्ण नारायण के अवतार हैं। उन्हीं का अंश हम भी हैं। अपनी शक्ति को पहचान अन्याय का विरोध करना ही गीता हमें सिखाती है। श्रीकृष्ण ने जरुरत पड़ने पर अपना सुदर्शन चक्र भी उन्हीं हाथों की उंगली पर धारण किया शत्रु शमन,दमन किया जिनसे वे बांसुरी की मधुर व मृदुल स्वर लहरियां निकलने के लिए उपयोग करते रहे। 
 
परिवर्तन संसार का नियम है- यहां सब बदलता रहता है. इसलिए सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, मान-अपमान आदि में एक भाव में स्थित रहकर हम जीवन का आनंद ले सकते हैं। आज जो आपके साथ हैं वे कल अपने स्वार्थ के लिए पाला बदल लेंगें। रामायण में भी उल्लेखित है-‘स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति इसलिए बनते-बिगड़ते पारिवारिक, सामाजिक संबंधों का विलाप न ही करें तो बढ़िया है। 
 
वर्तमान का आनंद लो- बीते कल और आने वाले कल की चिंता अनावश्यक रूप से नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो होना है वही होगा। जो होता है, अच्छा ही होता है, इसलिए वर्तमान का आनंद लो। कोरोना जैसी कई महामारियां और प्राकृतिक विपदाएं हमें समय समय पर सबक सिखाने आतीं हैं। अहंकार को तोड़ सर्वशक्तिमान की ताकत का अहसास दिलाती हैं। अपने को भगवान के लिए अर्पित कर दो। फिर वो हमारी रक्षा करेगा और हम दुःख, भय, चिन्ता, शोक और बंधन से मुक्त हो जाएंगे।
 
गीता केवल हमारी धार्मिक आस्था का ग्रंथ मात्र नहीं है, ये दर्शन है कर्मों का, जीने की कला का। प्रकृति, कला, न्याय, धर्म, नैतिक आचरण, आत्म-सम्मान से जीने का पथ प्रदर्शन करती गीता हमारी सृष्टि का निर्माण करने में अपनी कोख के योगदान की महिमा,शक्ति, सम्मान की गाथा भी कहती है। आओ सीखें, जानें, आसान से इन उपायों को जो हमें ‘हम’ होने का ज्ञान कराती है। हमसे हमीं को मिलवाती है गीता... 
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